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प्रयागराज से प्लास्टिक की बोतलों और डिब्बों में घर-घर पहुंच रहीं गंगा

अमृत से सिंचित और देव ब्रह्मा के यज्ञ से पवित्र प्रयाग के त्रिविध ताप पाप नाशिनी संगम में आस्था की डुबकी लगाने के बाद श्रद्धालु घर वापसी में प्लास्टिक के बोतल और डिब्बों में गंगाजल घर ले जाना...

प्रयागराज से प्लास्टिक की बोतलों और डिब्बों में घर-घर पहुंच रहीं गंगा
एजेंसी,प्रयागराजTue, 16 Feb 2021 04:58 PM
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अमृत से सिंचित और देव ब्रह्मा के यज्ञ से पवित्र प्रयाग के त्रिविध ताप पाप नाशिनी संगम में आस्था की डुबकी लगाने के बाद श्रद्धालु घर वापसी में प्लास्टिक के बोतल और डिब्बों में गंगाजल घर ले जाना नहीं भूलते। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से बसंत पंचमी स्नान करने पहुंचे श्रद्धालुओं ने बताया कि वे सभी पिछले पांच साल से संगम स्नान करने आते रहे  हैं। यहीं से गंगा जल का भरकर घर वापस जाते हैं। उन्होने बताया कि घरों की पवित्रता एवं जलाभिषेक करने के लिए उत्तम है।

सनातन धर्म में गंगा नदी को मां का दर्जा दिया गया है, इसलिए भक्त अपने घर को पवित्र रखने के लिए गंगाजल अपने घर में रखते हैं। गंगा का जल मोक्ष प्रदान करने वाला है और पूजा-अर्चना, शुद्धिकरण, अभिषेक और कई धार्मिक अनुष्ठानों में इसका प्रयोग किया जाता है। बिना गंगाजल के कोई धार्मिक अनुष्ठान पवित्र नहीं माना जाता है। उन्होने बताया कि वैज्ञानिक आयुर्वेदिक दृष्टि से गंगाजल की समालोचना करते हैं। गंगाजल तथा गंगा-मृत्तिका में स्वस्थीकरण एवं शरीर पोषण की अपूर्व शक्ति है।

एक श्रद्धालु ने बताया कि आयुर्वेद के रिसर्च से विज्ञान वेत्ताओं ने गंगाजल में अजीर्ण रोग, अजीर्ण ज्वर, संग्रहणी और श्वास रोग को समूल नष्ट करने की अपूर्व शक्ति है। गंगाजल किसी भी प्रकार सांक्रमिक रोगादिकों के विषाणु से यह दूषित नहीं होता।

प्रयागवाल सभा के महामंत्री एवं तीर्थ पुरोहित राजेन्द्र पाली के शिविर में मध्य प्रदेश के रीवा जिले के तीरथ सिंह पत्नी मीना सिंह और बिहार में बक्सर के बिधना मिश्र और सुशीला समेत अन्य करीब 50 परिवार कल्पवास कर रहे हैं। शिक्षक के पद से सेवा निवृत तीरथ सिंह ने बताया कि गंगा तो कई राज्यों और जिलों से बहती हुई देवभूमि प्रयागराज पहुंचती है। लेकिन आस्था और पुण्य की डुबकी तो त्रिविध ताप.पाप नाशिनी त्रिवेणी में ही लगती है।

उन्होने बताया कि संगम का जल घर की शुद्धता के लिए ले जाते हैं। यह जल ही नहीं अपितु अमृत है। यह तीर्थराज प्रयाग और गंगा मइया का प्रताप है कि लोग सैकडों हजारों किलोमीटर दूर से पुण्य की डुबकी लगाने खिंचे चले आते हैं। उन्होने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में  माघ मकर गति रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई। देव दनुज किन्नर नर  श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी। लिखकर प्रयाग में माघ स्नान महात्म की महिमा को सिद्ध कर दिया कि यहां देवता भी स्नान करने पहुंचते हैं। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है कि प्रयागराज के माघ मेले में आने वालों का स्वागत स्वयं भगवान करते हैं।

गृहस्थ बिधना मिश्र ने बताया कि कुंभ, अर्द्धकुंभ तो हरिद्वार, उज्जैन, नाशिक और प्रयागराज में लगता ही है। लेकिन यहां प्रत्येक वर्ष माघ मेला होता है जिसमें एक माह तक कल्पवास किया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। संगम में सतत ऊर्जा का प्रवाह प्रवाहित है। इसलिए यहां का जल अमृत है। घरों की शुद्धिकरण  के लिए उत्तम है।

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