आम की फसल को कीट एवं व्याधि से बचाए
Mau News - मऊ में जिला उद्यान अधिकारी संदीप कुमार गुप्ता ने आम के गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए कीटों और रोगों के प्रबंधन की आवश्यकता बताई। भुनगा और मिज कीट आम की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इनसे बचाव के लिए...

मऊ, संवाददाता। जिला उद्यान अधिकारी संदीप कुमार गुप्ता ने बताया कि जनपद में आम के गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए सम-सामयिक महत्त्व के कीट एवं रोगों का उचित समय प्रबंधन नितान्त आवश्यक है, क्योंकि बौर निकलने से लेकर फल लगने तक की अवस्था अत्यन्त ही संवेदनशील होती हैं। वर्तमान में आम की फसल को मुख्य रूप से भुनगा एवं मिज कीट तथा खर्रा रोग से क्षति पहुंचने की संभावना रहती है। आम के बागों में भुनगा कीट कोमल पत्तियों एवं छोटे फलों के रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं। प्रभावित भाग सूखकर गिर जाता है। साथ ही यह कीट मधु की तरह का पदार्थ भी विसर्जित करता है, जिससे पत्तियों पर काले रंग की फफूंद जम जाती है, फलस्वरूप पत्तियों द्वारा हो रही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मंद पड़ जाती है। इसी प्रकार से आम के बौर में लगने वाला मिज कीट मंजरियों एवं तुरंत बने फलों तथा बाद में मुलायम कोपलों में अंडे देती है, जिसकी सुंडी अन्दर ही अन्दर खाकर क्षति पहुंचाती है, प्रभावित भाग काला पड़ कर सूख जाता है। भुनगा एवं मिज कीट के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.1% एसएल (2.0 मिली/ली पानी) या क्लोरपाइरीफास (1.5% (2.0) मिली/ली पानी) की दर से घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है। इसी प्रकार खर्रा रोग के प्रकोप से ग्रसित फल एवं डंठलों पर सफेद चूर्ण के समान फफूंद की वृद्धि दिखाई देती है। प्रभावित भाग पीले पड़ जाते हैं तथा मंजरियां सूखने लगती हैं। इस रोग से बचाव हेतु ट्राइडोमार्फ 1.0 मिली/ली या डायनोकेप 1.0 मिली/ली पानी की दर से भुनगा कीट के नियंत्रण हेतु प्रयोग किये जा रहे घोल के साथ मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। बागवानों को यह भी सलाह दी जाती है कि बागों में जब बौर पूर्ण रूप से खिला हो तो उस अवस्था में कम से कम रासायनिक दवाओं का छिड़काव किया जाये जिससे पर-परागण क्रिया प्रभावित न हो सके।
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