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पीएम मोदी के खिलाफ नामांकन पत्र खारिज करने को HC में चुनौती, कटघरे में वाराणसी जिला प्रशासन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने की चाहत रखने वाले जनहित किसान पार्टी के नेता ने अपना नामांकन पत्र खारिज करने को इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी है। याचिका में जिस तरह के आरोप लगाए गए हैं उससे वाराणसी जिला प्रशासन कटघरे में आ गया है।

Yogesh Yadav हिन्दुस्तान, प्रयागराज विधि संवाददाताWed, 11 Sep 2024 06:18 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने की चाहत रखने वाले जनहित किसान पार्टी के नेता ने अपना नामांकन पत्र खारिज करने को इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी है। याचिका में जिस तरह के आरोप लगाए गए हैं उससे वाराणसी जिला प्रशासन कटघरे में आ गया है। वाराणसी में लोकसभा चुनाव के दौरान नामांकन के लिए पहुंचे अधिकतर प्रत्याशियों ने जिला प्रशासन पर इसी तरह के आरोप लगाए थे। नामांकन के लिए पहुंचे प्रत्याशियों को पहले तीन दिन पर्चा ही दाखिल नहीं करने दिया गया था। इसे लेकर वाराणसी जिला मुख्यालय पर खूब धरना प्रदर्शन भी हुआ था।

मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के निवासी जनहित किसान पार्टी के नेता विजय नंदन ने दावा किया है कि जिला निर्वाचन अधिकारी ने उनके नामांकन पत्र को हलफनामे का कॉलम खाली छोड़ने, कोई नया हलफनामा दाखिल नहीं करने और न ही शपथ कराने के आधार पर गलत तरीके से खारिज कर दिया था। उनका का दावा है कि चेकलिस्ट पर सभी दस्तावेज भारत के चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार संबंधित सहायक निर्वाचन अधिकारी द्वारा ठीक से प्राप्त किए गए। निर्वाचन अधिकारी और सहायक निर्वाचन अधिकारी उम्मीदवार को शपथ दिलाने के लिए जिम्मेदार थे। शपथ लेने के बाद रसीद की मुहर पर हस्ताक्षर करके उम्मीदवार को दिया जाना था। हालांकि ऐसा नहीं किया गया और उनका नामांकन पत्र मनमाने ढंग से खारिज कर दिया गया।

याचिका में आगे कहा गया कि निर्वाचन अधिकारी के नामांकन फॉर्म अस्वीकृति आदेश को ध्यानपूर्वक और विस्तृत रूप से पढ़ने से लिपिकीय गलती का पता चलता है, जिसे जांच के समय सुधारा जा सकता था। याचिका में तर्क दिया गया कि निर्वाचन अधिकारी ने ऐसा न करके अवैधानिकता की है। कहा गया है कि किसी भी उम्मीदवार के नामांकन फॉर्म को केवल तभी खारिज किया जा सकता है, जब घोषणा में कोई तथ्य छिपाया गया हो। याची के मामले में पूरे विवादित आदेश में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया कि याची ने उम्मीदवारी प्रस्तुत करते समय कोई जानकारी छिपाई थी।

कहा गया है कि यदि हलफनामा का कॉलम खाली छोड़ दिया गया तो यह निर्वाचन अधिकारी का कर्तव्य था कि वह गलती को सुधारे। लेकिन निर्वाचन अधिकारी ने लिपिकीय त्रुटि को दूर करने की बजाय प्राकृतिक न्याय का घोर उल्लंघन करते हुए याची की उम्मीदवारी/नामांकन फॉर्म खारिज कर दिया, जो न्यायोचित नहीं था। निर्वाचन अधिकारी ने कानून के अनुरूप काम किया होता तो याची के नामांकन फॉर्म को स्वीकार कर लेते और उसे चुनाव लड़ने की अनुमति देते। याची को चुनाव लड़ने के उसके बहुमूल्य अधिकार से वंचित करके कानून के विपरीत काम किया गया है। ऐसे में निर्वाचन अधिकारी का निर्णय इस न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप किए जाने योग्य है। 

यह भी कहा गया कि सहायक निर्वाचन अधिकारी ने चुनाव आयोग के नियमों का पालन नहीं किया। यही कारण है कि सहायक निर्वाचन अधिकारी चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार आपराधिक दंड के पात्र हैं। याचिका में कहा गया कि भारत के 140 करोड़ नागरिक चुनाव आयोग पर भरोसा करते हैं। 

हमारे देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को चुनने के लिए लोकसभा चुनाव में सांसदों के लिए अपना वोट देते हैं, जो देश का विकास कर सकते हैं। जिसमें जिला निर्वाचन अधिकारी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वाराणसी के जिला निर्वाचन अधिकारी ने भारत के 140 करोड़ नागरिकों का भरोसा तोड़कर एक खास व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के लिए सभी नियमों का उल्लंघन किया है। 

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के अजय राय को 152,513 मतों से हराकर वाराणसी सीट जीती थी। 2014 के बाद से यह उनकी सबसे कम अंतर से जीत थी। पीएम मोदी सहित सात उम्मीदवारों ने वाराणसी सीट से चुनाव लड़ा था क्योंकि जिला निर्वाचन अधिकारी ने कुल 36 नामांकन पत्रों को खारिज कर दिया था।

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