Struggles of Clay Sculptors Amid Durga Puja Preparations Soil Scarcity and Rising Costs बोले रायबरेली/आसानी से मिले मिट्टी, स्थायी हो बाजार तो यहां भी चहक उठे मूर्तिकार, Raebareli Hindi News - Hindustan
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बोले रायबरेली/आसानी से मिले मिट्टी, स्थायी हो बाजार तो यहां भी चहक उठे मूर्तिकार

Raebareli News - रायबरेली में मूर्तिकार नवरात्रि के लिए मूर्तियाँ बनाने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन उन्हें मिट्टी की कमी, बढ़ती लागत और स्थायी बाजार की अनुपलब्धता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पिछले साल की...

Newswrap हिन्दुस्तान, रायबरेलीSat, 20 Sep 2025 05:01 PM
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बोले रायबरेली/आसानी से मिले मिट्टी, स्थायी हो बाजार तो यहां भी चहक उठे मूर्तिकार

नवरात्र का उत्सवी माहौल शुरू होने को है। विभिन्न आयोजनों की तैयारी शुरू हो गई है। ऐसे में मूर्ति कलाकारों के लिए भी काम बहुत बढ़ गया है लेकिन साथ ही उनकी समस्याएं भी बरकरार हैं। ज्यादातर कलाकारों को मलाल है कि सरकारी स्तर पर उन्हें वे सहूलियतें नहीं मिल पातीं, जिनके वे हकदार हैं। मूर्ति कलाकार सरकारी सस्ते लोन, मिट्टी की कमी, बढ़ती लागत, स्थाई बाजार की आवश्यकता जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। उनकी सबसे बड़ी समस्या मिट्टी की कमी और स्थाई बाजार है। मूर्ति निर्माण के लिए मिट्टी तैयार करने से लेकर उसे अंतिम रूप देने और उनकी बिक्री तक उन्हें कई व्यावहारिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

यदि उनके सस्ते दामों पर मिट्टी और स्थाई बाजार की उपलब्धता हो तो इन कलाकारों को अपने काम को विस्तार देने में मदद मिल सकती है।इस बार दुर्गा पूजा में मूर्ति निर्माण के लिए मिलने वाले ऑर्डर पिछले साल की तुलना में कम हैं। रायबरेली, संवाददाता। जिले के पारंपरिक मूर्तिकार आज कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। मिट्टी की कमी, बढ़ती लागत और स्थायी बाजार की अनुपलब्धता के कारण कई मूर्तिकार अपने पेशे को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं। सरकार की मदद को दरकार इन्हें है। आधुनिकता की तेज रफ्तार और बदलते सामाजिक परिवेश में जिले के मूर्तिकारों का व्यवसाय आज संकट के दौर से गुजर रहा है। कभी समाज में विशेष स्थान रखने वाले लगभग सौ से अधिक मूर्तिकार आज मिट्टी की अनुपलब्धता, लागत में बढ़ोतरी, स्थायी बाजार की कमी और सरकारी उपेक्षा के कारण अपने पुश्तैनी पेशे को छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। यह जल्द ही अपनी समस्याओं के समाधान की आस लगाए हैं। इनकी समस्याओं को लेकर आपके अपने हिन्दुस्तान अखबार ने इन लोगों से बात की तो इन लोगों ने खुल कर अपनी समस्याएं साझा कीं। इन्होंने कहा कि जिले की मूर्ति निर्माण परंपरा आज सरकारी सहयोग के अभाव में दम तोड़ रही है। महंगी मिट्टी, पूंजी की कमी और मंडी के अभाव में मूर्तिकारों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। मूर्तिकारों ने बताया कि, उन्होंने कई जगह डॉ भीमराव अंबेडकर और ज्योतिबा फुले की प्रतिमाएं बनाई हैं, लेकिन अब काम की स्थिति ऐसी हो गई है कि, वे दूसरे राज्यों में मजदूरी करने को मजबूर हैं। वहीं, मूर्तिकारो ने कहा कि, सरकार को चाहिए कि, वह इस पारंपरिक कार्य को बढ़ावा देने के लिए कल्याणकारी योजनाएं लाए, ताकि हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकें और अपने पेशे को आगे बढ़ा सकें।