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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस संवाद

खुद के बारे में सोचे, तभी सशक्त होगी आधी आबादी

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस संवाद
हिन्दुस्तान टीम,लखनऊThu, 07 Mar 2019 07:57 PM
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खुद के बारे में सोचे, तभी सशक्त होगी आधी आबादी

-अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्वसंध्या पर 'हिन्दुस्तान' का महिला संवाद

-'महिलाएं फिट तो घर फिट' विषय पर हुई चर्चा, निकले ढेरों सुझाव

लखनऊ। वरिष्ठ संवाददाता

महिलाओं के अधिकार, हिंसा की शिकार महिलाएं, बड़े-बड़े कानून, सशक्तिकरण के किस्से...ये वो तमाम चीजे हैं जिनपर अक्सर बहस होती हैं। महिला दिवस जैसा कोई मौका आता है तो मुश्किलों से निकलकर सफलता की कहानियां लिखने वाली औरतों से हम रूबरू भी होते हैं। मगर यह सिक्के का एक पहलू है। दूसरा पहलू घरों में रहने वाली या कामकाली महिलाएं हैं जिन्हें परिवार की, घर की, अपने काम की तो फिक्र है लेकिन खुद को सबसे आखिरी पायदान पर रखा हुआ है।

चूंकि इस महिला दिवस की थीम 'बैलेंस फॉर बेटर' है, इसलिए बात हर उस महिला की जो घर-बाहर की दुनिया में संतुलन बनाते हुए जिंदगी बिता रही है और इस जद्दोजहद में खुद को भूल जा रही हैं। जबकि हकीकत यह है कि जिस घर में महिलाएं फिट हैं, आत्मनिर्भर हैं, सशक्त हैं, उस घर के लोग भी दूसरों की तुलना में कहीं बेहतर जीवन जी रहे हैं। महिलाओं की इन्हीं मूल जरूरतों, उनके स्वास्थ, आर्थिक आत्मनिर्भरता, शिक्षा, लाइफस्टाइल को केन्द्र में रखकर, इन विषयों की विशेषज्ञों के बीच एक संवाद 'हिन्दुस्तान' के मंच पर कराया गया। ढेरों बातें हुईं, बातचीत में रोजमर्रा की जिन्दगी से जुड़े कई सुझाव सामने आए। वहीं कुछ चौंकाने वाले किस्से भी सुने गए। मसलन डिप्टी एसपी डॉ. बीनू सिंह ने बताया कि उनके पास घरेलू हिंसा या सामान्य महिला अपराध से जुड़े ढेरों मामले लगभग हर रोज आते हैं लेकिन इनमें से 50 प्रतिशत मामलों में समझौता हो जाता है। महिलाएं अपने साथ हुए अन्याय की शिकायत करती हैं लेकिन सामने वाले को सजा दिलवाने से कतराती हैं, क्योंकि ज्यादातर मामलों में अन्याय करने वाला उनका पति या कोई करीबी ही होता है। वहीं डॉ. एसपी जायसवार ने बताया कि घरेलू महिलाओं के लिए अपना स्वास्थ सबसे अंतिम प्राथमिकता होती है। छोटी-मोटी दिक्कतें महिलाएं अनदेखी कर देती हैं और आगे चलकर यही बड़ी समस्या में बदल जाती है। संवाद में आर्थिक पक्ष की बात भी हुई कि कैसे महिलाएं छोटे-छोटे निवेश करके अपना भविष्य सुरक्षित कर सकती हैं। यहां एक बात यह भी सामने आई कि तमाम पढ़ी-लिखी महिलाएं भी पैसे या निवेश से जुड़े फैसले खुद नहीं लेतीं क्योंकि उन्हें इस मामले में ज्यादा पता नहीं होता। बात आर्थिक निर्भरता की उठी तो यह तथ्य भी सामने आया कि कई कामकाजी औरतें अपने ही कमाए हुए पैसों का अपनी मर्जी से इस्तेमाल नहीं कर पातीं। संवाद का सार यही रहा कि इन तमाम छोटी-छोटी बातों पर गौर करना बेहद जरूरी है। महिलाएं सबसे पहले खुद को शारीरिक व मानसिक रूप से फिट करने के बारे में सोचें, हर पहलू पर खुद को सशक्त करें, तभी एक बेहतर परिवार, बेहतर समाज का निर्माण कर पाएंगी।

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