बोले रायबरेली-हरे चारे की कम उपलब्धता और दूध के दाम न बढ़ने से परेशान हैं पशुपालक
Raebareli News - शहर में दूध उत्पादन करने वाले पशुपालक कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। दूध के दाम नहीं बढ़ने और चारे की कीमतों में वृद्धि के कारण उनका जीवन यापन कठिन हो रहा है। पशुपालकों का कहना है कि उन्हें अपने...
शहर में दूध उत्पादन की व्यवसाय में लगे पशुपालकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उन्हें अपने व्यवसाय को व्यवस्थित रूप से चलाने में चारे से लेकर चारागाह,पानी,खुला स्थान आदि दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।शहरी इलाकों से पशुपालकों को नगर की सीमा बाहर ही रखते है। लोगों ने शहरी इलाकों में बहुत कम ही दुधारू पशु पाल रखे हैं। पशुपालकों के पास उनके पशुओं की संख्या के अनुसार उनके पास पर्याप्त स्थान नहीं हैं। पशु चारे की क्या व्यवस्था मंडी से करनी पड़ती है। हरे पशु चारे की उपलब्धता भी कम ही रहती है और बड़ी मशक्कत के बाद ही उपलब्ध होती है।
रायबरेली,संवाददाता। शहरी पशुपालक रोजाना हजारों लीटर दूध का उत्पादन कर अपनी आजीविका चलाते हैं। उनके अनुसार दूध उत्पादन में उन्हें जितनी आय होती है उससे अधिक तो उनकी जेब से पशु पालन में खर्च हो जाता है। ऐसे में दूध के दाम नहीं बढ़ने से उनके सामने पशुपालन का संकट बन जाता है। दुग्ध उत्पादकों का कहना है कि 2004 में दूध के दाम 20 से 25 रुपये थे और 20 साल बाद 55 से 65 ही पहुंच सके हैं। जबकि दुधारु गाय और भैंस के दाम कई गुना बढ़ गए हैं। इससे पशु पालकों को दुधारु पशु खरीदने और उनका पालन-पोषण करने को परेशान होना पड़ रहा है। पशुपालकों के अनुसार स्थानीय स्तर पर उत्पादित दूध और उससे बने उत्पादों को बाजार नहीं मिलने के कारण भी उन्हें जूझना पड़ रहा है। इन लोगों का कहना है कि उन्हें दूध की कम से कम इतनी कीमत तो मिलने चाहिए, जिससे वह पशुओं का पालन पोषण करने के साथ अपने परिवार की आजीविका भी चला सकें। यह लोग अच्छी नस्ल के दुधारू पशुओं के दाम बढ़ने और दूध की उचित कीमत नहीं मिलने या फिर काफी देरी से मिलने से जिले में दुग्ध उत्पादन करने वाले पशुपालक परेशान हैं। पशुपालकों के अनुसार उन्हें उनकी लागत और मेहनत का चौथाई भाग भी दुग्ध उत्पादन में नहीं मिल पा रहा है। इससे पशुपालकों की संख्या हर साल कम होती जा रही है और उनका इस व्यवसाय से मोह धीरे-धीरे भंग होने लगा है। ऐसे में आपके अपने हिन्दुस्तान अखबार ने पशुपालकों से बात की तो उन्होंने अपना दर्द साझा किया। पशुपालकों ने कहा कि उनका पूरा परिवार दिन-रात पशुओं के लिए चारा और उनकी देखभाल में बिताता है। इसके बाद भी उन्हें लागत जितना उत्पादन और मेहनताना नहीं मिल पाता है। पशुओं के लिए अब न तो चारागाह बचे हैं और न ही पीने के लिए पानी की उपलब्धता के लिए शहर के किनारे तालाब। अब सबमर्सिबल के सहारे ही सारे कार्य होते हैं। शहर के किनारे जो खेत उन लोगों ने किराए पर ले लिए हैं उनमें भीउनके द्वारा उगाए गए चारे को लावारिस जानवर रात