आने वाले समय में नवरात्रि का पर्व आने वाला है ऐसे में पिछले बार की अपेक्षा इस बार आर्डर कम मिले हैं। मूर्तिकार अशोक बताते हैं कि पिछली बार उन्हें 65 आर्डर मिले थे इस बार 16 सितम्बर तक 55 ऑर्डर ही मिले हैं। जो पिछली से 10कम हैं।इन लोगों ने कहा कि मिट्टी के आसमान छूते दाम से बहुत दिक्कत होती है। इससे उन्हें दिक्कत होती है। मूर्तिकारों ने बताया कि एक मूर्ति बनाने में एक हफ्ते से अधिक का समय निकल जाता है। पूरा परिवार लगा रहता है तब कही जाकर मूर्ति को रूप दे पाते हैं। इसके बाद हम लोगों को मिट्टी ही 2200 से 2000 हजार रुपए ट्रॉली पड़ जाती है। जिसकी बनाने में मशक्कत करनी पड़ती है। इसके बाद वह मिट्टी मूर्ति के योग्य बनती है। मूर्तिकारों ने बताया कि अब इन्हीं अव्यवस्थाओं के कारण पारंपरिक कला में कमी आ रही है। अब इस समाज के 80 प्रतिशत लोग इस कार्य को छोड़ कर अन्य मेहनत मजदूरी करके अपनी जीविका चलते हैं। लोगों ने कहा कि पूर्वजों से कृषि ना होने के कारण करीब 90 प्रतिशत लोग भूमिहीन है। सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है और युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं। धीरे धीरे इस कला से इस समाज के लोगों का ध्यान भटक रहा है । संसाधनों के अभाव में लोग पैतृक व्यवसाय से किनारा करने लगे हैं। कुछ लोग मजबूरी में घर चलाने के लिए यह व्यवसाय अपनाए हुए है। जबकि कई लोग अन्य प्रदेशों में जा कर रोजगार कर रहे हैं। सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास नाकाफी हैं। इन मूर्तिकारों ने कहा कि उनको बिन ब्याज के ऋण और संसाधन विकसित किए जाने चाहिए। इन लोगों ने कहा कि अब हम लोगों की कला का अब कोई पहचान करने वाला नहीं है। अब यह लोग इस कला को छोड़कर दूसरे व्यवसाय की तरफ रूख करने लगे है। स्थानीय लोगों की माने तो इस समाज का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। मिट्टी के बर्तन बनाने की कला हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी प्राचीन सभ्यताओं में भी पाई जाती है। उस समय से ही कुम्हार समाज ने मिट्टी के बर्तनों, मूर्तियों और अन्य उपयोगी वस्तुओं का निर्माण किया है। यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी इस समाज के लोग इस पारंपरिक काम को करते हैं। अब न तो उनकी मेहनत के हिसाब से मजदूरी मिल रही ना ही सरकार किसी तरह का सुविधा उपलब्ध करा रही है। जिसके कारण इस समाज के लोगो को काफी परेशानी से गुजरना पड़ता है। इस समाज में लोगों का कहना है कि सरकार अगर ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध हो तो आसानी होगी। आधुनिकता और बदलती जीवनशैली के कारण हम लोगों के सामने कई चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करने की आवश्यकता है ताकि इस पारंपरिक कला को बचाया जा सके और हम लोगों आजीविका को सुरक्षित किया जा सके। सस्ती मिट्टी बनी बड़ी समस्या मूर्तिकारों के अनुसार, मिट्टी की उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। इसी तरह लोगों ने बताया कि, मिट्टी लाने के लिए निजी जमीन का सहारा नहीं लिया जा सकता और सरकारी भूमि से मिट्टी लेने पर पुलिस और स्थानीय दबंग लोग रोक लगाते हैं। कभी-कभी