ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News उत्तर प्रदेश मुरादाबादहिन्दुस्तान कवि-सम्मेलन: हो मज़हब कोई भी सीने में हिन्दुस्तान रखते हैं... VIDEO

हिन्दुस्तान कवि-सम्मेलन: हो मज़हब कोई भी सीने में हिन्दुस्तान रखते हैं... VIDEO

अनुशासन पुराना होकर नियम बन जाता है। नियम पुराना होकर कानून बन जाता है। कानून पुराना होकर परंपरा बन जाता है। परंपरा पुरानी होकर संस्कृति बन जाती है। संस्कृति पुरानी होकर सभ्यता बन जाती है। इसी सभ्यता...

अनुशासन पुराना होकर नियम बन जाता है। नियम पुराना होकर कानून बन जाता है। कानून पुराना होकर परंपरा बन जाता है। परंपरा पुरानी होकर संस्कृति बन जाती है। संस्कृति पुरानी होकर सभ्यता बन जाती है। इसी सभ्यता...
1/ 4अनुशासन पुराना होकर नियम बन जाता है। नियम पुराना होकर कानून बन जाता है। कानून पुराना होकर परंपरा बन जाता है। परंपरा पुरानी होकर संस्कृति बन जाती है। संस्कृति पुरानी होकर सभ्यता बन जाती है। इसी सभ्यता...
अनुशासन पुराना होकर नियम बन जाता है। नियम पुराना होकर कानून बन जाता है। कानून पुराना होकर परंपरा बन जाता है। परंपरा पुरानी होकर संस्कृति बन जाती है। संस्कृति पुरानी होकर सभ्यता बन जाती है। इसी सभ्यता...
2/ 4अनुशासन पुराना होकर नियम बन जाता है। नियम पुराना होकर कानून बन जाता है। कानून पुराना होकर परंपरा बन जाता है। परंपरा पुरानी होकर संस्कृति बन जाती है। संस्कृति पुरानी होकर सभ्यता बन जाती है। इसी सभ्यता...
अनुशासन पुराना होकर नियम बन जाता है। नियम पुराना होकर कानून बन जाता है। कानून पुराना होकर परंपरा बन जाता है। परंपरा पुरानी होकर संस्कृति बन जाती है। संस्कृति पुरानी होकर सभ्यता बन जाती है। इसी सभ्यता...
3/ 4अनुशासन पुराना होकर नियम बन जाता है। नियम पुराना होकर कानून बन जाता है। कानून पुराना होकर परंपरा बन जाता है। परंपरा पुरानी होकर संस्कृति बन जाती है। संस्कृति पुरानी होकर सभ्यता बन जाती है। इसी सभ्यता...
अनुशासन पुराना होकर नियम बन जाता है। नियम पुराना होकर कानून बन जाता है। कानून पुराना होकर परंपरा बन जाता है। परंपरा पुरानी होकर संस्कृति बन जाती है। संस्कृति पुरानी होकर सभ्यता बन जाती है। इसी सभ्यता...
4/ 4अनुशासन पुराना होकर नियम बन जाता है। नियम पुराना होकर कानून बन जाता है। कानून पुराना होकर परंपरा बन जाता है। परंपरा पुरानी होकर संस्कृति बन जाती है। संस्कृति पुरानी होकर सभ्यता बन जाती है। इसी सभ्यता...
हिन्दुस्तान टीम,मुरादाबादWed, 31 Jan 2018 02:47 PM
ऐप पर पढ़ें

अनुशासन पुराना होकर नियम बन जाता है। नियम पुराना होकर कानून बन जाता है। कानून पुराना होकर परंपरा बन जाता है। परंपरा पुरानी होकर संस्कृति बन जाती है। संस्कृति पुरानी होकर सभ्यता बन जाती है। इसी सभ्यता और शब्द संसार के साथ साहित्य का सृजन होता है। सृजन का कभी समापन नहीं होता। ये कल्पना की यात्रा का सफर था। कल्पना को शब्दों ने साकार किया। शब्दों को बंध ने आकार दिया। बंध को छंद ने युतिमय बनाया। छंद को लय का साथ मिला। लय को ताल ने गुनगुनाया। ताल को गीत का संग मिला। गीत को प्राणों में उतरने वाले संगीत का साथ मिला। इन सबने मिलकर हिन्दुस्तान कवि-सम्मेलन का आगाज किया।

