मानसिक बीमारियों का इलाज कराने में झिझक रहे बेल्हा के लोग
Pratapgarh-kunda News - प्रतापगढ़ के बेल्हा में मानसिक बीमारियों के प्रति जागरूकता बहुत कम है। सरकारी टेली मानस हेल्पलाइन पर कम कॉल आ रही हैं, जबकि अन्य जिलों में जागरूकता बढ़ी है। जिले में छह साल से मनोरोग विशेषज्ञ नहीं...

प्रतापगढ़, संवाददाता। बेल्हा में मानसिक बीमारियों के प्रति जागरूकता बहुत कम है। कई लोग तो इसे बीमारी मानते ही नहीं। जबकि सरकार मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए टेली मानस चला रही है। जिसमें घर बैठे फोन कर मानसिक रोग के डॉक्टर से बात और इलाज कराया जा सकता है। बुलंदशहर और लखनऊ जैसे जिलों में जागरूकता के चलते जहां हर महीने सैकड़ों लोग फोन कॉल कर इलाज करा रहे हैं वहीं बेल्हा से बहुत कम फोन कॉल टेली मानस के नम्बर पर की जा रही है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत टेली मानस हेल्प लाइन सेवा संचालित की जा रही है।
इसके टोल फ्री नंबर 14416 या 18008914416 पर चौबीसों घंटे कॉल कर मानसिक बीमारियों का इलाज कराया जा सकता है। अगस्त में उक्त नंबर पर बुलंदशहर जिले से 821 लोगों ने कॉल कर अपनी मानसिक समस्याएं साझा कीं। लखनऊ से 648 लोगों ने कॉल किया। श्रावस्ती से 450 तो रामपुर से भी 313 ने हेल्पलाइन पर इलाज के लिए कॉल किया। लेकिन बेल्हा से सिर्फ 52 लोगों ने कॉल किया। जानकारों का मानना है कि मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या हर जगह अधिक है। लेकिन कॉल वहीं से अधिक आ रही जहां मानसिक रोगों के प्रति लोगों में जागरूकता है। छह साल से जिले में नहीं मनोरोग विशेषज्ञ मानसिक रोग कार्यक्रम जिले में बिना डॉक्टर के चलाया जा रहा है। छह साल से जिले में मनोरोग विशेषज्ञ नहीं है। बार-बार उच्चाधिकारियों को पत्र लिखा जा रहा है। लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है। ऐसे में बिना डॉक्टर के अभियान कितना प्रभावी होगा इसका अंदाजा टेलीमानस हेल्पलाइन पर जाने वाली कॉल की कम संख्या से ही लगाया जा सकता है। मनोरोग की ओपीडी में भी सन्नाटा मेडिकल कॉलेज के राजा प्रताप बहादुर चिकित्सालय में मानसिक रोग विभाग की ओपीडी चलती है। लेकिन तीन साल से ओपीडी चलाने के बाद भी यहां आने वाली मरीजों की संख्या 50 से भी कम रहती है। इसे देखते हुए कहा जा रहा है कि जिले के लोगों में मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता में बहुत कमी है। लक्षण 1-लगातार उदासी या चिंता बने रहना। 2-सामाजिक गतिविधियों से दूरी। 3-ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई। 4-नींद और भूख में बदलाव। 5-अचानक मूड या व्यक्तित्व में परिवर्तन। 6-अत्यधिक घबराहट, भय या बेचैनी। 7-अतार्किक या मतिभ्रम वाले विचार। 8-आत्मधाती विचार आना। 9-ऐसी चीजें देखना/सुनना जो दूसरों को दिखाई/सुनाई न दें। इनका कहना है मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए लगातार काम किया जा रहा है। पिछले साल की तरह इस साल भी डीआईओएस से 24 विद्यालयों की सूची मांगी गई है। इन विद्यालयों के शिक्षकों को ट्रेनिंग देकर वहां के छात्र-छात्राओं को मानसिक रोगों के प्रति जागरूक किया जाएगा। 10 अक्तूबर को सुसाइड प्रिवेंशन डे पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया है। -डॉ. एएन प्रसाद, सीएमओ
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