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लॉकडाउन में मरीजों के लिए हनुमान बनी प्रतापगढ़ पुलिस

मुंबई या दिल्ली जैसे दूर के डॉक्टरों से इलाज करा रहे मरीजों के लिए लॉकडाउन बाधा बन गया है। लॉकडाउन में बाहर से दवा मंगाना 'संजीवनी बूटी' लाने जैसा दुष्कर हो गया है। ऐसे मरीजों के लिए बेल्हा में यूपी...

लॉकडाउन में मरीजों के लिए हनुमान बनी प्रतापगढ़ पुलिस
हिन्दुस्तान टीम,प्रतापगढ़ - कुंडाThu, 23 Apr 2020 07:33 PM
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मुंबई या दिल्ली जैसे दूर के डॉक्टरों से इलाज करा रहे मरीजों के लिए लॉकडाउन बाधा बन गया है। लॉकडाउन में बाहर से दवा मंगाना 'संजीवनी बूटी' लाने जैसा दुष्कर हो गया है। ऐसे मरीजों के लिए बेल्हा में यूपी 112 पुलिस 'हनुमान' बन गई है। सिर्फ एक फोन या मैसेज पर बाहर से दवा लाकर मरीजों के घर तक पहुंचा रही है।

पट्टी थाना क्षेत्र के तिगुनाइत निवासी राजेन्द्र पाण्डेय शुगर के मरीज हैं। मुंबई से उनका इलाज चल रहा है। उनकी दवा खत्म होने वाली थी लेकिन लॉकडाउन के कारण वह कुछ कर नहीं पा रहे थे। मुंबई में रह रहे उनके बेटे ने अपने मित्र डॉ. सचिन शिन्दे से यूपी पुलिस को मंगलवार शाम 6:54 बजे एक मैसेज ट्वीट कराया। डीजीपी कार्यालय ने मैसेज एसपी प्रतापगढ़ अभिषेक सिंह को भेजा तो यूपी 112 के प्रतापगढ़ प्रभारी इंस्पेक्टर मृत्युंजय मिश्र सक्रिय हो गए। दवा मंगाकर उन्होंने मैसेज ट्वीट होने के 24 घंटे के भीतर बुधवार शाम करीब साढ़े चार बजे यूपी 112 की पीआरवी 1977 से दीवान शंकरलाल व सिपाही शिवपूजन को भेजकर राजेन्द्र के घर पहुंचाई।

15 दिन में 54 मरीजों के घर पहुंचाई दवा : पहले लॉकडाउन के बीतने के पांच दिन पहले से ही बाहर से दवा मंगाने वाले मरीज परेशान होने लगे। नौ अप्रैल से दवा पहुंचाने में मदद के लिए मरीजों के परिजन पुलिस से मदद मांगने लगे। यूपी 112 के जिला प्रभारी मृत्युंजय मिश्र ने बताया कि प्रतिदिन 4 से 5 मरीजों को उनकी मांग पर दवा पहुंचाई जा रही है। 9 अप्रैल से अब तक जिले में 54 मरीजों के घर दवा पहुंचाई गई है।

विभागीय व निजी संबंधों का इस्तेमाल : यूपी 112 के जिला प्रभारी मरीजों की दवा मंगाने में अपने निजी संबंधों का भी इस्तेमाल करने से नहीं हिचक रहे हैं। मानिकपुर के शेरगढ़ नरवा निवासी राम किशोर का लखनऊ के सिविल अस्पताल से हार्ट का इलाज चल रहा है। उनके रिश्तेदार ने यूपी 112 को ट्वीट कर मदद मांगी तो प्रभारी मृत्युंजय मिश्र ने पर्चा मंगाकर प्रयागराज में बालसन चौराहे पर रहने वाले अपने मित्र डॉक्टर को भेजकर लखनऊ से दवा मंगा ली। पीआरवी 1986 से सिपाही जितेंद्र सिंह के हाथ उन्होंने दवा रामकिशोर के घर पहुंचाई तो निराश हो चुके उनके परिजनों के चेहरे खिल गए।

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