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डाक से टैरी बेकर पुरस्कार पहुंचा रमन त्यागी के पास, डीएम ने सराहा

डाक से टैरी बेकर पुरस्कार पहुंचा रमन त्यागी के पास, डीएम ने सराहा मेरठ

डाक से टैरी बेकर पुरस्कार पहुंचा रमन त्यागी के पास, डीएम ने सराहा
हिन्दुस्तान टीम,मेरठThu, 24 Sep 2020 12:20 PM
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अमेरिका स्थित विश्व की नदियों के सबसे बड़े नेटवर्क वाटरकीपर एलाइंस ने प्रतिष्ठित टैरी बेकर पुरस्कार की घोषणा की थी। वर्ष 2020 का टैरी बेकर पुरस्कार नीर फाउंडेशन के संस्थापक रमन कांत त्यागी व केन्या के लियो अक्वेनी को दिया था। पुरस्कार लेने के लिए रमन त्यागी कोरोना वायरस संक्रमण के चलते अमेरिका नहीं जा सके। उन्हें यह पुरस्कार डाक के जरिए प्राप्त हुआ। डीएम के बालाजी ने रमन कांत त्यागी को पुरस्कार प्रदान किया और बधाई दी। साथ ही नदियों को लेकर चलाए जा रहे अभियान की सराहना की।

अमेरिका स्थित विश्व की नदियों के सबसे बड़े नेटवर्क वाटरकीपर एलाइंस ने प्रतिष्ठित टैरी बेकर पुरस्कार की घोषणा वाटरकीपर एलाइंस के कार्यकारी निदेशक मार्क यैगी ने की थी। यह संस्था हर दो वर्ष के अंतराल पर उन दो लोगों को पुरस्कृत करती है जो नदी पुनर्जीवन के क्षेत्र में बेहतर काम कर रहे हैं या कर चुके हैं। टैरी बेकर पहले लांग आइलैंड वाटर कीपर रहे। अमेरिका के नदी संरक्षण में इनका अहम योगदान है। उन्हीं के नाम से यह पुरस्कार दिया जाता है। रमनकांत 2016 से इस संस्था से जुड़े हैं।

कोरोना महामारी के चलते इस वर्ष का सम्मेलन ऑनलाइन हुआ। अंतिम दिन 46 देशों के 350 वाटरकीपर्स में से टैरी बेकर पुरस्कार से रमन कांत त्यागी व लियो को सम्मानित किया। रमन त्यागी के अनुसार यह पुरस्कार उन सभी की मेहनत का नतीजा है जिन्होंने नदी संरक्षण में कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दिया है। उन्होंने कहा कि छोटी और बरसाती नदियों के पुनर्जीवन को लेकर जो निराशा है, वह छंट जाए, यही उनका उद्देश्य है और इसी काम में वह जुटे हैं।

नदियों के पुनरुद्धार और नवजीवन देने में योगदान और समर्पण की वजह से लोगों रमनकांत त्यागी को नदी पुत्र भी कहते हैं। मेरठ में परीक्षितगढ़ क्षेत्र के पूठी गांव में 1980 में जन्मे रमन ने वर्ष 2000 से नदी के कार्य शुरू किया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रमुख नदियों में शामिल हिंडन और काली नदी के उनका योगदान इतना सराहा गया कि प्रशंसा में अब तक दर्जनों अवार्ड प्रदान किया जा चुका है। उल्लेखनीय कार्य हिंडन नदी को जीवन दिलाना है। सेटेलाइट मैपिंग और तकनीक अध्ययन के जरिए उन्होंने काली नदी का उद्गम स्थल ढूंढा, जो कि मुजफ्फरनगर के गांव अंतवाड़ा में है। खुदाई के बाद यहां जलधारा फूट पड़ी। जिन ग्रामीणों का इस पर कब्जा था उन्होंने जमीन छोड़ दी।

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