ईद::: मदरसों को नहीं, गरीबों को जकात-फितरा
हर साल ईद के मौके पर शाही ईदगाह पर मेले जैसा आलम रहता था। कई दिन पहले से ही ईद पर मदरसे को इमदाद का आह्वान किया जाता था। गली-मोहल्लों से भी लोग पैसा इकट्ठा कर मदरसे को देते थे। इस बार ईद पर मदरसों...
हर साल ईद के मौके पर शाही ईदगाह पर मेले जैसा आलम रहता था। कई दिन पहले से ही ईद पर मदरसे को इमदाद का आह्वान किया जाता था। गली-मोहल्लों से भी लोग पैसा इकट्ठा कर मदरसे को देते थे। इस बार ईद पर मदरसों में जकात और फितरा के तहत दान न के बराबर हुआ। जरूरतमंदों की ही इस धन से मदद की गई।
इस्लाम में जकात और फितरा का बहुत महत्व है। अपनी आमदनी का एक जरूरी हिस्सा खुशियों बांटने के तौर पर जरूरतमंदों को दिया जाता है। मदरसों में ही आमतौर पर यह दिया जाता है, मगर कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते इस बार हालात जुदा रहे। शहर के तमाम इलाकों में लोगों ने दो दिन पहले से ही जरूरतमंदों के बीच पहुंचकर खिदमत शुरू कर दी थी।
सुपरलॉक डाउन ने किया कैद
ईद पर जकात, फितरा देने वाले इस बार बड़ी संख्या में घरों में ही कैद होकर रह गए। शहर के तमाम इलाकों में सुपर लॉक डाउन के कारण घरों में ही नमाज अदा की गई और अनेक लोग दान नहीं कर सके। कुछ लोगों ने बताया कि बासी ईद पर वे मंगलवार को जकात, फितरा अता करने का फर्ज निभाएंगे।
