प्रवासी पक्षी की अधूरी यात्रा
लखनऊ। निज संवाददाता
लखनऊ। निज संवाददाता
रूस से अपने परिवार संग 5000 किलोमीटर की उड़ान भर रूसी मेहमान मंगलवार को नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान पहुंचा। शाहजहांपुर जनपद के अल्लाहपुर में बिछड़ी मादा सारस घायल अवस्था में 17 अक्टूबर को पाया गया। गांव वालों ने इसके पैर में टैग देख इसको जासूसी पक्षी समझ पुलिस के सुपुर्द कर दिया। पुलिस ने मौके पर वन विभाग की टीम को सूचित किया जिसके बाद वन विभाग की टीम ने लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह से संपर्क कर इसको जू के हवाले कर दिया। प्राणी उद्यान के निदेशक डॉ आरके सिंह ने बताया कि मादा सारस के बाएं पंजे की हड्डी टूटी हुई है। सारस का इलाज जू के पशु चिकित्सकों द्वारा किया जा रहा है।
-55 दिन की है मादा सारस
सारस के दांये पैर में टैगिंग होने की वजह से इसकी जीपीएस लोकशन से इसकी यात्रा की जानकारी मिल पाई। इसे टी-7 नाम दिया गया है। क्रेन वर्किंग ग्रुप ऑफ इयूरसिया के डायरेक्टर इलाना ने प्राणी उद्यान से संपर्क कर प्रथम प्रवासी यात्रा पर निकले पक्षियों की सूचना दी। इस मादा सारस की उम्र 30 जुलाई को 55 दिन की पूरी हुई है।
षाहजहांपुर वन प्रभाग से डोमिसाइल क्रेन 1⁄4क्मउवपेमससम ब्तंदम1⁄2 का मादा बच्चा प्राप्त हुआ है।
यह फीमेल बच्चा अपने झुण्ड के साथ उड़कर रूस से गुजरात की तरफ जा रहा था। यह पक्षी
रास्ते में घायल अवस्था में पड़ा हुआ मिला, जिसे प्रभागीय वनाधिकारी, षाहजहांपुर ने चिकित्सा
हेतु नवाब वाजिद अली षाह प्राणि उद्यान, लखनऊ को भेजा है। इस सारस क्रेन के दा दायें पैर
में टैग लगा हुआ है तथा इसे टी-7 नाम दिया गया है। इसकी टैगिंग रूस के व्दवदेाल
जनपद में 30 जुलाई को की गयी है। यह जानकारी ब्तंदम ॅवतापदह ळतवनच व िम्नतंेपं के
डायरेक्टर म्समदं प्सलेीमदाव द्वारा रूस से दी गयी है। इस पक्षी को 1000 क्रेन प्रोजेक्ट के
अन्तर्गत रखा गया था। 30 जुलाई को इसकी उम्र 55 दिन की थी और यह अपने प्रथम प्रवासीय
यात्रा पर अपने सम्पूर्ण परिवार एवं पूरे ग्रुप के सदस्यों के साथ निकली थी तथा इसने
सफलतापूर्वक 26000 से अधिक ऊँची हिमालय की चोटी को पार कर भारत में अरूणाचल प्रदेष
से प्रवेष कर आसाम, पष्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड से होते हुए उत्तर प्रदेष से होकर गुजरात
की ओर जा रही थी तभी दुर्घटनावष यह अल्लाहगंज, षाहजहांपुर में घायल होकर गिर पड़ी।
इसके अन्य सदस्य गुजरात पहॅुंच चुके हैं। पूरा ग्रुप लगभग 5000 किमी0 से अधिक की यात्रा कर
पष्चिम की ओर गंगा के मैदान से होकर जा रहा था तभी 15 अक्टूबर को इस पक्षी से सम्पर्क
टूट गया जबकि अन्य पूरा गु ्रप सफलतापूर्वक गुजरात पहॅुंच गया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि
अत्यन्त ठण्डे प्रदेषों से प्रतिवर्श प्रवासी पक्षी अत्यन्त ठण्ड से बचने के लिए व भोजन के लिए
प्रत्येक वर्श हजारों किलोमीटर की यात्रा करते हैं और भारत तथा अन्य गर्म स्थानों पर पूरी सर्दी
तक रहते हैं तथा फरवरी से अपनी वापसी यात्रा अपने मूल देष के लिए प्रारम्भ करते हैं। यह
पक्षियों का प्रवास सदियों से चला आ रहा है। प्रवासी पक्षी किस तरह दिषा तय करते हैं व
इतनी लम्बी यात्राओं को कैसे पूरा करते हैं? यह बहुत ही रहस्यमय व दिलचस्प है तथा आज भी
इसमें वैज्ञानिक षोध जारी हैं। यह पक्षी भी इसी षोध का हिस्सा है जो कि इस समय प्राणि
उद्यान, लखनऊ में है जिसकी चिकित्सा की जा रही है। इस पक्षी के बायें पंख की हड्डी फ्रेक्चर
है। फ्रेक्चर हुई हड्डी के बाहर निकल आने से घाव बन गया है। इसके घाव की चिकित्सा की
जा रही है तथा प्राणि उद्यान का चिकित्सकीय दल इसका उपचार कर रहे हैं और कोषिष है कि
यह ठीक होकर फिर से अपने परिवार के साथ मिल सके। इसके समुचित उपचार के लिए
आई0वी0आर0आई0, बरेली, बी0एन0एच0एस0, मुम्बई तथा अन्य संस्थानों से भी सम्पर्क किया जा
रहा है। इस पक्षी का फोटो तथा इसके द्वारा तय किये गये रूट का मैप साथ मंे संलग्न है।