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इतिहास ने अपने को दोहराया: चौधरी चरण सिंह के बाद अजित सिंह भी मुजफ्फरनगर से चुनाव हारे

कहते हैं इतिहास अपने को दोहराता है। यह कहावत मुजफ्फरनगर में सटीक साबित हुई। पांच दशक पूर्व 1971 में सारे समीकरण अपने पक्ष में देखकर चौधरी चरण सिंह मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए आए थे...

इतिहास ने अपने को दोहराया: चौधरी चरण सिंह के बाद अजित सिंह भी मुजफ्फरनगर से चुनाव हारे
हिन्दुस्तान टीम,मुजफ्फर नगरFri, 24 May 2019 02:18 PM
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कहते हैं इतिहास अपने को दोहराता है। यह कहावत मुजफ्फरनगर में सटीक साबित हुई। पांच दशक पूर्व 1971 में सारे समीकरण अपने पक्ष में देखकर चौधरी चरण सिंह मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए आए थे और जीवन के पहले लोकसभा चुनावों में उन्हें हार मिली थी।

अब 2019 में उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह महागठबंधन की ताकत के साथ पूरी व्यूह रचना करके पहली बार मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए आए पर उनके चक्रव्यूह को भाजपा के संजीव बालियान ने तोड़कर जीत दर्ज की। चौधरी अजित की हार से रालोद समेत महागठबंधन दल बसपा और सपा के नेता भी सकते में है।

रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वेस्ट यूपी की राजनीति में बड़ा नाम चौधरी अजित सिंह ने एक साल पहले से ही मुजफ्फरनगर सीट पर चुनाव लड़ने के लिए व्यूह रचना करनी प्रारंभ कर दी थी। वह अपने जीवन के 79 वर्ष पूरे कर 80वां जन्मदिन मनाकर 13 फरवरी 2018 को मुजफ्फरनगर आए थे और यहां पर रात्रि विश्राम कर दो दिन तक कार्यक्रम कर लोगों से सीधा जनसंवाद किया।

2013 के दंगे के बाद अलग हो गए जाट-मुस्लिम समीकरण को फिर से जिंदा करने के लिए भाजपा और मोदी पर सीधा प्रहार करते हुए कहा था कि वह यहां भाजपा को दफन करने आए हैं। चौधरी अजित सिंह ने तब 2014 में देश में भाजपा की जीत का श्रेय नरेंद्र मोदी की लहर को नहीं बल्कि मुजफ्फरनगर दंगे को दिया था और स्पष्ट कहा था कि मुजफ्फरनगर से ही भाजपा को केंद्र की सत्ता मिली और वह भाजपा को यहीं पर दफन कर केंद्र की सत्ता से बेदखल करेंगे।

इसके बाद उन्होंने एक साल में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट की पांचों विधानसभा सीटों पर जनसंवाद, जनसभा व जनसंपर्क कर चुनाव लड़ने की व्यूह रचना तैयार करनी शुरू कर दी थी। उन्होंने मुस्लिमों को रुझाने के लिए भाजपा और नरेंद्र मोदी पर चुभते हुए तीर चलाए। बार-बार भाजपा को दफन करने की बात कही।

मुस्लिम नेताओं के साथ कार्यक्रम करने पर भाजपा सांसद संजीव बालियान ने भी चौधरी अजित सिंह के इरादे भांप लिए थे और दंगे के बाद फर्जी नामजदगी का दंश झेल रहे हजारों जाट परिवारों के बीच अपनी सक्रियता बढ़ाई। उन्होंने मुजफ्फरनगर दंगे के मामले वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कराई। जो जाट मतदाता चौधरी चरण सिंह के जमाने से ही रालोद का परंपरागत समर्थक था, उसमें विभाजन कर दिया।

रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने भाजपा के खिलाफ मुजफ्फरनगर में चक्रव्यूह की रचना तब की, जब वह महागठबंधन में शामिल होने के बाद मुजफ्फरनगर की सीट रालोद के खाते में लेने में सफल रहे और इसके बाद उन्होंने कांग्रेस को भी तैयार कर लिया कि वह किसी भी दशा में उनके खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारे। इससे भाजपा और रालोद के बीच सीधा मुकाबला सिमट गया।

मुस्लिमों के पास कोई विकल्प नहीं रहा कि वह रालोद के अलावा कहीं अन्य वोट कर सकें। इसके बावजूद मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान ने दंगे के मुकदमे वापसी के अस्त्र को लेकर जाट बिरादरी के बीच जमकर काम किया। छह साल पहले राजनीति में आए और पिछले चुनावों में रिकार्ड मतों से जीतकर वेस्ट यूपी के भाजपा के बड़े नेता बने संजीव बालियान से चौधरी अजित सिंह पार नही पा पाए। अंतिम चरण तक उतार-चढ़ाव वाले कड़े मुकाबले में चौधरी अजित सिंह को बहुत कम अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा।

रालोद से जाट प्रत्याशी की हार का मिथक बना रहा

चौधरी अजित सिंह की हार के साथ ही यह मिथक भी बना रहा, जिसमें कहा जाता था कि मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से जाट प्रत्याशी केवल भाजपा के टिकट पर ही जीतकर लोकसभा में जा सकता है। रालोद के टिकट पर इससे पूर्व 1971 में खुद चौधरी चरण सिंह (तब दल का नाम बीकेडी था) और 2009 में भाजपा गठबंधन से रालोद टिकट पर दिग्गज अनुराधा चौधरी चुनाव लड़ चुके हैं। दोनों चुनाव हार गए थे।

भाजपा ने 1991 में राम लहर में नरेश बालियान, 1996 और 1998 में लगातार सोहनबीर सिंह व 2014 में संजीव बालियान के रूप में चार बार जाट प्रत्याशियों के रूप में जीत पाई। अब चौधरी अजित सिंह की हार के साथ ही यह मिथक बरकरार रहा कि रालोद टिकट पर जाट प्रत्याशी मुजफ्फरनगर सीट से नहीं जीत सकता।

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