लॉकडाउन : काम की तलाश में घर को तन्हा छोड़ गए थे, अब अपनों के पड़े कदम तो सूने आंगन हो रहे गुलजार
जब गए थे तो कमाने चिंता थी, अब अपना घर सजाने की। दीवारें दरक रही हैं, छप्पर ढह चुके हैं। दरवाजे पर रखा चूल्हा मुंह चिढ़ा रहा है। धूल के गुबार के बीच अब पहली परीक्षा अपने आशियानें को संवारने की है।...
जब गए थे तो कमाने चिंता थी, अब अपना घर सजाने की। दीवारें दरक रही हैं, छप्पर ढह चुके हैं। दरवाजे पर रखा चूल्हा मुंह चिढ़ा रहा है। धूल के गुबार के बीच अब पहली परीक्षा अपने आशियानें को संवारने की है। जैसा भी है अपना घर है.. तो ये अच्छा। वरना महामारी के दौर में श्रीराम जैसे हजारों, लाखों मजदूर कहां जाते? जिनके लिए खून पसीना बहाया, उन्होंने तो मुंह मोड़ लिया। अब जेब में न तो पैसे हैं और हाथों में रोजगार। जिन प्रदेशों का मेहनत से बनाया, अब उन्हीं ने भूखे पेट लंबे सफर पर भेज दिया।
दु:ख की ऐसी कहानी हर मजदूर की है। बिलसंडा के गांव गौहनिया के श्रीराम अपनी पत्नी ऊषा देवी व चार बच्चों के साथ बिहार के छपरा में ईंटों की पथाई करने गए थे। एक दिन पहले ही गांव पहुंचे। होली के बाद ये परिवार गांव से बिहार गया था। श्रीराम खुद शरीर से कमजोर हैं।
पंद्रह साल की बड़ी बेटी सोनी बेटे से बढ़कर है। पिता और मां का साथ मजदूरी से लेकर गृहस्थी में देती। ईंटों की पथाई में परिवार को 12 से 18 सौ रूपए रोज मिल जाते हैं। बिहार में एक हजार ईंट की पथाई साढ़े सात सौ है। अपने यहां पांच सौ तक। श्रीराम बताते हैं कि जहां काम करते थे, वहां अब तक काम तो मिला मगर अब ईंटे पाथने की भी जगह नही है।
ईंटों का स्टाक बहुत है, मगर बिक्री बिल्कुल नहीं। ऐसे में काम बंद होने लगा। मजबूरन घर आना पड़ा। दो दिन से घर को ही संवार रहे हैं। पत्नी बेटी तालाब से चिकनी मिट्टी लाकर दीवार को संवार रही हैं। बोले: अब यहीं रहेंगे। बाहर बहुत मुश्किल है। जो मिलेगा उसकी में गुजर करेंगे। राशन पानी के साथ गृहस्थी जुटाने में पूरा परिवार जुटा है। सूने घर का आंगन फिर से रोशन हो रहा है।
सरकार की सुविधाओं से जिंदगी आसान
महामारी के इस दौर में सरकार की सुविधाएं भी बड़ी मददगार हैं। बिहार से लौटे श्रीराम के पास राशनकार्ड है। उससे उन्हें राशन मिल रहा है। उज्जवला योजना का सिलेंडर है गैस फ्री मिल रही है। गरीब थे आवास तीन साल पहले ही मिल गया। मनरेगा का जाबकार्ड है ऐसे में काम भी आसानी से मिल जाएगा। खुद श्रीराम स्वीकारते हैं कि इस दौर में बाहर के दस से घर के पांच अच्छे।