 

हिन्दुस्तान की ओर से आयोजित कवि-सम्मेलन में साहित्य के रंग समाज के विविध रंगों से सराबोर होकर देर रात तक बरसे। होटल ड्राइव-इन-24 में आयोति कवि-सम्मेलन में हास्य के साथ ही व्यंग्य और श्रंगार के साथ ओज और तेज में समाहित देश भक्ति के रूप में व्यक्त होते रहे। श्रोता दाद देते रहे और सामाजिक एफआईआर दर्ज कराने वाले साहित्यकार व लब्धप्रतिष्ठ कविजन अपनी रचनाओं से समाज को दिशा व दशा देते रहे। कवियों की इन आमंत्रित जमात में डॉ. कुंअर बेचैन के साथ ही डॉ. विष्णु सक्सेना, सर्वेश अस्थाना, डॉ. रुचि चतुर्वेदी, पॉपुलर मेरठी, अर्जुन सिसौदिया, सुमनेश सुमन ने कविता रूपी सरिता की ऐसी बयार का प्रसार किया कि जिसमें देर रात तक साहित्य प्रेमी मधुबन की कविता की सुगंध का रसास्वादन करते रहे।

दीप प्रज्ज्वलन संग आरंभ

कवि-सम्मेलन की शुरुआत दीप जलाकर की गई। आमंत्रित कविजन के साथ ही आमंत्रित अभ्यागतों ने दीप जलाकर कवि-सम्मेलन की शुरुआत की। मां शारदा की स्तुति कवियित्री डॉ. रुचि चतुर्वेदी ने प्रस्तुत की। इसके बाद अतिथियों का स्वागत किया गया। कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता डॉ. कुंअर बेचैन ने की। संचालन हास्य व व्यंग्य के कवि सर्वेश अस्थाना ने की। इस अवसर पर योगेंद्र वर्मा व्योम, विवेक निर्मल, बाबा संजीव आकांक्षी, फ्रीडम फाइटर संगठन के प्रदेश प्रभारी मनोज प्रजापति, जोन प्रभारी चरन सिंह, पार्षद अनुभव मेहरोत्रा, ऋषि छावड़ा, वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन गुप्ता आदि समेत बड़ी संख्या में शहर के गणमान्य व साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।

कविता की यूं बही बयार

हास्य व व्यंग्य के सर्वेश अस्थाना ने सादगी से बोला व्यंग्य यूं पढ़ा, किसी एक्टर का फिल्में छोड़कर राजनीति में आने का सिर्फ एक ही कारण है...राजनीति एक्टिंग का सीधा प्रसारण है...। डॉ. कुंअर बेचैन ने अपनी बेचैनी नई नस्ल की परवरिश में कुछ यूं बयां की...नया जो चमन है, इसकी निगरानी भी हो...तुम जो माली हो, तो माली सी निगेहबानी भी हो...तुमने बच्चों के टिफिन में पिज्जा-बर्गर तो रखे...ये नहीं सोचा उनमें अपनी गुड़धानी भी हो...अर्जुन सिसौदिया के तरकश से निकले देशभक्ति से ओतप्रोत देश विरोधी ताकतों को ध्वस्त करने वाला बाण कुछ यूं बोला...दिलों में देश का जज्बा अजब तूफान रखते हैं...वतन पर शैदा होने का सभी अरमान रखते हैं...हम अशफाक, बिस्मिल और ऊधम सिंह के बेटे हैं...हो मजहब कोई भी सीने में हिन्दुस्तान रखते हैं...। डॉ. विष्णु सक्सेना ने मोहब्बत की शिद्दत को यूं बयां किया...जलधार बांटता हूं...पतझर के रास्तों पर मैं बहार बांटता हूं...ये आग का है दरिया...जीना भी बहुत मुश्किल...नफरत के दौर में भी मैं बहार बांटता हूं...। पॉपुलर मेरठी ने मौजूदा सियासत पर यूं तंज कसा...अजब नहीं है जो तुक्का भी तीर हो जाए...फटे जो दूध तो फिर वो पनीर हो जाए...मवालियों को न देखा करो हिकारत से...न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए...। सुमनेश सुमन ने किरदार की हिफाजत को संवारने की नसीहत कुछ यूं की...संवारेगी निखारेगी हंसाएगी रुलाएगी...कभी खुशियां लुटाएंगी कभी कुछ रूठ जाएंगी...किसी के वास्ते दिल में अपने नफरतें न रखना...तुम्हारी सोच ही तुम्हें गिराएगी उठाएगी...।

