साझा विरासत का दस्तावेज है जंग-ए-आजादी
वाणी डिजिटल शिक्षा श्रृंखला के तहत हिंदी-उर्दू की साझा विरासत विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान आयोजित किया गया। इस अवसर पर इविवि हिंदी विभाग के प्रो. संतोष भदौरिया ने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आजादी...
वाणी डिजिटल शिक्षा श्रृंखला के तहत हिंदी-उर्दू की साझा विरासत विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान आयोजित किया गया। इस अवसर पर इविवि हिंदी विभाग के प्रो. संतोष भदौरिया ने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आजादी के दौर में धार्मिक संकीर्णता के चलते साझा विरासत कमजोर हुई।
साझा विरासत सूफी दर्शन और काव्य की परंपरा को मजबूत आधार प्रदान करती है। साथ ही जंगे-ए-आज़ादी में हिंदी-उर्दू की साझा विरासत का प्रामाणिक दस्तावेज है। उन्होंने कहा कि भारत की साझा संस्कृति जीवन जीने की कला सिखाती हैं और यही हमारी ताकत है।
अमीर खुसरो से लेकर कबीर, तुलसी, रसखान, घनानंद, सौदा, भारतेंदु हरिश्चंद्र, नजीर अकबराबादी निराला, प्रेमचंद से लेकर केदारनाथ सिंह तक की रचनाओं में साझा विरासत की झलक दिखाई देती है।