चार साल बाद भी मकान टूटने का दर्द नहीं भुला पाए प्रो. फातमी
Prayagraj News - सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज के प्रो. अली अहमद फातमी के मकान को गिराने के लिए प्रदेश सरकार की आलोचना की। फातमी, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष हैं, ने अपनी बेटी के घर में शरण...

प्रयागराज। सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज के जिस प्रो. अली अहमद फातमी का मकान तोड़ने पर प्रदेश सरकार की खिंचाई की है, वो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के अध्यक्ष रहे हैं। कार्रवाई के दौरान लूकरगंज स्थित उनकी बेटी का मकान भी गिराया गया था। मकान टूटने के बाद प्रोफेसर फातमी को मजबूरन अपनी बेटी के घर में शरण लेनी पड़ी थी। उर्दू साहित्य के जाने माने साहित्यकार प्रोफेसर फातमी के साथ ही अधिवक्ता जुल्फिकार हैदर और दो महिलाओं समेत पांच लोगों ने हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। घर गिराए जाने की इस घटना को दो दिन बाद ठीक चार साल हो जाएंगे लेकिन प्रो. फातमी इस दर्द से अब तक उबर नहीं पाए हैं। प्रो. फातमी कहते हैं कि उनका घर नहीं गिरा बल्कि उनकी पूरी दुनिया ही उजड़ गई। आठ मार्च 2021 को हुई ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के बाद वह पत्नी राना फातमी को लेकर बेटी के मकान में चले गए थे। इस वाकये ने पत्नी का तनाव इस कदर बढ़ा दिया था कि तकरीबन नौ महीने बाद उनका इंतकाल हो गया। बकौल प्रो. फातमी जिस मकान को पीडीए ने गिराया था। उसकी जमीन उन्होंने 1985 में खरीदी थी। धीरे-धीरे करके बड़ी मुश्किल से चार कमरे बनवाए थे। कहा कि मकान टूटने के बाद बड़ी बेटी नायला फातमी के घर में रहने लगे थे। इविवि से सेवानिवृत होने पर जो फंड मिला उससे करेली में एक फ्लैट खरीदा और अब वहीं पर बड़ी बेटी नायला के साथ रह रहे हैं। उनकी छोटी बेटी इंजिला फातमी शिक्षिका हैं। प्रो. फातमी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से उन्हें राहत की उम्मीद है। मामले में अभी आदेश नहीं आया है। आदेश आने के बाद ही कुछ कह सकता हूं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बगैर की गई कार्रवाई बताया है और कहा है कि किसी के मकान में इस तरह से तोड़फोड़ करना गलत संकेत देता है।
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