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शिविरों में गृहस्थी, संस्कार व प्रबंधन का पाठ पढ़ रहीं बेटियां

माघ मेला में दादा-दादी, नाना-नानी की लाडलियां संस्कार, गृहस्थी और प्रबंधन का पाठ पढ़ रही हैं। शिविरों में कल्पवास कर रहे घर के बुजुर्गों की सेवा कर...

माघ मेला में दादा-दादी, नाना-नानी की लाडलियां संस्कार, गृहस्थी और प्रबंधन का पाठ पढ़ रही हैं। शिविरों में कल्पवास कर रहे घर के बुजुर्गों की सेवा कर...
1/ 3माघ मेला में दादा-दादी, नाना-नानी की लाडलियां संस्कार, गृहस्थी और प्रबंधन का पाठ पढ़ रही हैं। शिविरों में कल्पवास कर रहे घर के बुजुर्गों की सेवा कर...
माघ मेला में दादा-दादी, नाना-नानी की लाडलियां संस्कार, गृहस्थी और प्रबंधन का पाठ पढ़ रही हैं। शिविरों में कल्पवास कर रहे घर के बुजुर्गों की सेवा कर...
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माघ मेला में दादा-दादी, नाना-नानी की लाडलियां संस्कार, गृहस्थी और प्रबंधन का पाठ पढ़ रही हैं। शिविरों में कल्पवास कर रहे घर के बुजुर्गों की सेवा कर...
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Newswrapहिन्दुस्तान टीम,प्रयागराजMon, 01 Feb 2021 03:30 PM
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प्रयागराज। लाल रणविजय सिंह

माघ मेला में दादा-दादी, नाना-नानी की लाडलियां संस्कार, गृहस्थी और प्रबंधन का पाठ पढ़ रही हैं। शिविरों में कल्पवास कर रहे घर के बुजुर्गों की सेवा कर रहीं बेटियों के लिए संगम की रेती पाठशाला बन गई है। बुजुर्गों की साये में रहकर लाडलियां छोटी उम्र में समझदार बन रही हैं।

गोविंदपुर के सेंट पीटर्स एकेडमी में 9वीं की छात्रा शांभवी त्रिपाठी अपने दादा की सेवा कर रही है। सेक्टर पांच में हठ योग, तंत्र, मंत्र, यंत्र, धर्म प्रचार संस्थान रसूलाबाद के शिविर में पिछले सात साल से आ रही शांभवी ने संगम की रेती पर बहुत कुछ सीखा। सलोरी की शांभवी ने छोटी जगह में गृहस्थी का प्रबंधन यहीं सीखा। सनातन धर्म के बारे में बहुत कुछ जाना। शांभवी के मुताबिक शिविर में अब दादा कल्पवास करते हैं और वह ऑनलाइन पढ़ाई के साथ संस्कार सीख रही है।

12 साल से लगातार माघ मेला में अपने नाना-नानी के साथ आ रही लालापुर के इछबरा की शालू मिश्रा ने यहीं गृहस्थी और धर्म का पाठ पढ़ा। स्नातक की पढ़ाई पूरी कर चुकी शालू ने बताया कि सुबह चार बजे गंगा स्नान, पूजा अर्चना के साथ सत्संग और प्रवचनों को सुनकर बहुत ऊर्जा मिलती है। यहां एक महीने के प्रवास से इच्छाशक्ति मजबूत होती है। अब घर का कोई काम करने में झिझक नहीं होती। इच्छाशक्ति को और मजबूत बनाने के लिए सिलाई स्कूल छोड़कर संगम आए।

सेक्टर पांच के एक शिविर में अपने दादा-दादी के साथ आई कक्षा छह की छात्रा स्मृति पांडेय ने बताया कि मेला में रहना अच्छा लगता है। दादा-दादी सिर्फ उसके साथ हैं। दादा-दादी की सेवा करना, रोज सबेरे संगम स्नान करना अच्छा लगता है। कोरोना के कारण रामलीला नहीं होने से स्मृति का दिल उदास है। वह कहती हैं कि इस साल पूरा खाना बनाना सीख लिया। दादा रात में पढ़ाते हैं। दोपहर और रात में बाबा से कहानी सुनते हैं तो अच्छा लगता है।

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