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मधवलिया गोसदन : कागजों में 2500, गोशाला में 954 गायें

मधवलिया गोसदन में गोवंशीय पशुओं के आंकड़ों में खूब खेल किया गया। शासन को फर्जी रिपोर्ट भेजकर लाखों का गोलमाल किया गया। मौके पर केवल 954 ही पशु हैं, लेकिन शासन को 2500 पशुओं की रिपोर्ट भेजी गई। गोसदन...

मधवलिया गोसदन : कागजों में 2500, गोशाला में 954 गायें
हिन्दुस्तान टीम,महाराजगंजTue, 15 Oct 2019 01:06 AM
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मधवलिया गोसदन में गोवंशीय पशुओं के आंकड़ों में खूब खेल किया गया। शासन को फर्जी रिपोर्ट भेजकर लाखों का गोलमाल किया गया। मौके पर केवल 954 ही पशु हैं, लेकिन शासन को 2500 पशुओं की रिपोर्ट भेजी गई। गोसदन में मरने वाले पशुओं की संख्या को प्रशासन लगातार झुठलाता रहा।

पूर्वांचल के सबसे बड़े गोसदन में पशुओें के रखने की क्षमता करीब एक हजार है। 500 एकड़ में फैले गोसदन में स्थान को देखते हुए यहां गोरखपुर, देवरिया व कुशीनगर के पशु भी लाए जाते हैं। शुरुआत में यहां 300 पशु थे, लेकिन वर्तमान में इनकी संख्या 954 हो गई है। जिम्मेदारों ने शासन को जो रिपोर्ट भेजी, उसमें 2500 पशुओं का जिक्र है। इसके बदले शासन से भारी भरकम बजट की मांग की जाती रही। शासन से मिले धन का अफसरों ने खूब बंदरबांट किया।

सांड़ों का सदन

मधवलिया गोसदन में गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर के अलावा महराजगंज में आतंक मचा रहे सांड़ों को पकड़कर छोड़ दिया गया था। इनकी देखभाल के लिए 29 गोसेवक तैनात हैं। दो सुपरवाइजर भी हैं। गोसेवक राम प्रकाश, अनिल, रामरूप, रामकन, कन्हैया लाल, अमीन, राहुल, अनिरूद्ध साहनी, अनुज भारती, रामकिशुन, अंगद, बहादुर, महेन्द्र आदि ने बताया कि हम लोगों की चौबीस घंटे ड्यूटी है। इसके बदले 200 रुपये दिहाड़ी मिलती है। गायों को चारा-पानी देना, उनकी देखभाल करना ही हमारा काम है। गोसदन के अन्य काम साहब लोग ही करते थे। किसको-किसको लीज पर जमीन दी गई, हमें नहीं मालूम। हां इतना जरूर है कि गोसदन की भूमि पर कृषि कार्य से चरागाह कम होता गया। सभी गोवंश खुले में ही रहते हैं। सांड़ आपस में लड़ते रहते हैं। फिर भी पूरी कोशिश रहती थी कि कमजोर गायों को भोजन के रूप में भूसा व चारा मिल जाए।

हम क्या कर सकते थे साहब, गोसेवक जो ठहरे

गोसदन मामले में डीएम समेत पांच अफसरों के निलंबन की कार्रवाई से सोमवार को गोसेवक अनजान थे। वे गायों को चराने जंगल की तरफ गए थे। वापस लौटने के बाद बड़े अफसरों के सस्पेंड होने की खबर से वह सहम गए। पूछने पर कहा कि साहब हम क्या कर सकते थे। हम गोसेवक हैं। पूरा दिन गायों की देखभाल में ही गुजरता था। हम लोगों के सामने ही बीमार व बूढ़ी गायें तड़पती रहती थीं। साहब लोगों को बताया जाता था। हम लोगों के हाथ में जितना था, उतना करते थे। हम लोग गरीब हैं। इन्हीं गायों के सेवा के बदले हर दिन 200 रुपये की मजदूरी मिलती है जिससे दाल-रोटी चलती है। लेकिन गायों की दुर्दशा देख हम लोगों का हृदय द्रवित हो जाता था।

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