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एससी-एसटी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ संविधान संशोधन बिल लाए सरकार, मायावती ने केंद्र से की बड़ी डिमांड

  • बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने एससी-एसटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संविधान संशोधन के जरिए निष्प्रभावी करने की मांग की है। मायावती ने कहा कि इसी सत्र में बिल लाकर अगर फैसले को निष्प्रभावी नहीं किया गया तो कुछ राज्य सरकार इसका फायदा उठाकर एससी-एसटी में बंटवारा कर देंगी।

एससी-एसटी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ संविधान संशोधन बिल लाए सरकार, मायावती ने केंद्र से की बड़ी डिमांड
Yogesh Yadav लाइव हिन्दुस्तानFri, 9 Aug 2024 12:27 PM
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बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने एससी-एसटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संविधान संशोधन के जरिए निष्प्रभावी करने की मांग की है। मायावती ने कहा कि इसी सत्र में बिल लाकर अगर फैसले को निष्प्रभावी नहीं किया गया तो कुछ राज्य सरकार इसका फायदा उठाकर एससी-एसटी में बंटवारा कर देंगी। मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म 'एक्‍स' पर लिखा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आज मिलने गये भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एससी/एसटी (अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति) सांसदों को यह आश्वासन देना कि कोटे में क्रीमी लेयर को लागू नहीं करने और एससी-एसटी के आरक्षण में कोई उप-वर्गीकरण भी नहीं करने की उनकी मांगों पर गौर किया जाएगा, यह उचित है और ऐसा किए जाने पर इसका स्वागत है।

भाजपा सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की और एससी व एसटी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने पर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी पर चिंता व्यक्त की थी। मायावती ने एक अन्य पोस्ट में यह भी कहा कि अच्छा होता कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष बहस में केन्द्र सरकार की तरफ से एटार्नी जनरल द्वारा आरक्षण को लेकर एससी व एसटी में क्रीमी लेयर लागू करना और इनका उप-वर्गीकरण किये जाने के पक्ष में दलील नहीं रखी गयी होती तो शायद यह निर्णय नहीं आता।

बसपा प्रमुख ने अपने सिलसिलेवार पोस्‍ट में आशंका जाहिर करते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय के एक अगस्त 2024 के निर्णय को संविधान संशोधन के जरिए जब तक निष्प्रभावी नहीं किया जाता तब तक राज्य सरकारें अपनी राजनीति के तहत वहां इस निर्णय का इस्तेमाल करके एससी/एसटी वर्ग का उप-वर्गीकरण व क्रीमी लेयर को लागू कर सकती हैं। अतः संविधान संशोधन बिल इसी सत्र में लाया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों को आरक्षण प्रदान किया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं।

हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि राज्यों को पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के 'मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों' के आधार पर उप-वर्गीकरण करना होगा, न कि 'मर्जी' और 'राजनीतिक लाभ' के आधार पर।

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