तो पुलिस जुर्माना भी वसूलती है। एक ट्रैक्टर मिट्टी के लिए 2000 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं, जिससे लागत अत्यधिक बढ़ जाती है। मूर्तिकार कहते है कि मिट्टी की उपलब्धता ही बड़ी समस्या नहीं है, बल्कि प्रतिमा निर्माण के बाद उन्हें बेचने के लिए कोई निश्चित स्थान भी नहीं है। मजबूरी में मूर्तियों को हमें अपने दरवाजे पर ही रखनी पड़ती हैं, जिससे बिक्री में भी दिक्कत आती है। यदि सब्जी मंडी की तरह एक स्थायी मूर्ति बाजार बन जाए, तो उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सकती है। मूर्तिकार उदय पंडित ने कहा कि, बांस, सुतली, पुआल, पेंट और पेंटिंग मशीन जैसी आवश्यक सामग्रियों की कीमतें आसमान छू रही हैं। दूसरी ओर, ग्राहकों की पसंद और मूल्य तय करने की प्रवृत्ति के चलते मूर्तियों को बार-बार बनाना पड़ता है। ऐसे में मूर्ति बनाना आज हम मूर्तिकारों के लिए आसान नहीं रह गया है। बढ़ती महंगाई में मेहनत के अनुरूप हमें कीमत नहीं मिलता है। ऐसे में कई मूर्तिकारों ने जहां मूर्तिकारी करना छोड़ दिया है, वहीं नई पीढ़ी के युवा इसे अपना करियर बनाने से मुंह मोड़ रहे हैं। मूर्तिकला एक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे संरक्षण की आवश्यकता है। यदि सरकार समय रहते ठोस कदम उठाए, तो यह पारंपरिक कला फिर से अपनी चमक बिखेर सकती है और हजारों परिवारों की आजीविका का सहारा बन सकती है। नंबर गेम 500 से अधिक मां दुर्गा की मूर्तियां नवरात्रि में जिले में लगाई जाती हैं। 01सौ के करीब मूर्तिकार मिट्टी की मूर्ति का करते हैं निर्माण 02 हजार रुपए प्रति ट्रैक्टर आती है मिट्टी की लागत शिकायतें और सुझाव शिकायत -मिट्टी की उपलब्धता में होती है कठिनाई। -सरकारी भूमि से मिट्टी निकालने पर स्थानीय लोग विरोध करते हैं। -पुलिस और खनन विभाग द्वारा बाधाएं आती हैं। -प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों से परंपरागत मूर्तियों की बिक्री में कमी आई है। -स्थायी बाजार का अभाव होने से मूर्तियां नहीं बिकतीं। सुझाव -मिट्टी की आपूर्ति के लिए मूर्तिकारों/कुम्हारों के लिए विशेष क्षेत्र चिह्नित किए जाएं। -सस्ती दर पर मिट्टी की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। -पर्यावरण अनुकूल मिट्टी की मूर्तियों को बढ़ावा मिले। -खेतों और नदी किनारे से मिट्टी निकालने की अनुमति दी जाए। -सब्जी मंडी की तर्ज पर मूर्तिकारों के लिए स्थायी बाजार की स्थापना हो। भगवान की मूर्ति में भी मोल भाव नहीं निकल रहा लागत मूल्य रायबरेली,संवाददाता। मूर्तिकारों के हाथ की कला जब मिट्टी से मिलती है और देव प्रतिमाओं को इनके हाथों की कला तराशना शुरू करती है, तो माटी में भगवान के दर्शन कराने का हुनर सामने आता है। बरबस लोग उसकी पूजा करते हैं।इस कला के लिए जिले के एक सौ परिवार इसमें लगे हुए हैं। अब इन हुनरबाजों का मोहभंग होता जा रहा है। जिले में माटी को मूर्त रूप देने की कला विलुप्ति की कगार पहुंच गई है। कुछ परिवार कई पीढ़ियों से भगवान की मूरत बनाने की कला को जीवित रखे हुए हैं। पिछले कुछ वर्षो से उनकी कला व मेहनत की सही कीमत उन्हें नहीं मिल पा रही है। वे पुश्तैनी काम को जिंदा रखने के लिए ही मेहनत कर रहे हैं। कच्चा सामान, मिट्टी, पैरा, लकड़ी, लोहे, कील, कलर और कपड़े इन सब सामानों को इकट्ठा करने में लगभग एक महीने का समय लगता है। कच्चे सामान के दाम बढऩे से