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वन्यजीवों की तस्करी रोकने के लिए आगे आए कई विभाग

विश्व प्रकृति निधि और वन विभाग के संयुक्त प्रयास से पेंगुलिन के अवैध व्यापार के संबंध में अंर्तविभागीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में पेंगुलिन प्रजाति के वन्जीव की जानकारी दी गई। इसमें ...

वन्यजीवों की तस्करी रोकने के लिए आगे आए कई विभाग
हिन्दुस्तान टीम,पीलीभीतFri, 03 May 2019 01:14 AM
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विश्व प्रकृति निधि और वन विभाग के संयुक्त प्रयास से पेंगुलिन के अवैध व्यापार के संबंध में अंर्तविभागीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में पेंगुलिन प्रजाति के वन्जीव की जानकारी दी गई। इसमें वन्यजीव के अवैध व्यापार के नेटवर्क के बारे में कार्यशाला में मौजूद लोगों को विस्तार से बताया गया।

पीलीभीत टाईगर रिजर्व मुख्यालय में आयोजित कार्यशाला में वन्यजीव विशेषज्ञ डा. बोपन्ना ने पेंगुलिन और उसके व्यापार के बारे में जानकारी दी। उन्होंने प्रोजेक्टर के माध्यम से बताया कि कार्यशाला का उद्ेश्य वन्यजीवों के अंगों के अवैध कारोबार को रोकने के साथ ही उनके प्रति जागरूकता लाना है। इसलिए इससे जुडे सभी विभागों को आमंत्रित किया गया है, क्योंकि रेलवे और पोस्ट आफिस से भी पार्सल के माध्यम अवैध ढंग से इनका आदान प्रदान हो जाता है। इस कार्यशाला से उनको भी अवैध व्यापार को रोकने के लिए किये जाने वाले प्रयासों की जानकारी मिलेगी। विश्व प्रकृति निधि के तराई आर्क लैंड स्कैप परियोजना के परियोजना समन्वयक डा.मुदित गुप्ता ने कहा कि डॉ.बोपन्ना ने इस क्षेत्र में बहुत कार्य किया है। डॉ.बोपन्ना ने बताया कि पेंगुलिन भारत के सभी क्षेत्रों में पाया जाता हैं।

यह जानवर जंगल और जंगल के बाहर भी पाया जाता है। पेंगुलिंन की आठ प्रजातियां होती है। इनमें से चार प्रजातियां एशिया और चार प्रजातियां अफ्रीका में पाई जाती है। गुजरात से लेकर असम तक कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पेंगुलिन मिलती है। दस से पंद्रह किलों वजन की तथा चार फीट तक इसकी लंबाई होती है। इसकी जीभ पांच फीट की होती है। इसके दांत नहीं होते। पेंगुलिन दो तीन साल में एक बार बच्चा जन्म देती हैं। उन्होंने बताया कि इसका शिकार धुंआ देकर, फंदा लगाकर किया जाता है। वन कर्मियों को भले ही इसकी जानकारी न हो, लेकिन शिकारियों को इसके ठिकानों की जानकारी होती है। उन्होंने बताया कि इस प्राणी के शैल का व्यापार होता है। वहीं चीन और वियतनाम में इसका मांस भी खाया जाता है। एक पेंगुलिन से 300 से चार सौ ग्राम शैल या स्कैल निकलते है। इसकी सबसे अधिक मांग चीन और वियतनाम में होती है। चीन में पारंपरिक दवाओं में इसका प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि देश में मणिपुर में यह एकत्रित किया जाता है जहां से इसे म्यांमार और बांग्लादेश के रास्ते चीन भेजा जाता है। उन्होंने बताया कि अब पिथौरागढ के रास्ते भी चीन जाने लगा है। डॉ.बोपन्ना ने बताया कि पक्षियों, कछुओं, मगरमच्छ, बाघ तथा तेंदुए की खाल की तस्करी भी की जा रही है।

इस अवैध व्यापार में इंडोनेशिया सबसे नंबर एक और भारत नंबर तीन पर आता है। उन्होंने क्या करें और क्या सावधानियां बरते इस पर विस्तार से प्रकाश डाला। कार्यशाला में टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक आदर्श कुमार,अपर पुलिस अधीक्षक रोहित मिश्र, माधौटांडा के प्रभारी निरीक्षक उमेश सोलंकी, पीलीभीत के पोस्टमास्टर, रेलवे के सहायक अभियंता, जीआरपी के प्रभारी निरीक्षक, माला रेंजर दिलीप श्रीवास्तव, महोफ रेंजर गिर्राज सिंह , बराही के वजीर हसन, हरीपुर के रेंजर राजकुमार शर्मा, एसएसबी की 49 वाी वाहिनी के कई अधिकारी मौजूद रहे। कार्यशाला में विश्व प्रकृति निधि के परियोजना अधिकारी नरेश कुमार, सहायक परियोजना अधिकारी कन्धई लाल, राहुल, प्रेम कुमार ने सहयोग किया।

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