ये रहे मौजूद

महापौर विनोद अग्रवाल, शिक्षक विधायक डॉ. जयपाल सिंह व्यस्त, डीआईजी ओंकार सिंह, एसपी सिटी आशीष श्रीवास्तव, एडीएम फाइनेंस, लक्ष्मी शंकर सिंह, सिटी मजिस्ट्रेट विनय कुमार सिंह, सीओ कटघर, सुदेश कुमार गुप्ता, टीएमयू कुलाधिपति सुरेश जैन, टीएमयू ग्रुप वाइस चेयरमैन मनीष जैन, आराध्यम से सचिन चौधरी, आकाश ग्रुप से आकाश अग्रवाल, रेडिको खेतान रामपुर से डायरेक्टर केपी सिंह, केडीआरसी के निदेशक, केके मिश्रा, समाजसेवी लता चंद्रा, पीएमएस से मनोज आहूजा, निर्यातक विपिन लोहिया, यस से निर्यातक नीरज गांधी, निर्यातक अमित अग्रवाल, केजीके डिग्री कॉलेज के प्राचार्य डॉ. हरबंश दीक्षित, एमएच डिग्री कॉलेज के प्राचार्य डॉ. विशेष गुप्ता, पवन जैन, डॉ. एमपी सिंह, सरदार गुरजीत सिंह चड्डा, सरदार हरबंस सिंह चड्डा, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की संयोजिका प्रिया अग्रवाल आदि समेत शहर के गणमान्य के साथ ही पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी समेत शहर के जिम्मेदार मौजूद रहे।

नई नस्ल स्मार्ट बने पर मर्यादा का रखे ख्याल

संस्कृति की विकृति में मॉडर्न कल्चर की शिक्षा का पूरा हाथ है। मैं स्मार्टफोन के पुरजोर विरोध में सिर्फ नई नस्ल और कोमल मन के लिए हूं। आपकी जरूरत के मुताबिक उपयोग समझ आता है। बेवजह की जरूरतों का शिकार होने पर आप सिर्फ गर्त में ही जाते हैं। आज हमें इंतजार की आदत नहीं रही। आज की पीढ़ी में धैर्य की कमी है। कला के क्षेत्र में भी यही नजर आता है। याद रखिए, कला का कोई शॉटकर्ट नहीं होता।ॉ

- डॉ. कुंअर बेचैन

कवि वही जो अविचलित होकर लिखे

बाजार का कब्जा अखलाक पर हावी होकर तो दिखाए। हमने गीत लिखे। कल भी लिखे। आज भी लिख रहे हैं। कल भी लिखेंगे। जब तक सांस है, कलम गुनगुनाएगी। अविचलित लिखे और अडिग होकर लिखे। मांग के अनुसार लेखनी जब चलेगी तो समाज का पतन ही होगा। साहित्य जगत में लेखनी के तथाकथित लेखकों से विकृति आई है। पर इंतहा के बाद फिर समाज सत्यता की तरफ वापस आता है। इसका उदाहरण हमारे गीत हैं, हमने खुद को नहीं बदला। सोच बदलने की कोशिश में लगे रहे। नतीजा सामने है। युवा पीढ़ी गीतों को खूब समझ रही है।

