हिन्दी के लिए एक जैसी होनी चाहिए कथनी-करनी
हिन्दी के प्रचार-प्रसार करने में हमें अपनी कथनी और करनी में अंतर नहीं करना चाहिए। जन-जन की भाषा बनाते हुए इसे राष्ट्र भाषा बनाने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा। आज हिन्दी दुनिया में लगातार आगे...
हिन्दी के प्रचार-प्रसार करने में हमें अपनी कथनी और करनी में अंतर नहीं करना चाहिए। जन-जन की भाषा बनाते हुए इसे राष्ट्र भाषा बनाने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा। आज हिन्दी दुनिया में लगातार आगे बढ़ रही है। लेकिन इसके लिए जो प्रयास होने चाहिए वे अभी कम हैं।
सीसीएसयू कैंपस के हिन्दी विभाग में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरीटेज (इन्टेक) और अंतर राष्ट्रीय साहित्य कला मंच हिन्दी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में उक्त बात प्रो.वेदप्रकाश बटुक ने कही। प्रो.हरिश्चंद्र वर्मा की प्रथम पुण्य तिथि पर हुए इस कार्यक्रम में ‘हिन्दी साहित्य की विरासत एवं वर्तमान दिशा पर चर्चा की। एमडी यूनिवर्सिटी रोहतक के प्रो.बलजीत सिंह मलिक ने कहा कि हमें अपने पूर्वजों द्वारा किए गए कार्यों का स्मरण करते रहना चाहिए। यही हमारी धरोहर है। प्रो.वर्मा का मेरठ से गहरा नाता था और वे कालजयी साहित्यकार थे। इन्टेक के संयोजक डॉ.आरके भटनागर ने कहा कि हमें सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं भौगोलिक विरासत का संरक्षण करना चाहिए।
प्रो.महेशचंद्र दिवाकर ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा और इसे राष्ट्र संघ की भाषा बनाने पर जोर दिया। कवि डॉ.राम गोपाल भारतीय ने कहा कि हिन्दी इस देश की पहचान है। हम सबको इस पर गर्व करना चाहिए। डॉ.असलम जमशेदपुरी ने हिन्दी और उर्दू भाषा को आगे बढ़ाने के लिए गंगा-जमुना संस्कृति पर जोर दिया। कार्यक्रम में डॉ.मुन्नालाल शर्मा, सुरेश शुक्ला, जेपी कौशिक, आशुतोष, संजीव चौहान, डॉ.माया मलिक, दीपक शर्मा, सुमनेश सुमन, डॉ.ज्ञानेशदत्त, डॉ.केके बेदिल, यशपाल कोत्यासन, शिवानंद सहयोगी, डॉ.अंजु चौहान, डॉ.विद्या सागर, कुमार पंकज, गीतकार सत्यपाल सत्यम, राजकुमार शर्मा राज सहित अनेक शिक्षक एवं कवि मौजूद रहे।