सात समंदर पार से पीलीभीत पहुंचा सेंडपाइपर पक्षी
शरद काल शुरू होते ही प्रवासी पक्षियों को तराई की हवा और मौसम रास आने लगा है। हल्की ठंड होने पर यहां पर साइवेरियन पक्षियों की आमद होने लगती है, लेकिन इससे पहले यहां पर कॉमन सेंडपाइपर नामक प्रवासी...
शरद काल शुरू होते ही प्रवासी पक्षियों को तराई की हवा और मौसम रास आने लगा है। हल्की ठंड होने पर यहां पर साइवेरियन पक्षियों की आमद होने लगती है, लेकिन इससे पहले यहां पर कॉमन सेंडपाइपर नामक प्रवासी पक्षी की सबसे पहले आमद हुई है। इनकी संख्या क्या है यह तो अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन पक्षियों ने अपना ठिकाना नहर और शारदा नदी के किनारे जमा लिया है।
सर्दी तक यहां प्रवास करने के बाद पक्षियों के जाने का क्रम मार्च के अंतिम दिनों में शुरू हो जाता है। ठंड की शुरूआत में पीलीभीत टाइगर रिजर्व में कई तरह के विदेशी पक्षियों के आने का क्रम शुरू होता है। इसमें सबसे अधिक संख्या साइवेरियन की होती है। झुंड के झुंड यहां पर शारदा सागर जलाशय में ही कलरब करते है। इसके अलावा अन्य कई प्रजाति के पक्षी भी साम समंदर पार से यहां पर आते है। इन सब में सबसे पहले प्रवास के तौर पर सेंडपाइपर नामक पक्षी आता है। इनकी आमद तराई में हो गई है जो शारदा नदी के किनारे देखे जा रहे है।
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क्या है कामन सेंडपाइपर प्रवासी पक्षी : वाइल्ड लाइफ से जुड़े अख्तरमियां खान ने बताया कि सेन्डपाइपर को हिंदी में जलरंक और क्षेत्रीय भाषा में चाह कहते हैं। यह पक्षी पीलीभीत का प्रमुख विन्टर विजीटर यानी शरद कालीन प्रवासी पक्षी है। गर्मियों में रूस, कजाकिस्तान, यूक्रेन, फिनलैण्ड, स्वीडन, नार्वे, यूके, इटली, जर्मनी,फ्रांस, पोलैण्ड, स्पेन, जापान, मंगोलिया, तुर्की आदि देशों में ब्रीडिंग करता है। इसकी प्रवास यात्रा जुलाई अगस्त से प्रारम्भ हो जाती है और प्रवास का अंत अप्रैल में गर्मी आने पर होता है। प्रवास यात्रा में यह शरद काल में भारतीय वासों के अतिरिक्त आस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, पापुआ न्यूगिनी के अलावा सम्पूर्ण अफ्रीका महाद्वीप में फैल जाता है । विश्व स्तर पर इसकी संख्या में एक कमी को महसूस किया जा रहा है। वैश्विव स्तर पर कार्यरत संस्था आईयूसीएन की रेड डाटा बुक में इसको लीस्ट कन्सर्न (कम चिन्ता वाली) श्रेणी में स्थान दिया है । यूरोप के मछली शिकारियों से इसके आवासों पर असर डाला जा रहा है जबकि भारत में शिकारी इसको मांस के लिए मारते है ।