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पीलीभीत में अब घरेलू हिंसा रोकने में मददगार होंगी आशा, खबर में जानें कैसे

गांव गांव में महिलाओं और शिशुओं की सेहत को संवारने के साथ ही अब आशा बहुएं घरेलू और उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर भी महिलाओं का जागरूक करेंगी। आशा गांव में महिलाओंं के बीच जाकर उनको हिंसा से बचने और...

पीलीभीत में अब घरेलू हिंसा रोकने में मददगार होंगी आशा, खबर में जानें कैसे
हिन्दुस्तान संवाद,पीलीभीतWed, 01 Jan 2020 01:14 PM
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गांव गांव में महिलाओं और शिशुओं की सेहत को संवारने के साथ ही अब आशा बहुएं घरेलू और उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर भी महिलाओं का जागरूक करेंगी। आशा गांव में महिलाओंं के बीच जाकर उनको हिंसा से बचने और उत्पीड़न होने वाली महिला से मिलकर उसकी बातों को सुनकर जागरूक करेंगी। गांव में जाकर आशा किस तरह से महिलाओं को घरेलू हिंसा से दूर कर स्वस्थ्य बनाएगी इसके लिए आशाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है।

शासन ने गांव की महिलाओं की बीमारी और सुरक्षित प्रसव को लेकर जिस मंशा के साथ आशा बहुओं की तैनाती की थी वह सफल हो गई। मौजूदा समय में आशा गांव की महिलाओं और स्वास्थ्य विभाग के बीच की अहम कड़ी के रूप में जानी जा रही है। इससे सुरक्षित संस्थागत प्रसवों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है।गांव में जिन महिलाओं के साथ शारीरिक और मानसिक उत्पीडन होता है उससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।  

प्रभावों के बारे में  बात करते हुए महिला अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में न बता पाए, लेकिन आशाओं के घर घर जाने से उन्हें उनके घर की सारी जानकारी मिलती रहती है। इसी सोच के साथ आशाओं को घरेलू हिंसा रोकने और महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए प्रेरित करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसमें आशाओं को शारीरिक हिंसा, यौनिक हिंसा,आर्थिक हिंसा से संबंधित जानकारी दी जाएगी। आशाओं को अलग अलग हिंसा के बारे में विस्तार से जानकारी देकर गांव में महिलाओं से मिलकर समाधान करने और जागरूक करने के लिए कहा गया है। आशाओं को हर ब्लाक में प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

हिंसा के रूप और लक्षण

शारीरिक हिंसा:-  थप्पड़ मारना, कट पिट जाना, दांत काट लेना, बाल खींचना, मुक्का मारना, लात मारना, हड्डी तोड़ना या बिना हथियार से चोट पहुंचाना, तेजाब से हमला करना, गला घोटना।
यौनिक हिंसा:- यौनिक हमले बलात्कार या बलात्कार की कोशिश करना ,जबरन यौन सम्पर्क या ऐसी कोई गतिविधि, छेड़छाड़ करना, पीछा करना, जबरन विवाह या बाल विवाह करना।
आर्थिक हिंसा:-पुश्तैनी संपत्ति और पैसों से जुड़े अधिकार ना देना, भोजन, कपड़ा, शिक्षा, स्वास्थ्य सभी से वंचित  रखना, महिलाओ को काम करने से रोकना और खर्च हुए पैसों का हिसाब मांगना इत्यादि।

आशाओं को हिंसा के प्रति महिलाओं को जागरूक करना और इसके लिए शासन स्तर से चल रहे कार्यक्रम और सुरक्षा के तरीकों की जानकारी देने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। इससे जहां हिंसा की घटनाओं पर रोक संभव होगी तो महिलाओं की सेहत के साथ ही शिशुओं की भी देखभाल हो सकेगी।

डा. सीएम चतुर्वेदी, जिला प्रतिरक्षण अधिकारी  

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