में बर्बाद कर देते हैं। ऐसे में बाहर से चारा खरीदने को मजबूर होना पड़ता है। अधिकांश पशुपालक अब फैक्ट्रियों में बने पशुआहार पर पूरी तरह से निर्भर हो चुके हैं। पहले शहर क्षेत्र का उतना विकास नहीं हुआ था आस पास जंगलों में सुबह-शाम मवेशियों को छोड़ दिया जाता था और उन्हें पौष्टिक हरा चारा आसानी से मिल जाता है। वर्तमान में तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण जंगल और खेत सिमटते जा रहे हैं। इससे पशुओं को जो हरा चारा आसानी से मिल जाता था उसे खरीदना पड़ता है। दूध बेचकर जो थोड़ा बहुत मुनाफा होता है उसका अधिकांश हिस्सा पालतू पशुओं के चारे और परिवार के भरण पोषण में खर्च हो जाता है। ऐसे हालात में मजबूरन कई पीढ़ियों से दूध बेचकर अपनी आजीविका चलाने वाले पशुपालक दूसरे व्यवसायों की ओर रुख करने लगे हैं। उनके बच्चे भी इस मेहनत भरे और कम आमदनी के व्यवसाय से दूर भागने लगे हैं। अब वह शिक्षा ग्रहण कर पुश्तैनी धंधा छोड़कर नौकरी की तलाश में दूसरे बड़े शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। पशुपालकों का कहना है कि दूध के दाम नहीं बढ़े तो आने वाले कुछ वर्षों में शहरों में दुग्ध उत्पादन ही बंद हो जाएगा। पशुपालकों ने आ रही दिक्कतों को खुलकर साझा किया। दुग्ध उत्पादक पशुपालकों का कहना है कि पशुओं के दाम बीस साल में तीन से चार गुना बढ़ गए हैं, लेकिन इस बीच दूध के दाम उस तेजी से नहीं बढ़े। इससे पशुपालकों को निराशा मिल रही है। पशुओं के बढ़ते दाम और लागत से परेशान होकर कई पशुपालकों ने दुग्ध उत्पादन का कारोबार छोड़कर प्लाटिंग या फिर अन्य व्यवसाय करना आदि शुरू कर दिया है। इस वजह से दुग्ध उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। इन लोगों का कहना है कि दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्हें उचित कीमत दी जाने चाहिए। इन लोगों का कहना है कि सरकार को दुग्ध उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए मुफ्त में पशु चारे की व्यवस्था करनी चाहिए। साथ ही अच्छी नस्ल के दुधारू पशु खरीदने के लिए बैंको से आसान किस्तों पर कम ब्याज दर पर लोन दिया जाना चाहिए। साथ ही अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए उन्हें अनुदान और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाए। जिससे शहरी क्षेत्र के पशुपालक कुछ राहत महसूस कर सकें। शिकायतें और सुझाव शिकायत -दूध के दाम नहीं बढ़ने से उत्पादन कम हो रहा है। -शहर के किनारे बटाई लिए गए खेतों में उगे चारे को खा जाते हैं लावारिस जानवर। -पशु चारा और आहार के दाम हर साल बढ़ रहे। -शहर में हरा पशु चारा मिलने में परेशानी हो रही है। -दुग्ध उत्पादक पशुपालकों के उत्पादों को उचित बाजार नहीं मिलता है। सुझाव -समितियों में दूध के दाम बढ़ाए जाएं और समय से दिए जाएं। -लावारिस जानवरों से निजात दिलाने की व्यवस्था की जाए। -पशु चारा और आहार का मूल्य कम किया जाए। -किसानों के दुग्ध उत्पादों को उचित प्लेटफार्म और बाजार उपलब्ध कराया जाए। -दुधारू पशु खरीदने के लिए बैंकों से आसान किस्तों और कम ब्याज दर पर लोन दिया जाए। नंबर गेम 400 के करीब पशु पालक दूध बेचने के लिए जिले में पंजीकृत हैं। 