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बोली आधी आबादी, सम्मान और समानता का भाव चाहिए दया का नहीं

हिन्दुस्तान के मतदाता जगरूकता अभियान आओ राजनीति करें में इस बार आधी आबादी का मान सम्मान और उनका अधिकार प्रमुख मुद्दा है। इसके लिए अब नारी की बारी स्लोगन के साथ हिन्दुस्तान आधी आबादी के बीच पहुंचने...

बोली आधी आबादी, सम्मान और समानता का भाव चाहिए दया का नहीं
हिन्दुस्तान टीम,पीलीभीतSun, 10 Feb 2019 12:57 AM
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हिन्दुस्तान के मतदाता जगरूकता अभियान आओ राजनीति करें में इस बार आधी आबादी का मान सम्मान और उनका अधिकार प्रमुख मुद्दा है। इसके लिए अब नारी की बारी स्लोगन के साथ हिन्दुस्तान आधी आबादी के बीच पहुंचने लगा है।

शनिवार को शहर के पुष्प इंस्टीट्यूट में महिलाओं के साथ आयोजित की गई चाय की चौपाल में उन्होंने आधी आबादी से जुड़े मुद्दों पर खुल कर अपनी बात रखी। इसमें उन्होंने कहा आधी आबादी की स्थिति में सुधार तब होगा जब उन्हें हर क्षेत्र में बराबरी का दर्जा मिलेगा। महिलाओं को सम्मान और समानता का भाव चाहिए न कि दया का। उन्होंने 21 वीं शदी में भी आधी आबादी के साथ भेदभाव पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए बेटियों को शिक्षत करना होगा और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना होगा। यह जिम्मेदारी परिवार से लेकर सरकारों तक को पूरी करनी होगी। उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी व्यवस्था पर सवाल उठाए। कड़े कानून होने के बाद भी महिलाओं के साथ अत्याचार की घटनाओं में रोक नहीं लगने पर भी उन्होंने चिंता जताई। इस मुद्दे पर अपनी बात रखने वालों में मेघा क्षेत्री, श्वाती गंगवार, ईशा महेन्द्रू, भावना कटियार, नेहा, वंदना मिश्रा, कामिनी, काजल गिहार, शिवानी कुमारी, अनन्यां तिवारी, आकांक्षा अग्रवाल, रितु गुप्ता, अंजलि सिंह, नेहा पाठक आदि शामिल रहे।

शिक्षा, समाज, वातावरण में बदलाव करना होगा

डा. गीता शुक्ला कहती हैं महिलाओं की स्थिति में बदलाव लाने के लिए हर स्तर पर बदलाव लाने की जरूरत है। इसके लिए शिक्षा, समाज के साथ ही हमारे परिवेश में भी बदलाव की जरूरत है। लोगों को अपनी सोच भी बदलनी होगी। शिक्षित और आत्मनिर्भर महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया बदला है, इसलिए सभी को चाहिए कि वह बेटियों को शिक्षित करने के प्रति सजग हों।

महिलाओं को जानने होंगे अपने अधिकारी

अरीना खान कहती हैं महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा। इसके लिए उन्हें शिक्षित होना जरूरी है। शिक्षित नहीं होने पर ही वह अपने अधिकारों के प्रति सजग नहीं हैं। इससे वह अपने अधिकारों का प्रयोग पूरी तरह नहीं कर पाती हैं। उन्होंने कहा महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जो कानून बनाए गए हैं उनका सही से क्रियान्वयन नहीं हो पाना भी एक बड़ी समस्या है।

नियम बने हैं पर उनकी जानकारी होना जरूरी

डा. मोहनी गुप्ता कहती हैं महिलाओं को लेकर बहुत नियम बने हैं, पर उनका फायदा नहीं मिल पा रहा है। इन नियमों का पूरा लाभ पाने के लिए इनकी जानकारी होना जरूरी है। महिलाओं को उनकी सुरक्षा से जुड़े नियम कानून मालूम होने चाहिए। इसके लिए हर स्तर पर प्रयास होने चाहिए।

21 वीं शदी में भी असुरक्षा का भाव चिंता का विषय

21वीं शदी में भी महिलाओं के भीतर असुरक्षा का भाव बड़ी चिंता का विषय है। यह हमारी व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल उठाता है। महिलाएं और बेटियां आज भी अकेले कहीं आने-जाने से डरती हैं। सभ्य समाज में ऐसा क्यूं है यह सभी को सोचना होगा। हमें ऐसा वातावरण बदलना होगा। यह कहना था रेनू अग्रवाल का।

बच्चों की परवरिश में बदलाव लाना होगा

अल्का सिंह ने कहा महिलाओं के सशक्तिकरण की बात कहीं जाती है पर उनके साथ हर स्तर पर भेदभाव होता है। यह भेदभाव घर से ही शुरू हो जाता है। घरों में आज भी बेटा और बेटी की परवरिश समान भाव से नहीं होती है। बचपन से ही बेटी के भीतर लड़की होने का भाव जगा दिया जाता है। उसके मन में असुरक्षा की भावना तभी से शुरू हो जाती है। इसमें बदलाव की जरूरत है।

समाज में सोच को बदलने की है जरूरत

पूजा सक्सेना कहती हैं महिलाओं की स्थिति में बदलाव के लिए सोच में बदलाव की जरूरत है। इसके लिए भी सभी को जागरूक होना होगा और सभी को प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा आज भी समस्या है, उस पर चर्चा होनी चाहिए और सभी को मिलजुल कर समाधान निकालना चाहिए।

दूर होनी चाहिए डर की भावना

शीनू पांडे कहती है महिलाओं के भीतर जो डर की भावना है उसे दूर करने की जरूरत है। यह भावना दूर कैसे होगी, इस पर विचार करना चाहिए। महिलाओं के प्रति सभी के मन में सम्मान का भाव जगाने की जरूरत है। इसके लिए सभी को सोचना होगा और प्रयास करना होगा।

नियम तो हैं पर इनका डर नहीं है

निर्मला कौर कहती हैं देश में महिलाओं के मान-सम्मान और अधिकारों को लेकर नियम तो हैं, पर उनमें लचीलापन है। इसके चलते ही महिला अपराध पर अंकुश नहीं लग पाता है। अपराध करने वाले नियमों के लचीलेपन का फायदा उठाते हैं और बच निकलते हैं। उन्होंने कहा महिलाओं की स्थिति नए-नए नियम बनाने से नहीं बदलेगी, बल्कि जो नियम हैं उन्हें सख्ती से लागू करने से ही बदल जाएगी।

दया का भाव नहीं, सम्मान का भाव होना चाहिए

समाज में महिलाओं के प्रति दया भाव नहीं बल्कि सम्मान का भाव जगाना है। यह कहना है विनीता का। उन्होंने कहा समाज में आज भी महिलाओं को कमजोर होने का अहसास दिलाया जाता है। इसमें बदलाव की जरूरत है। यह बदलाव घर से ही शुरू होना चाहिए।

महिलाओं के सशक्तिकरण में भ्रष्टाचार भी बाधक

दिव्यांगी अग्रवाल कहती हैं महिलाओं के सशक्तिकरण में भ्रष्टाचार भी बाधक है। भ्रष्टचार के चलते ही कई योजनाओं का लाभ उन तक नहीं पहुंच पाता है। भ्रष्टचार के चलते ही अधिकांश महिलाएं उनसे जुड़ी योजनाओं का लाभ पाने की कोशिश ही नहीं करती है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। महिलाओं को उनसे जुड़ी योजनाओं की जानकारी देने और इनका लाभ हासिल करने के लिए उन्हें जागरूक करने की जरूरत है।

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