मजहब नहीं रिश्तों में महकती है यारी
बचपन में पढ़ाई की उम्र के साथ जवान हुए और अब बुजुर्ग होकर कई बसंत देख चुके दो यारों के बीच न कोई मजहब की दीवार है न ही किसी मुद्दे पर मन में कोई...
पीलीभीत। बचपन में पढ़ाई की उम्र के साथ जवान हुए और अब बुजुर्ग होकर कई बसंत देख चुके दो यारों के बीच न कोई मजहब की दीवार है न ही किसी मुद्दे पर मन में कोई गिला शिकवा। दोनों ही दोस्तों के बारे में अक्सर लोग चर्चाएं करते हैं। कहते हैं कि दोस्ती हो तो अशोक और तौसीफ जैसी।
अगस्त माह के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे पर दोनों की ही बात मौजूं रही। छात्र जीवन से एक दूसरे के साथ अशोक कुमार शमसा और तौसीफ अहमद कदीरी ने साथ साथ ही जिंदगी के अनुभव किए। दोनों के ही परिवारों में इतना सौहार्द है कि लोग इसे मिसाल बताते हैं। मोहल्ला मोहम्मद फारुख के निवासी अशोक कुमार शमसा पढ़ाई के बाद प्रतिष्ठित वकील बन गए और तौसीफ अहमद कदीरी उम्दा टेलरिंग के लिए जाने जाते थे। छात्र जीवन में राजनीति की बात हो या आपातकाल...। जीवन के कई बसंत देख चुके तौसीफ की उम्र 65 तो वहीं अशोक कुमार शमसा 75 के करीब है। दोनों ही बताते हैं जिंदगी या परिवार के कुछ भी महत्वपूर्ण मसले हों तो साथ में मशविरा जरूर करते हैं। तौसीफ कहते हैं कि 65 की उम्र है तो करीब साठ साल तो हमारी दोस्ती को हो गए होंगे। पर चूंकि हम नंबरों में विश्वास नहीं रखते हमारा तो याराना है। अधिवक्ता अशोक कुमार शमसा बताते हैं कि किसी भी मुश्किल घड़ी में हम एक साथ ही रहें। बात चाहे आपातकाल की हो अथवा निजी जिंदगी की। हम दोनों ही एक दूसरे के घर बेरोकटोक आते जाते हैं। परिवार में भी यही सिलसिला है। एक दूसरे के संबंध और पुरानी दोस्ती का अदब परिवार के सदस्य भी करते हैं।
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