लॉकडाउन ने थानेदारों को बना दिया मैनेजमेंट गुरु
लॉकडाउन ने पुलिसकर्मियों को मैनेजमेंट गुरु बना दिया। पुलिसिंग के साथ वो हर फन में माहिर हो गए। अपराधियों को पकड़ने के साथ ही भोजन बनवाने और प्रवासियों को घर पहुंचाने का इंतजाम कराने तक की जिम्मेदारी...
लॉकडाउन ने पुलिसकर्मियों को मैनेजमेंट गुरु बना दिया। पुलिसिंग के साथ वो हर फन में माहिर हो गए। अपराधियों को पकड़ने के साथ ही भोजन बनवाने और प्रवासियों को घर पहुंचाने का इंतजाम कराने तक की जिम्मेदारी निभाई। ट्वीट पर किसी को भोजन पहुंचाना हो या फिर शासन का कोई निर्देश, बिना बजट पुलिस ने हर निर्देश का पालन किया। बिना बजट के सभी काम सिर्फ मैनेजमेंट गुरु ही कर सकते हैं।
कहा जाता है कोई दरोगा थाना तभी चला सकता है जब वो सब कुछ मैनेज करने में माहिर हो। रही-सही कमी इस बार कोरोना संकट ने पूरी कर दी। कोरोना का संक्रमण बढ़ते ही लॉकडाउन शुरू हो गया। प्रथम चरण में असहाय और बेरोजगार मजदूरों को दो वक्त का भोजन कराने की जिम्मेदारी थाना इंचार्ज को दी गई। भले ही इसके लिए कोई लिखित आदेश नहीं था लेकिन कहा गया कि संबंधित थानेदार और चौकी इंचार्ज मदद करेंगे।
भोजन बनवाने से लेकर सारे इंतजाम करने के लिए किसी भी थानेदार और चौकी इंचार्ज के लिए किसी प्रकार का कोई बजट नहीं था। इतना जरूर कहा गया कि वह किसी एजेंसी या समाजसेवी की मदद ले सकते हैं। भोजन इंतजाम के साथ किसी को दवा पहुंचाना या किसी अस्पताल में गरीब का इलाज, सब कुछ करने में थानेदार की जिम्मेदारी थी। कैसे किया, यह किसी से छिपा नहीं। पुलिस ने लोगों की मदद से सब कुछ मैनेज किया।
शनिवार को भी कुछ यही नजारा था। छिवकी जंक्शन पर प्रवासियों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। प्रशासनिक अफसर बसों का इंतजाम नहीं करा पा रहे थे। पुलिस रेलवे अफसरों से तालमेल कर रही थी लेकिन प्रवासियों का गुस्सा देखकर नियंत्रण करना मुश्किल हो रहा था। आखिर में मैनेजमेंट गुरु काम आए। पुलिस ने नैनी और आसपास के स्कूल-कालेजों के संचालकों से संपर्क कर उनकी बसें मंगाई और यात्रियों को भेजा गया।