डॉ. विष्णु सक्सेना

मौजूदा पीढ़ी का साहित्य में बढ़ा रुझान खुशी की बात

32 साल हो गए मंच पर। हास्य और व्यंग्य में जिंदगी के कई वसंत गुजर गए या यूं कहिए कि हमने ये वसंत शब्द यात्रा के साथ जिए हैं। खुशी की बात ये है कि युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति रुझान बढ़ा है। साहित्य वही है जिसमें समाज का हित हो। पहली बार 1980 में पता चला कि मेरे अंदर एक कवि है। ग्यारहवीं में था, पिता की एक रचना को पैरोडी में तब्दील कर डाला। दाद मिली और वो भी पिता की। मंसूबा बढ़ चला। मनोबल बढ़ चला। बीस दिन बाद अपनी पहली रचना लिखी। आज खुशी है कि ये सफर बदस्तूर जारी है। इसका अर्थ ही ये है कि हमारी मौजूदा पीढ़ी भी साहित्य प्रेमी है।

सर्वेश अस्थाना

साहित्य के बूती ही देश की तरक्की संभव

समाज को दिशा व दशा देने का कार्य साहित्य का है। साहित्य का आधार ही साहित्यकार हैं। साहित्यकार पर अपने कालखंड को यथार्थ रूप में बयां करने की जिम्मेदारी है। यह बात हर किसी को बखूबी समझनी होगी। सही मायनों में हमारे साहित्य के बूते ही देश की तरक्की की रास्ता सरल व सुलभ हो सकता है। इसके लिए हर साहित्यकार को अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाने की आवश्यकता है।

डॉ. सुमनेश सुमन

लेखनी की धार कम न होने दें साहित्यकार

देश के प्रति प्रेम और अनुराग के लिए शिद्दत का अहसास जरूरी है। देश के प्रति कागज पर लेखनी से लिखे शब्दों ने क्या भूमिका निभाई है, ये बताने की जरूरत नहीं है। पर आज क्यूं ऐसा है कि देश विरोधी ताकतें हम पर हावी हो रही हैं। यह चिंतन का विषय है कि कहीं हमारी लेखनी की धार में कोई कमी तो नहीं आ रही। हर साहित्यकार को यह चिंतन करना होगा। इसे धरातल पर अमलीजामा पहनाना होगा। यही सोच देश की तरक्की का सूचक बनेगी।

अर्जुन सिसौदिया

शाब्दिक अनुष्ठान की पवित्रता सिद्ध करें

हिन्दुस्तान के इस शाब्दिक अनुष्ठान ने पत्रकारिता के सकारात्मक पक्ष को उजागर किया है। आज के दौर में क्रिकेट सिनेमा और फैशन को तरजीह दी जाती है। ऐसे में साहित्यिक सरीखा शाब्दिक पवित्र अनुष्ठान हिन्दुस्तान समाचार पत्र की सोच को दर्शाता है। अब यहां के अवाम की जिम्मेदारी भी है कि हम किस राह को अपनाएं। फैसला आपके हाथ। हम जिम्मेदारी निभा रहे हैं। आपके साथ की दरकार है।

डॉ. रुचि चतुर्वेदी

कुदरत की नेमत की हिफाजत करें साहित्यकार

तरक्की को चाहिए नया नजरिया। यही नजरिया साहित्यकार समाज के सामने पेश करता है। यह ताकत और नेमत सिर्फ कुदरत ने साहित्यकार को बख्शी है। कुदरत की इस नेमत की हिफाजत की जिम्मेदारी भी साहित्यकार पर है। इसलिए वक्त शुरू हो चुका है, साहित्यकार का जागकर अब समाज को जगाने की जरूरत है। इसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।

पॉपुलर मेरठी

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें