ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News उत्तर प्रदेश पीलीभीतटाइगर रिजर्व: संरक्षण का दावा, बजट का टोटा

टाइगर रिजर्व: संरक्षण का दावा, बजट का टोटा

पीलीभीत टाइगर रिजर्व से कहीं बाघ भोजन की तलाश में बाहर आ रहे तो कहीं जंगल के तृणभोजी हरी कोमल घास के लिए असमय ही मौत के मुंह में समा रहे हैं। इससे लग रहा है कि जंगल में वन्यजीवों के आहार की प्राकृतिक...

टाइगर रिजर्व: संरक्षण का दावा, बजट का टोटा
हिन्दुस्तान टीम,पीलीभीतMon, 17 Jun 2019 12:51 AM
ऐप पर पढ़ें

पीलीभीत टाइगर रिजर्व से कहीं बाघ भोजन की तलाश में बाहर आ रहे तो कहीं जंगल के तृणभोजी हरी कोमल घास के लिए असमय ही मौत के मुंह में समा रहे हैं। इससे लग रहा है कि जंगल में वन्यजीवों के आहार की प्राकृतिक व्यवस्था चरमरा गई है।

जंगल के भीतर ही वन्यजीवों को मौसम के अनुसार उनकी भोजन व्यवस्था बनाए रखने के लिए टाइगर रिजर्व प्रशासन ने 80 लाख के ग्रासलैंड का प्रस्ताव तैयार किया था। यह प्रस्ताव स्वीकृति के लिए शासन को भेजा गया था, वहां से इसको अब तक स्वीकृति नहीं मिली है। इससे टाइगर रिजर्व में ग्रासलैंड नहीं बन पाया है। जंगल में चुगने वाले यहां प्राकृतिक घास के मैदान से ही अपना पेट भर रहे हैं।बाघों के अलावा अन्य वन्यजीवों के जंगल से बाहर आने से लग रहा है कि वहां की आहर शृंखला में बदलाव हो रहा है। इसमें बाघ को उसका भोजन नहीं मिल पा रहा तो अन्य वन्यजीवों को भी भोजन संकट से जूझना पड़ रहा है। पेट भरने के लिए चुगने वाले जानवर बाहर आते हैं तो बाघ भी उनका शिकार करने के लिए बाहर आने लगे हैं। वन्यजीवों के बाहर आने से अधिकारियों के सामने इनकी सुरक्षा बड़ी चुनौती बन रही है। जंगल के अंदर ही सभी वन्यजीवों के लिए पानी सहित भोजन की व्यवस्था करने के लिए अधिकारियों ने पिछले साल तैयारी शुरू की थी। इसमें सबसे अहम तृणभोजी के लिए हरी और कोमल घास को बनाए रखना था ताकि वह वन्यजीव भोजन की तलाश में बाहर न जा सके। जंगल में वैसे तो घास कई स्थानों पर मौजूद है और वन्यजीव खाते भी लेकिन यह कम है। जंगल की सभी रेंजों में तृणभोजी हिरन, बारसिंघा और पाड़ा, सावर के लिए ग्रासलैंड के लिए जगह को देखा गया था। यहां पर घास के मैदान विकसित करने के लिए शासन को 80 लाख रुपये का बजट बनाकर भेजा गया। इसमें मुख्य रूप से बराही और महोफ में ग्रासलैंड बनाया जाना है। जंगल में घास की कमी न होने से वन्यजीव भी बाहर नहीं आ सकेंगे और इससे बाघों बाहर आने पर भी नियंत्रण लगने की संभावना होगी। टाइगर रिजर्व ने अपने 80 लाख रुपये के बजट के प्रस्ताव बनाकर पिछले साल शासन को भेजा था। साल भर अधिकारी बजट की मंजूरी का इंतजार करते रहे और पत्राचार भी हुआ। समस्या और सुविधा की हर स्तर पर जानकारी होने के बाद भी शासन स्तर से इस भारी भरकम बजट को मंजूरी नहीं मिल सकी है। मंजूरी न मिलने से जंगल के अंदर घास के मैदान की पूर्ति नहीं हो पा रही। इससे घास खाने वाले वन्यजीवों के सामने जंगल में प्रकृतिक घास के मैदान ही पेट भरने का एकमात्र जरिया हैं।यहां भी घास कभी सूखी तो कभी सख्त मिलती है। हालांकि टाइगर रिजर्व की महोफ और माला रेंज में पुरानी घास को काटा गया था और अब वहां पर कोमल घास निकली है। इससे वन्यजीवों का पेट भर रहा।

..बराही और महोफ रेंज में ग्रासलैंड के लिए पिछले साल अस्सी लाख रुपये का प्रस्ताव बनाकर भेजा गया था। शासन स्तर से यह प्रस्ताव पास नहीं हो सका है। टाइगर रिजर्व में खुद के संसाधन से रेंजों में तृणभोजी वन्यजीवों के लिए घास की उपलब्धता कराई गई है और हिरन सहित अन्य वन्यजीव इसे खाकर पेट भर रहे है।

आदर्श कुमार, उपनिदेशकपीलीभीत टाइगर रिजर्व

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें