बोले मेरठ : बारिश और बाढ़ ने बढ़ाई दुश्वारियां, गांव छोड़ने को मजबूर हो रहे लोग
Meerut News - बारिश और बाढ़ ने हस्तिनापुर के बस्तौरा गांव को बुरी तरह प्रभावित किया है। गांव में लोग अपने घरों को छोड़ने को मजबूर हैं, क्योंकि गंगा का जलस्तर बढ़ने से सब कुछ जलमग्न हो गया है। 250 परिवार सुरक्षित...
बारिश और बाढ़ ने शहर से लेकर गांवों तक अपना कहर बरपाया है। बारिश के बाद बढ़ी दुश्वारियों के बीच हस्तिनापुर का बस्तौरा गांव आज अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। एक तरफ आसमान से बरसती बारिश, दूसरी ओर गंगा का उफान-दोनों मिलकर इस गांव की खुशियां बहा ले गए हैं। खेत, खलिहान, मकान सब कुछ पानी में डूब चुका है। जिन घरों को लोगों ने पाई-पाई जोड़कर, दिन-रात मेहनत करके बनाया था, आज वही घरौंदे गंगा की धारा में बहते हुए ग्रामीणों की आंखों के सामने लुप्त हो रहे हैं। अब यहां के लोग इस आपदा से राहत की आस में भगवान से दुआ कर रहे हैं, उनका घरौंदा सुरक्षित रहे।
हस्तिनापुर के गांव बस्तौरा में बाढ़ के कारण जिंदगी की जद्दोजहद के लिए जूझ रहे लोगों से हिन्दुस्तान बोले मेरठ टीम ने संवाद किया। उनके दर्द को जानने का प्रयास किया। जहां गांव के बुजुर्ग बताते हैं, कि आज़ादी के बाद से उन्होंने गंगा की कई बाढ़ें देखी हैं, लेकिन इस बार का मंजर अलग है। ‘कभी सोचा भी नहीं था कि हमें अपने ही घर छोड़ने पड़ जाएंगे, कहते हुए उनकी आंखें नम हो जाती हैं। इस बार गंगा का रूख बस्तौरा की ओर हुआ और पूरा मंजर ही बदल गया। गांव की कुल आबादी लगभग साढ़े चार से पांच हजार है। ग्राम प्रधान मनोज कुमार बताते हैं, कि अब तक करीब 250 परिवार अपना सामान समेटकर गांव छोड़ चुके हैं। नंदलाल, पिंकू, बालिस्टर कश्यप, अरुण, सुरेंद्र सिंह, कृष्णपाल, राकेश जैसे अनगिनत परिवार अपने आशियाने छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर चुके हैं। कटान की गति को देखकर लगता है कि जल्द ही पूरा गांव खाली हो जाएगा। कैसे छोड़ें अपना घर, मेहनत से बनाया था बाढ़ की जद में आए ग्रामीणों का कहना है, कि ‘इंसान हो या पक्षी, सभी मेहनत से अपना घर बनाते हैं। उसे छोड़ना दिल को चीर देता है। वर्षों की कमाई और सपनों को जोड़कर जो मकान बने, वे चंद पलों में ढह गए। यह दर्द बस्तौरा के हर व्यक्ति की आंखों से छलक रहा है। गंगा के कटान और लगातार बढ़ते जलस्तर ने ग्रामीणों की रातों की नींद छीन ली है। लोग बताते हैं, कि दिन तो किसी तरह कट जाता है, लेकिन रातभर गंगा की तेज धारा की ‘सांय-सांय सुनकर नींद उड़ जाती है। हर वक्त यही डर सताता है कि कहीं अगली सुबह उनका गांव भी इस बाढ़ की जद में ना आ जाए। सड़क ही जीवन की आखिरी आस लोगों का कहना है कि गंगा क्षेत्र में अधिकतर इलाकों की स्थिति इतनी भयावह है, कि चेतावाला–मखदूमपुर मार्ग पर बस्तौरा के सामने सड़क तक नदी में समा रही है। सड़क ही इस वक्त ग्रामीणों के लिए जीवन की आखिरी दीवार बनी हुई है। ग्रामीण बालू के कट्टे लगाकर पानी के बहाव को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह जुगाड़ कब तक चलेगा, किसी को नहीं पता। रोजी रोटी पर भारी पड़ रही बाढ़ यहां लोगों की स्थिति समुद्र के बीच फंसी नांव की भांति हो गई है। लोगों का कहना है कि बाढ़ की मार केवल हमारे घरों पर ही नहीं, बल्कि रोज़ी-रोटी पर भी पड़ी है। हज़ारों हेक्टेयर जमीन पर खड़ी फसलें जलमग्न हो गई हैं। जिन किसानों ने उधार लेकर बीज डाले थे, उनकी मेहनत डूब चुकी है। वहीं रोज़ कमाने-खाने वाले मजदूर सबसे बड़ी मुसीबत में हैं। काम बंद है, मजदूरी नहीं है, और परिवार का पेट कैसे भरेगा, यह सवाल हर मजदूर के माथे पर शिकन बनकर उभरा है। इन इलाकों में रहने वाला हर शख्स भगवान से राहत की दुआ कर रहा है। इंसान के घर ही नहीं जानवरों के आशियाने भी उजड़े गंगा की इस बाढ़ ने न केवल इंसानों का घर उजाड़ा है, बल्कि जंगलों और जंगली जीवों का जीवन भी अस्त-व्यस्त कर दिया है। हस्तिनापुर रेंजर खुशबू उपाध्याय बताती हैं, कि बाढ़ का असर वन्यजीवों पर भी गहरा पड़ा है। वे भी अपने ठिकानों से दूर इधर-उधर भटक रहे हैं। बस्तौरा गांव का दर्द केवल आंकड़ों की कहानी नहीं है, यह उन हजारों लोगों की हकीकत है जिन्होंने अपनी मेहनत, अपना पसीना और अपनी उम्मीदें इस गांव में बसाई थीं। आज वे अपने ही घर छोड़ने को मजबूर हैं। जलस्तर में हो रही वृद्धि, बढ़ रहा खतरा क्षेत्र में लगातार हो रही बारिश से गंगा नदी के जलस्तर में बुधवार को काफी वृद्धि हो गई, क्योंकि बिजनौर बैराज से एक लाख, 93 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया। वहीं हरिद्वार से भी एक लाख, 90 हजार क्यूसेक तक पहुंचा। जिससे खादर क्षेत्र की स्थिति और खतरनाक हो गई। जहां एक और पुल की क्षतिग्रस्त अप्रोच रोड से पानी का बहाव तेज हो गया, वही बस्तौरा गांव के सामने भी नदी का कटान तेज हो गया। जिससे बस्तौरा गांव के लोगों की चिंता बढ़ गई। ग्रामीणों का दर्द गंगा नदी की बाढ की एक वर्ष की बर्बादी के बाद किसान कई बरसों तक नही उबर पाता है। उसकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो जाती है। - विजय पाल इस वर्ष कुछ किमी तक तटबंध बन गया है, जिस कारण कुछ फसल बच गई, परंतु लगातार हो रही बारिश उसे भी समाप्त करने पर उतारू है। - जोशी इस साल गंगा नदी ने हमारे गांव पर बहुत ज्यादा कहर बरपाया है, जिससे हमारी आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय हो जायेगी। - सतपाल सिंह इतनी उम्र में उन्होंने पहली बार ऐसा मंजर देखा है, कि रात मे सायं-सायं की आवाज सोने नहीं देती, पहली बार गांव से जाना पड़ रहा है। - भागल कौर हमारे संजोए सपने हर बरस गंगा की बाढ़ लील जाती है, जो सोचते हैं कर नही पाते हैं, ये हमारी मजबूरी समझो या फिर हमारी किस्मत। - अशोक इस वर्ष गंगा नदी का रूख हमारे गांव की ओर है, भगवान ही मालिक है, बस हमारे बच्चे और हम लोग सुरक्षित रहें। - राकेश जो लोग खेती करके पालन पोषण कर रहे थे, उनकी जमीन गंगा में कट गई है, अब यही सोचते हैं कि परिवार का गुजारा कैसे होगा। - बलदेव सिंह 65 बरस की उम्र में पहली बार ऐसा देखा है, कि रात दिन बस चिंता सताती रहती है, क्या होगा, बाढ़ कहीं यहां तक तो नहीं आ जाएगी। - मंती देवी उन पर गंगा मैया रहम करें क्योंकि जब फसलें ही नष्ट हो जाएंगीं, तो खाने के लिए कुछ नहीं बचेगा, और कैसे खर्चा चलेगा। - नीरज देवी गंगा लगभग चार किमी दूर थी, पर कटान करते हुए गांव के पास तक आ गई है, सभी लोगों पर खतरा बना हुआ है। - राजकुमारी अब तो गांव की स्थिति ही खराब है, सभी को अपनी जान बचाने की पड़ी है, अगर सुरक्षित रहे तो कुछ करके खा-कमा लेगें। - राधा पहले तो परिवार को बचाना है, यही स्थिति रही तो गांव खाली हो जायेगा, लोगों को दूसरी जगह जाकर अपना काम धंधा देखना पड़ेगा। - कासमी देवी जब से इस गांव में शादी होकर आई हूं, पहली यह दशा देखी है, फसलें तो गंगा ने लील ली, अब तो यही सोचना है कि जीवन कैसे चलेगा। - सुंदरी देवी इस बार जो बाढ़ ने लोगों की दुर्दशा की है, उससे सब लोग परेशान हैं, पहले इतनी बाढ़ नहीं आती थी, लोगों के घर बच जाते थे। - मोनिका देवी
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