250 दुग्ध समितियां रोजाना खरीदती हैं दूध 08 लाख के करीब पशु जिले में हैं। 04 लाख के करीब पशुपालक हैं। निजी दूध कंपनियां कमा रही हैं मुनाफा, पशुपालक परेशान रायबरेली,संवाददाता। जिले में एक दर्जन दूध कंपनियां सक्रिय हैं जो पशुपालकों से प्रतिदिन दो लाख 50 हजार लीटर दूध की खरीददारी करती हैं। जिसमें यह कंपनिया 50 हजार लीटर दूध की बिक्री करती हैं। इनका बचा हुआ 2 लाख लीटर दूध प्रतिदिन दिल्ली, लखनऊ, कानपुर आदि बड़े महानगरों में काफी ऊंचे दामों में बिक्री के लिए भेज दिया जाता है। इसके बाद बचे दूध का पाउडर बना लिया जाता है। यह दूध कम्पनियां 51 रुपए में पशुपालकों से खरीदती हैं और 70 रुपए में बेचती हैं। कई दूध कम्पनियों में ने जिले में प्लांट लगा लिए हैं। इससे साफ है कि यह निजी दुग्ध कंपनियां पशुपालकों से कम दाम पर दूध खरीदकर उसे प्रति लीटर करीब 20 रुपए ज्यादा मुनाफे में बेच देती हैं। जबकि पशुओं का खाना, देखभाल और चिकित्सा का पूरा खर्च उठाना पड़ता है और मुनाफे के नाम पर महज कुछ रुपए ही मिलते हैं। वहीं दुग्ध सहकारी समितियों की स्थिति बेहद खराब है। पराग डेयरी का त्रिपुला स्थित प्लांट कोरोना टाइम से बंद है। वहीं पशुपालकों को अच्छी नस्ल के ज्यादा दूध देने वाले जानवर उपलब्ध कराने के लिए जिले में स्थापित किया गया जर्सी पशु प्रजनन केन्द्र अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। दुधारू पशुओं का चारा खा जाते हैं छुट्टा जानवर रायबरेली, संवाददाता। शहरी क्षेत्र में कई पशुपालक भी ऐसे हैं जिनके पशु हैं वह दूध निकालने के बाद इन्हें छोड़ देते हैं। यह जानवर राह चलते लोगों की दुर्घटना का कारण तो बनते हैं। पशुपालकों के हरे चारे की फसल भी चर जाते हैं। ट्रैफिक समस्या अलग से,लेकिन पशुपालकों और आमजनमानस की इस प्रमुख समस्या की सुनवाई नहीं हो रही है। छुट्टा पशुओं की समस्या का सबसे अधिक दुष्प्रभाव कृषि पर पड़ रहा है। शहर में सैकड़ों की संख्या में छुट्टा पशु खुले आम घूम रहे हैं रोड जाम कर रहे हैं और शहर के किनारे कि फसल को बर्बाद भी कर रहे हैं। इसके बाद भी किसानों और पशुपालकों की इस व्यथा को सुनने वाला कोई नहीं है। छुट्टा जानवरों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए शासन और प्रशासन की ओर से केवल घोषणाएं की जाती रही और जमीनी सच्चाई तथा वास्तविकता जानने की कोई कोशिश नही की गई जिसके कारण स्थिति बद से बदतर होती चली गई और ये छुट्टा पशु खेती किसानी के लिए अभिशाप बन गए। