एमडीए पी गया 33 करोड़ 446 दस साल में भी नहीं मिले घर
किराए के मकान में रह रहे राजेन्द्र त्रिपाठी का गुनाह सिर्फ इतना है कि उन्होंने अपना घर बनाने का सपना देखा! आठ साल पहले लोहियानगर में एमडीए की सिद्धार्थ एंकलेव योजना में उन्हें एक प्लॉट आवंटित हुआ।...
किराए के मकान में रह रहे राजेन्द्र त्रिपाठी का गुनाह सिर्फ इतना है कि उन्होंने अपना घर बनाने का सपना देखा! आठ साल पहले लोहियानगर में एमडीए की सिद्धार्थ एंकलेव योजना में उन्हें एक प्लॉट आवंटित हुआ। खून पसीने की गाढ़ी कमाई और लोन के जरिए इसका सारा पैसा चुका रजिस्ट्री भी करा ली पर आज तक उन्हें इस प्लॉट पर कब्जा नहीं मिला। मौके पर खेत हैं और वह किराए के घर में रहने को मजबूर।
एमडीए जैसी संस्था के धोखे का शिकार होने वाले राजेन्द्र अकेले नहीं हैं। उनके जैसे 446 लोगों को 21 दिसंबर 2010 को सिद्धार्थ एंकलेव में प्लॉट आवंटित हुए। तब एमडीए ने सपना दिखाया कि इनर रिंग रोड, मेरठ-दिल्ली एक्सप्रेस-वे, रैपिड रेल जैसे प्रोजेक्ट इस लोकेशन के करीब होंगे। पंद्रह सौ से ज्यादा लोगों ने आवेदन किए और 446 को यहां प्लॉट मिले तो इनकी खुशी का ठिकाना न रहा। पर एमडीए को यह खुशियां शायद मंजूर नहीं थीं। आठ साल के अंदर इन लोगों ने एमडीए को 33 करोड़ रुपये भी दे दिए पर यहां एक इंच काम तक नहीं हुआ। मौके पर खेत और झाड़-झंखाड़ हैं। एक तरफ सड़क भी बनी पर वह भी आधी अधूरी। एमडीए के धोखे का शिकार हुए यह लोग अब कमिश्नर डा. प्रभात कुमार से राहत की उम्मीद में हैं। इन लोगों ने पूरा चिट्ठा तैयार करके एमडीए वीसी और कमिश्नर को भेजा है। उधर एमडीए वीसी साहब सिंह कहते हैं कि कि किसानों के साथ विवाद के चलते कुछ आवंटियों को कब्जे नहीं मिल पाए थे। किसानों के साथ समझौता हो गया है। रास्ता निकल आया है जल्द ही आवंटियों को कब्जे मिलेंगे।