
प्रो. वीरभद्र मिश्र के संगीत गुरु थे पंडित छन्नूलाल, संकटमोचन मंदिर जाकर सिखाते थे स्वर-साधना
संक्षेप: पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन हो गया है। पंडित छन्नूलाल प्रो. वीरभद्र मिश्र के संगीत गुरु थे। छन्नूलाल संकटमोचन मंदिर जाकर महंत वीरभद्र को स्वर-साधना सिखाते थे।
प्रसिद्ध गायक पं. छन्नूलाल मिश्र का निधन हो गया है। पद्मविभूषण पं. छन्नूलाल मिश्र का जीवन संकटमोचन मंदिर और वहां की परंपराओं से जुड़ा रहा। वह वर्षों तक संकटमोचन संगीत समारोह के प्रमुख आकर्षण रहे। उनके जीवन की एक विशेष कथा यह रही कि तत्कालीन महंत प्रो. वीरभद्र मिश्र से गहराई से जुड़े रहे। महंत जी शास्त्रीय संगीत के बड़े रसिक थे और उन्होंने पंडित जी को अपना गुरु माना। जीवन के लंबे काल तक सप्ताह में दो बार पंडितजी संकटमोचन मंदिर में जाकर महंत वीरभद्र मिश्र को स्वर–साधना सिखाते थे। यह गुरु–शिष्य परंपरा केवल संगीत की शिक्षा भर नहीं थी, बल्कि आत्मा और श्रद्धा का संवाद भी था।

प्रो. वीरभद्र मिश्र पंडित छन्नूलाल को हर संभव सहयोग और संरक्षण देते रहे, और इसीलिए पंडित जी भी स्वयं को संकटमोचन का आजीवन गायक मानते रहे। डीएवी डिग्री कालेज के अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अनूप मिश्र कहते हैं कि पंडित छन्नूलाल मिश्र केवल गायक नहीं थे, वे काशी की धरोहर थे। उनकी गायकी में बनारस की गलियां, घाट, उत्सव, लोकगीत, और मां गंगा का प्रवाह सुनाई देता था।
आज उनका जाना संगीत की दुनिया के लिए अपूरणीय क्षति है। परंतु यह भी सत्य है कि उनके स्वर, उनकी ठुमरी, उनकी कजरी और उनका गाया मानस, बनारस और भारत की आत्मा में सदा गूंजता रहेगा। पंडित जी ने ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती और होरी को जिस सहजता और आत्मीयता से गाया, वह उन्हें शास्त्रीय संगीत की भीड़ में अलग पहचान देता है। उनकी आवाज़ में गंगा–घाटों की मिठास, बनारसी बोली की आत्मीयता और लोक–संस्कारों की गहराई थी। वे केवल मंचीय कलाकार नहीं थे, बल्कि शास्त्रीय संगीत को लोकजीवन से जोड़ने वाले सेतु भी थे। पंडित जी ने तुलसीकृत रामचरितमानस को अपने स्वरों में गाकर अनगिनत लोगों के हृदय तक पहुंचाया। उनका गाया मानस केवल संगीत नहीं था, बल्कि भक्ति और लोकमंगल की साधना थी।