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि आज शहर की सड़क हो बाजार या कि फोरलेन राजमार्ग हर जगह समूह में छुट्टा गोवंश दिखाई दे रहे हैं। आए दिन इनके कारण सड़क दुर्घटनाएं हो रही है। वहीं किसान से गोबर या कम्पोस्ट खरीदने की घोषणा भी केवल जबानी जमा खर्च के अलावा कुछ नही रही। इनकी भी सुनें शहर में पशुओं को आसानी से पौष्टिक चारा और शुद्ध पेयजल मिल सके इसके लिए सरकार को शहरी क्षेत्र, सार्वजनिक दर्ज जंगल और तालाबों को बचाने के लिए कठोर कदम उठाना चाहिए। अन्यथा केमिकल युक्त पशुआहार खाने से लोगों की सेहत खराब होगी। वली मोहम्मद सरकार ने पशुपालकों के हित में कुछ भी नहीं किया। दुग्ध उत्पादकों की सबसे बड़ी समस्या दूध के दम नहीं बढ़ता है। इस तरफ किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। 20 साल में शराब के दाम 20 गुना बढ़ गए लेकिन दूध के दाम थोड़ा बहुत ही बढ़े हैं। दिलशेर बाजार में मिलावटी घी, खोया, दही और छाछ सब कम दामों में मिल जाता है। दूध के दाम वर्तमान में पशुओं की कीमत के सामने बहुत कम हैं। चारा बीज आदि भी महंगा है। हम स्थानीय स्तर पर दूध देते हैं लेकिन वहां हमें उचित दाम नहीं मिलते हैं। सद्दीक पशुओं की कीमत 50 हजार से एक लाख रुपये तक पहुंच गई है। पशुपालन में सब्सिडी मिलनी जानी चाहिए जिससे कि पशुपालक प्रोत्साहित होकर दुग्ध उत्पादन करें और केमिकल युक्त चीजों को हटाकर किसानों की ओर से उपलब्ध कराए जाने वाले दुग्ध उत्पाद बाजारों में मिल सकें। मो. फैजान दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से लाभकारी योजनाओं का संचालन किया जाना चाहिए। हमारी ओर से उत्पादित दूध के दाम 20 साल के बाद भी बहुत कम बढ़े हैं, जबकि इनसे बने उत्पादों के दाम लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं। मो. नसीर वर्तमान में पशुओं की कीमत के सामने दूध के दाम बहुत कम है। चारा महंगा है। लोग शहर से दूर जंगलों और खेतों से घास लाने को मजबूर हैं। सब्सिडी में मिलने वाला चारा अनियमित है इसलिए हमें स्थानीय खेतों और जंगलों पर निर्भर रहना पड़ता है। मो. ताहिर अधिकतर लोग भैंस पालकर दूध का उत्पादन कर रहे हैं,लेकिन दूध के दाम इतने कम मिलते हैं कि यदि नया पशु खरीदने के लिए हम प्रयास करें तो भी गुंजाइश नहीं बचती है। हमारी मांग है कि सब्सिडी पर किसानों को दुग्ध उत्पादन के लिए पशु उपलब्ध कराए जाएं। नफीस हम सालों से दुग्ध उत्पादन कर रहे हैं। पशु आहार और चारा हर दिन महंगा होता जा रहा है, लेकिन दूध के दाम अभी तुलनात्मक रूप से बहुत कम हैं। इससे हमें नुकसान हो रहा है। हम जितना खर्चा दुग्ध उत्पादन पर कर रहे हैं उतने में हमारी लागत भी नहीं आ रही है। शमीम हमारे घरों में सभी लोग दुग्ध उत्पादन कर ही परिवार का भरण पोषण करते हैं। दूध के दाम नहीं बढ़ने के कारण हमें आर्थिक संकट से गुजरना पड़ता है। कई बार तो पशु चारा और आहार खरीदने जितना ही दूध उत्पादित हो पता है। ऐसे में लागत भी नहीं निकल रही है। अब्दुल हक सरकार को किसानों के लिए योजनाएं बननी चाहिए, जिससे कि स्थानीय स्तर पर दुग्ध उत्पादन बढ़े। हमने कई बार दुग्ध उत्पादन समिति तक अपनी समस्याएं पहुंचाई हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है। ऐसे में इस कार्य से मोह भंग हो रहा है। रज्जन चारा और पशु आहार आदि खरीदने में ही हमारी आमदनी खर्च हो जाती है। हमारी मांग है कि पशुपालकों के लिए अलग से योजना बनाई