मूर्ति के दाम भी बढ़े हैं। कई बार बढ़े हुए दाम सुनकर ग्राहक वापस लौट जाते हैं। सीजन के बाद सहीं कीमत न मिलने से उन्हें मूर्तियों को लागत मूल्य में ही विक्रय करना पड़ रहा है। शासन प्रशासन से उम्मीद मूर्तिकारों ने बताया कि शासन प्रशासन ने मूर्ति कला से जुड़े कलाकारों के लिए कोई योजनाएं नहीं बनाई है। ना ही उन्हें कोई प्रोत्साहन व सुविधाएं दी जाती है। शासन यदि उन्हें मिट्टी खदान, बांस, बल्ली, कलर कपड़ा आदि में अनुदान और लोन सुविधा उपलब्ध कराए तो वे इस कला के व्यवसाय को और आगे तक लेकर जा सकते हैं। वर्तमान में सीजन के समय उन्हें निजी संस्थाओं से अधिक ब्याज पर कर्जा लेना पड़ता है। लगातार कम हो रहे मूर्ति कलाकार पहले कच्चा मटेरियल आसानी से कम कीमत में मुहैया होने के कारण शहर में अन्य स्थानों पर भी मूर्तिकार हुआ करते थे, लेकिन वर्तमान में बहुत कम ही यह परिवार बचे हुए हैं। जो यह कार्य कर रहे हैं। उनके परिवारों में भी अब मूर्ति कलाकारों की संख्या में कम होते जा रही है। परिवार के अन्य सदस्य व आगामी पीढ़ी नौकरी-पेशा की ओर अग्रसर हो रही है। ऐसा ही रहा इस कला के हुनर बाजों की संख्या शून्य हो जाएगी और जिले से यह कला पूरी तरह से विलुप्त हो जाएगी। शासन प्रशासन से यदि मिट्टी खदान, लोन सुविधा और निर्माण सामग्री में अनुदान मिले तो मिट्टी की कला के इस व्यवसाय को प्रोत्साहन मिल सकता है। बारिश का मौसम होने के कारण गैस सिलेंडर से मूर्तियां सुखानी पड़ रहा है। लागत खर्च बढ़ गया है। ऐसे में दाम बढऩे लाजमीं है कि ग्राहक वापस न लौटे इसलिए लागत मूल्य में ही मूर्तियां विक्रय करनी पड़ रही है। इनकी भी सुनें मूर्तिकारों के परिवार को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार देने पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकेगी। हमे सरकारी जमीन से नि:शुल्क मिट्टी खुदाई की अनुमति दी जाए, उद्यमी योजना के तहत 10 लाख रुपये तक का ऋण दिया जाए। राजेश कुमार प्रशासन द्वारा मूर्तिकारों के लिए स्थायी स्थान सुनिश्चित किया जाए, जिससे प्रतिमाओं की बिक्री आसानी से हो सके। जिससे मूर्तिकारों को अनुदान पर ऋण और सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने में सुविधा हो। इससे सभी को राहत मिलेगी। राकेश कुमार हमें 2000 रुपये प्रति ट्रैक्टर की दर से मिट्टी लानी पड़ती है। रास्ते में पुलिस भी परेशान करती है और उचित मूल्य पर मिट्टी उपलब्ध नहीं हो पाती।मेहनत और खर्च के अनुपात में इस व्यवसाय से आमदनी नहीं हो पाती। हमें परिवार चलाने के लिए अन्य कार्य भी करने पड़ते हैं। संतोष हमारे पास रोजगार का अन्य कोई साधन नहीं है। समुचित आमदनी नहीं होने के बावजूद हम मजबूरी में इस कार्य को कर रहे हैं। हमारे कई लोग यह व्यवसाय छोड़कर बेहतर रोजगार की तलाश में अन्य स्थानों पर चले गए और आज बेहतर जीवन जी रहे हैं। सरोज प्रजापति हम मजबूरी में इस कार्य को कर रहे हैं। इससे परिवार चलाना भी मुश्किल हो रहा है। सामान्य दिनों में यदि हम अन्य काम न करें तो भूखे रहना पड़ता है। प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों में रसायन होते हैं, जिससे नदी और पोखर प्रदूषित होते हैं। इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगना चाहिए। लक्ष्मी मिट्टी की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं। खनन विभाग और पुलिस मिट्टी लाने में बाधा पहुंचाते