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सुख, शांति, समृद्धि व मनोवांछित फल देता है छठ पर्व

कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया। छठ हमारे देश में...

सुख, शांति, समृद्धि व मनोवांछित फल देता है छठ पर्व
मऊ। निज संवाददाताMon, 23 Oct 2017 07:44 PM
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कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया। छठ हमारे देश में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। पारिवारिक सुख, समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। 

धर्म शास्त्रों में यह पर्व सुख शांति, समृद्धि का वरदान तथा मनोवांछित फल देने वाला बताया गया है। लोक परम्परा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई बहन का है। लोक मातृ का षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व की परम्परा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है। षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है। उस समय सूर्य की पराबैगनी किरणों पृथ्वीं की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य इस परम्परा में है। 

चार दिवसीय उत्सव है छठ पूजा 
इसकी शुरूआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। 

पहला दिन : कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर को साफ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठ व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरूआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू, चने की दाल व चावल ग्रहण किया जाता है। 

दूसरा दिन : कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पीठा और घी चुपड़ी रोटी बनायी जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। 

तीसरा दिन : कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ के अलावा चावल के लड्डू बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है। व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मइया को प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। 

चौथा दिन : कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती वहीं पुन: इकट्ठा होते हैं, जहां उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुन: पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति करते हैं। छठ उत्सव के केन्द्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्राय: महिलाओं द्वारा किया जाता है। 

कई संदेश देता है यह पर्व
छठ पर्व सूर्य के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का पर्व है। सूर्य से हमें ऊर्जा मिलती है। सिफ यही नहीं यह पर्व हमें कई संदेश भी देता है। पहला पवित्रता-शुद्धता का। दूसरी साफ-सफाई यानी स्वच्छता का। इतनी पवित्रता किसी दूसरे पर्व में नहीं दिखाई देती है। पूरा घर इसमें जुड़ जाता है। ऐसी मान्यता है कि सामने दिखने वाले सूर्यदेव से जो मांगा जाए वह अवश्य पूरी होती है। एक ऐसा त्योहार, जिसमें सामने होते भगवान और पूरी होती हर मनोकामना। चार दिवसीय यह व्रत कठोर साधना की परीक्षा भी है। व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। इस पर्व में पहले उगते नहीं डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, वह भी नदी या तालाब में कमर तक पानी के बीच में खड़े होकर। 

महोत्सव तिथि 
नहाय खाय : 24 अक्तूबर, मंगलवार 
खरना : 25 अक्तूबर, बुधवार 
संध्या अर्घ्य : 26 अक्तूबर, गुरुवार
सूर्योदय अर्घ्य : 27 अक्तूबर, शुक्रवार 
पारण : 27 अक्तूबर, शुक्रवार 

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