गेंदे की सहफसली खेती से कमाए दोहरा लाभ
शहरों, समारोह, स्वागत, पूजा-अर्चना आदि में गेंदे के फूलों की भारी मांग को देखते हुए किसान गेंदे की खेती को अपनाकर अच्छी आमदनी ले सकते हैं। सजावट के...
हस्तिनापुर। संवाददाता
शहरों, समारोह, स्वागत, पूजा-अर्चना आदि में गेंदे के फूलों की भारी मांग को देखते हुए किसान गेंदे की खेती को अपनाकर अच्छी आमदनी ले सकते हैं। सजावट के अलावा गेंदे के फूलों का प्रयोग आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति में भी किया जाता है। स्वामी कल्याण देव कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. आशीष त्यागी ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि किसान अन्य फसलों के साथ गेंदे की सहफसली खेती अपनाकर दोहरा लाभ उठा सकते हैं।
डॉ. त्यागी ने बताया कि दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ आदि बड़े शहरों में गेंदे की फूलों की भारी मांग है। बताया कि गेंदे के फूलों की खेती आसानी से की जा सकती है। गेंदे के पौधे पूरे खेत के साथ-साथ अंतरवर्ती फसल के रूप में रिक्त स्थानों, खेत की डोल, नाली या रास्तों के किनारे लगा सकते है। उन्होंने सलाह दी कि गेंदे की अच्छी पैदावार लेने को उन्नत प्रजाति जैसे जैट डबल, अफ्रीकन औरेंज, वाटर स्काच आदि उगाई जा सकती हैं। इसके लिए प्रति हेक्टेअर मात्र 250 से 400 ग्राम बीज ही पर्याप्त है। इसकी पौध तैयार होने के बाद अप्रैल से सितंबर तक बुवाई का समय सर्वोतम है। अच्छी फसल के लिए नत्रजन 400 किग्रा, फास्फोरस 200 किग्रा, प्रति हेक्टेअर के हिसाब से खेतों में डाले। गर्मियों में 4 से 5 दिन और सर्दियों में 8 से 10 दिन के अंतराल से सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। फसल के बीच से समय-समय पर खरपतवार को साफ कर देना चाहिए। उन्होंने बताया कि फसल पर 70 दिनों के बाद फूल आने प्रारंभ हो जाते हैं, जो 45 से 60 दिन तक चलते हैं। फसल से प्रति हेक्टेअर आठ से दस टन उपज प्राप्त हो जाती है। उन्होंने इस फसल को सहफसली खेती के रूप में उत्तम बताया।
फोटो परिचय
हस्तिनापुर 1 : खेत में लहलहाती गेंदे की फसल।