हैं, जिससे हमें कठिनाई होती है। दुर्गा पूजा और विश्वकर्मा पूजा आदि के बाद मूर्तियों के खरीदार नहीं मिलते, जिससे भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। सुमेर मिट्टी से बनी मूर्तियों और अन्य सामग्री के लिए बाजार उपलब्ध कराया जाए, ताकि मूर्तियां सालभर बिकती रहें। यहां से बनी कई प्रतिमाएं आसपास जिलों में भी ऑर्डर पर भेजी जाती हैं। पूरा परिवार मिलकर दिन-रात काम करता है, फिर भी मजदूरी नहीं निकल पाती। अब यह घाटे का सौदा हो गया है। रतन मौसम की अनुकूलता भी मूर्तिकारों के लिए बड़ी चुनौती है,क्योंकि ठंड में मिट्टी की मूर्तियां सूख नहीं पातीं, जिससे नुकसान होता है। प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों ने मिट्टी की मूर्तियों के व्यवसाय को प्रभावित किया है, जिससे कई मूर्तिकारों को काम नहीं मिल पा रहा है। अनूप पाल मंहगाई के इस दौर में हमारे सामान की सही कीमत नहीं मिल रही है जिससे हमारे रोजगार पर असर पड़ा है। अनुदानित सरकारी दर पर हम लोगों को मिट्टी और संसाधन उपलब्ध होना चाहिए। यह अनिवार्य आवश्यकता है इस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। नरेश पुश्तैनी कारोबार से अब घर चलाना मुश्किल हो रहा है, बच्चों को अच्छी तालिम भी नहीं दे पा रहे हैं। सरकार से मदद की जरूरत है। अन्यथा हम लोगों को क्षेत्र छोड़कर रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ेगा। इस पर सरकार को कोई ठोस इंतजाम करने की आवश्यकता है। सुब्रत पाल बढ़ती मिट्टी की कीमत ने कमर तोड़ दी है। बाजार भाव नहीं मिलने से लागत पूंजी भी नहीं निकल पाती है। ऐसी स्थिति में हम लोगों को मिट्टी उपलब्ध कर दिया जाए तो अच्छा होगा। इस ओर स्थानीय प्रशासन को गंभीरता से निर्णय लेना चाहिए। अशोक पाल हमारे रोजगार को भी स्थायी बाजार चाहिए, ताकि हमारे सामान की सही कीमत मिल सके। सरकार को इस तरफ ध्यान देने की जरुरत है। पंचायत वार मार्केट होना चाहिए। हमारा प्रोडक्ट सिर्फ त्यौहार पर डिमांड होती है और उसके बाद कारोबार बंद जैसा हो जाता है। मंटू हमारे कुटीर उद्योग को सरकार बढ़ावा देने की कोशिश करते है लेकिन स्थानीय स्तर पर प्रशासन की परेशानी से हमलोग लाभ नहीं ले पाते हैं। हम लोगों को भी पंचायतों में रोजगार सेवकों के सहारे काम मिलना चाहिए। ऐसी कोई योजना हो जिससे हम लोग भी ठीक से जीवन यापन कर सकें। अतुल कुमार हमारे पुश्तैनी कारोबार को बढावा देने के लिए सरकार को ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराने की जरूरत है। तभी जाकर हमारा समाज में एक आशा की किरण जागृत होगी और आगे हमें बढ़ने का मौका भी मिलेगा।इस ओर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। राजेश प्रजापति बोले जिम्मेदार उत्तर प्रदेश सरकार मूर्तिकारों के लिए कई योजनाएं चला रही हैं। जिनमें विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना के तहत उन्हें टूल किट नि:शुल्क दी जाती हैं। विश्वकर्मा मान धन योजना भी चल रही है। इसके साथ ही माटी कला बोर्ड के माध्यम से इनकी समस्याओं का निराकरण करने का प्रयास किया जा रहा है। जो भी अन्य समस्याएं हैं उनके समाधान के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। उनकी जो भी समस्याएं हैं उसे दूर करने का प्रयास किया जाएगा। सतीश प्रजापति, सदस्य, उत्तर प्रदेश माटीकला बोर्ड

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