'धन से नहीं अपितु विचारों से बड़ा बनता है मनुष्य'
Prayagraj News - महाकुम्भ नगर में श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन आचार्य महामंडेलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि ने साधकों को सत्कर्म परायण रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सांसारिक भोग क्षणिक सुख देते हैं, लेकिन शाश्वत...
महाकुम्भ नगर। प्रभु प्रेमी संघ कुम्भ शिविर सेक्टर - 18 अन्नपूर्णा मार्ग झूंसी में श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन शुक्रवार को जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडेलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि ने कहा कि साधकों को निरन्तर सत्कर्म परायण रहना चाहिए। सांसारिक भोग के अनुभव हमें क्षणिक सुख तो देते हैं, किन्तु शाश्वत आह्लाद और माधुर्य की संप्राप्ति भगवान की स्मृति से ही होती है। मनुष्य धन से नहीं, अपितु विचारों से बड़ा बनता है। मनुष्य जीवन अंतहीन सम्भावनाओं से परिपूर्ण है। मनुष्य इस धरा की सर्वोत्तम कृति है। हमारी विचार शक्ति ही तो हमें अन्य प्राणियों से पृथक और श्रेष्ठ बनाती हैं इसलिए अच्छे विचारों के साथ रहें। दुर्बलता के अनेक रूप हैं, किन्तु उनमें सबसे बड़ी दुर्बलता है - वैचारिक दुर्बलता। जो विवेक, विचार और ज्ञान से हीन है, वही सबसे कमजोर है।
इस अवसर पर कार्ष्णि पीठाधीश्वर स्वामी गुरुशरणानन्द, प्रभु प्रेमी संघ की अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी नैसर्गिका गिरि, मुख्य यजमान किशोर काया तथा उनकी सहधर्मिणी मधु काया, महामंडलेश्वर अपूर्वानन्द गिरि, स्वामी दयानन्द, स्वामी कैलाशानन्द गिरि, स्वामी कल्याणानन्द, स्वामी ज्ञानानन्द, विवेक ठाकुर, महेन्द्र लाहौरिया, प्रवीण नरुला, रोहित माथुर, विनोद बुट्टन, सुरेन्द्र सर्राफ, मालिनी दोषी, सांवरमल तुलस्यान आदि उपस्थित रहे।
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