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जब पाक ने टेके हमारे जांबांजों के सामने घुटने, अस्तित्व में आया बांगलादेश

आज का दिन भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम की विजय का दिवस माना जाता है। आखिर हो भी क्‍यों न क्‍योंकि आज ही के दिन16 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्‍तान युद्ध की परिणति के रूप में भारतीय सेना के रणबांकुरों...

जब पाक ने टेके हमारे जांबांजों के सामने घुटने, अस्तित्व में आया बांगलादेश
हिन्दुस्तान टीम,मेरठSat, 16 Dec 2017 01:39 AM
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आज का दिन भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम की विजय का दिवस माना जाता है। आखिर हो भी क्‍यों न क्‍योंकि आज ही के दिन16 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्‍तान युद्ध की परिणति के रूप में भारतीय सेना के रणबांकुरों के पराक्रम के सामने पाकिस्‍तानी सेना ने नतमस्‍तक होते हुए बिना शर्त घुटने टेक दिए। सिर्फ इतना ही नहीं उस युद्ध का एक नतीजा यह भी निकला कि पाकिस्‍तान का एक हिस्‍सा उससे हमेशा के लिए अलग हो गया और बांग्‍लादेश नाम से एक नया मुल्‍क अस्तित्‍व में आया।

सोलह दिसंबर को ही पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्‍तानी सेना के चीफ जनरल आमिर अब्‍दुल्‍ला खान नियाज़ी ने पराजय स्‍वीकार करते हुए 93 हजार पाक सैनिकों के साथ भारतीय सेना के समक्ष ढाका में सरेंडर किया। भारतीय सेना की अगुआई जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा कर रहे थे। इसीलिए आज के दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में शामिल रहे मेरठ के ब्रिगेडियर रणवीर सिह बताते हैं कि पूर्वी पाकिस्‍तान में बंगाली राष्‍ट्रवादी आत्‍म निर्णय की लंबे समय से मांग कर रहे थे। 1970 के पाकिस्‍तानी आम चुनावों के बाद ये संघर्ष बढ़ा। नतीजतन 25 मार्च, 1971 को पश्चिमी पाकिस्‍तान ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया। इससे पूर्वी पाकिस्‍तान में इस तरह की मांग करने वालों को निशाना बनाया जाने लगा। पूर्वी पाकिस्‍तान में विरोध भड़का और बांग्‍लादेश मुक्ति बाहिनी नामक सशस्‍त्र बल बनाकर ये लोग पाकिस्‍तान की सेना से मोर्चा लेने लगे। इस क्रम में भारत ने बांग्‍लादेशी राष्‍ट्रवादियों को कूटनीतिक, आर्थिक ओर सैन्‍य सहयोग दिया। पाकिस्‍तान ने भारत के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए हवाई हमला कर दिया। पाकिस्‍तान ने ऑपरेशन चंगेज खान के नाम से भारत के 11 एयरेबसों पर हमला कर दिया। नतीजतन तीन दिसंबर, 1971 को भारत-पाकिस्‍तान के बीच युद्ध शुरू हो गया। भारत ने पश्चिमी सीमा पर मोर्चा खोलते हुए पूर्वी पाकिस्‍तान में बांग्‍लादेश मुक्तिवाहिनी का साथ दिया। नतीजतन 13 दिनों में ही दुश्‍मन के दांत खट्टे हो गए और उसे सरेंडर के लिए मजबूर होना पड़ा। इस युद्ध ने दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्‍य को बदल दिया और सातवीं सबसे बड़ी आबादी वाले मुल्‍क के रूप में बांग्‍लादेश दुनिया के नक्‍शे पर आया. 1972 में संयुक्‍त राष्‍ट्र के अधिकतर सदस्‍य देशों ने बांग्‍लादेश को राष्‍ट्र के रूप में मान्‍यता दे दी। मेरठ कैंट में तैनात पाइन डिवीजन के जांबांजों ने भी इस युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। यह दुनिया का पहला ऐसा युद्ध था जिसमें 93000 से ज्यादा पाकिस्तनी युद्धबंदी बने।

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