80 हजार गांव हो चुके गायब, शहर दो समय की रोटी नहीं दे पाते
Meerut News - विदेशी ताकतें भारत में धर्म, जाति और क्षेत्रवाद के नाम पर लड़वा रही हैं। तेजी से हो रहे शहरीकरण से 80 हजार गांव गायब हो गए हैं। सुबुही खान ने कहा कि गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय निशुल्क होना...

विदेशी ताकतें भारत पर नजर टिकाए हुए हैं। वे हमें धर्म, जाति, संप्रदाय और क्षेत्रवाद के नाम पर लड़ाकर फायदा उठाती हैं। तेजी से होते शहरीकरण से देशभर में 80 हजार गांव गायब हो चुके हैं। जमीन बेचकर पैसा तो आएगा, लेकिन यह रुकेगा नहीं। खर्च हो जाएगा। इसलिए जमीन संपदा है। गांव के सामने दो बड़ी समस्याएं हैं। मानसून एवं मार्केट। जलवायु को हमने बिगाड़ दिया है और मार्केट का मकसद केवल पैसा है। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय कैंपस के समाज शास्त्र विभाग में भारतीय गांव के बदलते प्रतिमान विषय पर हुई कांफ्रेंस के उद्घाटन सत्र में यह बात सुप्रीम कोर्ट की चर्चित अधिवक्ता एवं राष्ट्र जागरण अभियान की राष्ट्रीय संयोजिका सुबुही खान ने कही। शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय निशुल्क हो, बाकी नहीं
सुबुही खान ने कहा कि मशीनीकरण और रासायनीकरण समस्याएं है। जिस देश में लाखों बेरोजगार हों वहां रेस्तरां में रोबोट खाना परोसे यह ठीक नहीं है। मशीन का बैलेंस उपयोग जरूरी है। सुबुही खान के अनुसार मनरेगा से किसानों को मजदूर मिलने बंद हो गए। देश में शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय ही फ्री होना चाहिए। अन्य रेवड़ियां समाज को अकर्मण्य बनाती हैं और राजनीति पार्टियां इसे खूब कर रही हैं। कोई किसान नहीं बनना चाहता। शहर दो समय की रोटी नहीं दे पाते। कोरोना में पूरे देश ने दिल्ली में देखा। सुबुही खान के अनुसार यदि हम गांव, गंगा, गाय, खेत, हिमालय से प्रेम नहीं करते तो फिर भारत माता की जय बोलने का कोई मायने नहीं है।
केजरीवाल की नीयत ठीक होती तो अन्ना राष्ट्रपति बनते
आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक ओमपाल ने कहा कि गांव की ताकत है कि अन्ना ने दिल्ली में केजरीवाल दिया। यदि केजरीवाल की नीयत ठीक होती तो अन्ना देश के राष्ट्रपति होते। ओमपाल ने कहा कि राजनीति का चिंतन सीमित होता है। आज सभी राजनेता देशभक्त हैं और इनकी संख्या बढ़ रही है। उन्होंने सरलता के साथ सजगता पर जोर देते हुए कहा कि हमने अतिथि को भगवान माना और इसका हमें खामियाजा भुगतना पड़ा। ओमपाल के अनुसार गांव में मॉडर्न मां हो गई है। शहर और गांव के बीच प्रतिस्पर्धा लगी है। हम सड़क बना रहे हैं और पेड़ काटते चले जा रहे हैं। ना हवा शुद्ध है। ना खानपान। उन्होंने कहा कि कि गांव की ओर ही लौटना पड़ेगा। जमीन की ओर लौटना पड़ेगा। काम आसान नहीं है। देर लगेगी। पर लौटेंगे गांव की ओर ही।
युवा खेती करने को उत्साहित नहीं
पूर्व सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने कहा कि प्री-ब्रिटिश का भारत अलग था। अंग्रेजों के आने से पहले भारत और गांवों की स्थिति भिन्न थी। आज का युवा खेती करने का इच्छुक नहीं है। गांव में रोजगार, उत्पादन, सुविधा पर सोचना पड़ेगा। गांव का मतलब केवल गीतों वाला गांव नहीं है। हमें सभी पक्षों पर सोचने की जरूरत है।
गांव क्यों बदल रहे हैं, यह सोचना होगा
कुलपति प्रो.संगीता शुक्ला ने कहा कि हम कौन हैं और भारत में क्यों जन्म लिया है, यह सोचना पड़ेगा। आज हर दो साल में दशक जितना बदलाव हो रहा है। हम कहां जा रहे हैं यह हमें खुद सोचना होगा। कोई किसी को नहीं सिखा सकता। आज हर कमरे में एक वॉशरूम चाहिए। हम संयुक्त परिवार से एकल परिवार में आ गए। आर्थिक परिवर्तन बहुत तेजी से हो रहा है। गांव क्यों बदल रहे हैं, हमें यह समझना पड़ेगा। हम गांव को भी मॉडर्न शहर में बदल सकते हैं। प्रो.एसएस शर्मा, प्रो.डीके रॉय, प्रो.आलोक कुमार, डॉ.वाईपी सिंह, डॉ.डीएन भट्ट, डॉ.नेहा गर्ग, डॉ.अरविंद सिरोही, डॉ.दीपेंद्र, डॉ.अजीत सिंह, रोहित कुमार, आकाश राठी, अंशुल शर्मा, प्रभात मोरल, प्रणय तिवारी, गरिमा राठी मौजूद रहे।
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