जाएं। जिसमें दुग्ध उत्पादकों को लाभ पहुंचाने के लिए उन्हें चारा बीज और पशु आहार आदि सब्सिडी में दिए जाएं। रिजवान दुग्ध उत्पादन समितियों में अब भी दूध के दाम बहुत कम हैं, वहीं तत्काल नहीं दिया जाता है। कभी-कभी तो कई महीने बाद पुराना भुगतान किया जाता है। इसके कारण किसान प्रभावित हो रहे हैं। दुग्ध उत्पादकों की संख्या हर रोज कम होती जा रही है। इंसाफ अली हमारी मांग है कि दुग्ध उत्पादन के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए सरकार व्यवस्थाएं बनाए। योजना बनाकर पशुपालकों को उनका लाभ दिया जाए जिससे कि लोग प्रेरित होकर दुग्ध उत्पादन बढ़ाएं। बाजारों के केमिकल युक्त उत्पादन से अच्छा स्थानीय उत्पादों को बाजार मिलना चाहिए। मुन्ना दूध का उत्पादन घटता ही जा रहा है यह उतना नहीं हो रहा जितना पहले होता था। क्योंकि लोग पशुओं का समुचित रखरखाव नहीं कर पा रहे हैं। लागत भी अधिक लग रही है।सरकार को दुग्ध उत्पादन को प्रेरित करने के लिए उचित योजनाएं बनानी चाहिए। सभी पशुपालकों को इसका लाभ दिया जाना चाहिए। मो. निसार ------------- पशुपालकों को मिले सस्ता लोन और गोबर फेंकने के लिए जमीन रायबरेली,संवाददाता। शहर के सभी पशु पालकों को सस्ता लोन और गोबर फेंकने के लिए कोई स्थान मिलने की दरकार है। यह लोग बढ़ती महंगाई में अगर और जानवर खरीदना पड़े कोई सरकारी सहायता नहीं मिल पाती है। इससे यह लोग किसी तरह अपना जीवन बिता रहे हैं। इस बढ़ती महंगाई में दूध का व्यवसाय अपनी चमक खोता जा रहा है। इन लोगों के पास यही एक धंधा है। जिसके सहारे यह जीवन की गाड़ी खींच रहे हैं। यदि इन लोगों को बिन झंझट के ही सस्ता लोन मिल जाए तो इन लोगों को सुविधा मिलेगी। जिससे यह धीरे धीरे और संसाधन विकसित कर के अपनी मुश्किलों को आसान कर सकते हैं। इसके साथ ही इनकी दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इनके पास गोबर फेंकने का कोई स्थान नहीं रहता इधर-उधर ही फेकना पड़ता है। इन लोगों का कहना है कि कोई स्थान स्थानीय प्रशासन उपलब्ध करा दे जिस पर हम लोग पूरे साल गोबर फेंकते रहे जिससे इसके लिए माथापच्ची न करनी पड़े। इन लोगों का कहना है कि सरकार हम लोगों की ओर ध्यान दे नहीं वह दिन दूर नहीं शहर से दूध का धंधा लुप्त ही हो जाएगा। बोले जिम्मेदार जिले के पशु पालकों के लिए नंद बाबा मिशन के तहत मिनी नंदनी गाय की योजना है, जिसमें दस गाय के लिए 23 लाख साठ हजार की राशि मिलती है, इसमें 50 प्रतिशत अनुदान मिलता है। इसके साथ गौ संवर्धन योजना के तहत दो गाय लेने के लिए दो लाख की धन राशि सरकार से दी जाती है। पशुओं का गर्भधारण और बीमार होने पर उनके इलाज की सभी सुविधाएं पशु चिकित्सालयों में उपलब्ध है। समय-समय पर पशुओं की देखभाल के लिए सुझाव देने के साथ ही गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। पशुओं के अत्यधिक बीमार होने पर एम्बुलेंस की व्यवस्था भी है। केके द्विवेदी, मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी
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