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जिले की स्वास्थ्य सेवाओं को इसलिए नहीं लग सके पंख

स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर करोड़ों का बजट हजम करने वाला स्वास्थ्य विभाग खुद वेंटिलेटर पर है। जिले की तरीबन 20 लाख की आबादी को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहय्या कराने की जिम्मेदारी 42 डाक्टरों के कंधों पर है।...

जिले की स्वास्थ्य सेवाओं को इसलिए नहीं लग सके पंख
हिन्दुस्तान टीम,पीलीभीतWed, 26 Dec 2018 01:46 AM
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स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर करोड़ों का बजट हजम करने वाला स्वास्थ्य विभाग खुद वेंटिलेटर पर है। जिले की तरीबन 20 लाख की आबादी को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहय्या कराने की जिम्मेदारी 42 डाक्टरों के कंधों पर है। सरकारी स्वास्थ्य सुविधा के यह हालात सरकार के वादों और दावों की हकीकत खुद-ब-खुद बयां कर देते हैं।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का दावा है कि जिले में सभी योजनाओं का सही से संचालन हो रहा है। जनवरी 2018 की शुरुआत से ही शासन ने सरकारी अस्पतालों लिए कई योजनाएं शुरू की। करोडों का बजट भी पास किया। इससे सुविधाएं बढ़ाई गई। डाक्टरों की कमी से शासन को लंबे समय से अवगत कराया जा रहा है पर अब तक तैनाती नहीं हो सकी। आलम यह है कि डाक्टरों की कमी से जिला अस्प्ताल परिसर में बने ट्रामा सेंटर, बर्न युनिट के अभी तक ताले भी नहीं खुल सके हैं। इनको बनाने में करोड़ों की लागत खर्च होने के बाद भी मरीजों को सुविधा नहीं मिल पा रही है। इससे मरीजों को यहां से बाहर जाना पड़ रहा है। देहात क्षेत्र के भी सरकारी अस्पतालों का भी यही हाल बना है। यहां भी सुविधाओं को मरीजों तक पहुंचाने के लिए डाक्टर नहीं है। खास बात को यह है कि जनप्रतिनिधि अपने-अपने स्वार्थ को लेकर डाक्टरों का तबादला तो कराते रहे, पर तैनाती नहीं करा सके हैं। एक साल में लागू योजनाओं की बात करे तो यहां पर सीटी स्केन के अलावा जन औषधी केन्द्र और आयुष्मान भारत योजना शुरू हो सकी हैं।

जिला महिला और पुरुष अस्पताल पर हर दिन सैकड़ों मरीज पहुंचते हैं। इसके अलावा सीएचसी और पीएचसी में भी मरीजों की संख्या सैकड़ों में रहती है। सरकारी स्वास्थ्य सेवा की बात करें तो जिले में आठ सीएचसी, 20 न्यू पीएचसी, एक ब्लाक लेबल पीएचसी, 199 सब सेंटर स्थापित हैं। यहां डाक्टरों के स्वीकृत 107 पदों में से केवल 42 डाक्टर कार्यरत हैं। नर्स और एएनएम के सवा दो सौ स्वीकृत पदों में मौजूदा समय में 133 तैनात हैं। आबादी के हिसाब से पांच हजार पर सब सेंटर, 30 हजार आबादी पर पीएचसी और एक लाख पर सीएचसी होनी चाहिए। अस्पतालों में मूलभूत सुविधाएं तो हैं, पर इन्हें संचालित करने के लिए स्टाफ का ही टोटा है। एनएचएम की दर्जन भर योजनाओं का संचालन भी केवल संविदा स्टाफ के जरिए हो रहा है।

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