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कथित विकास के विरुद्ध हिंसक प्रतिक्रिया है माओवाद :डॉ. सुबोध 

माओवाद, निजीकरण, भूमि और प्राकृतिक संसाधनों का असमान वितरण,औद्योगीकरण व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कथित विकास के विरुद्ध हिंसक प्रतिक्रिया है। ये बातें लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय में भारत में...

कथित विकास के विरुद्ध हिंसक प्रतिक्रिया है माओवाद :डॉ. सुबोध 
निज संवाददाता,गोंडा। Tue, 12 Feb 2019 01:35 PM
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माओवाद, निजीकरण, भूमि और प्राकृतिक संसाधनों का असमान वितरण,औद्योगीकरण व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कथित विकास के विरुद्ध हिंसक प्रतिक्रिया है। ये बातें लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय में भारत में माओवादी समस्या विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में डीएवी कालेज गोरखपुर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुबोध कुमार ने कही। 

 उन्होंने कहा कि मूलभूत प्रश्न यह है कि विकास किसका हो रहा है। आदिवासियों के जल जंगल जमीन पर जिस तरह कब्जा किया जा रहा है, आर्थिक विषमता निरंतर बढ़ती जा रही है, इन परिस्थितियों में जन असंतोष का उभरना स्वाभाविक है। इसी भय, भूख और भ्रष्टाचार से प्रेरित जन असंतोष का नाम माओवाद या नक्सलवाद है। 

विषय विशेषज्ञ डॉ आर एस पांडेय ने कहा कि युद्ध पहले दिमाग में लड़ा जाता है। माओवादियों की स्ट्रेटेजी के मूल में सत्ता संघर्ष है। उनकी कोशिश भोले- भाले लोगों के विश्वास को जीतकर, उनकी संवेदनाओं को कुरेद कर उन्हें अपने साथ लेकर हिंसक गतिविधियों में शामिल करने की रहती। 
डॉ. ऋषिकेश सिंह ने कहा कि माओवाद असंगति के सिद्धांत पर आधारित है। माओवादी समस्या से निजात पाने का एक ही तरीका है कि सरकारें असंगतियों को कम से कम करने का प्रयास करें।

डॉ. गंगोत्री प्रसाद तिवारी ने कहा शहरी नक्सलवाद लाल गलियारे के कथित नक्सलवाद को ऑक्सीजन देता है। उन्होंने कहा कि हमें राष्ट्रवाद को सर्वोपरि रखना होगा। डॉ. अजीत कुमार सारस्वत ने कहा कि माओवाद नक्सलवाद वस्तुतः सत्ता का संघर्ष है। संस्कृतियों का संघर्ष है। 
डॉ. अतुल कुमार सिंह ने कहा कहा कि मार्क्स, लेनिन, माओ की वैचारिकी आर्थिक एवं प्राकृतिक संसाधनों की असमानता का निषेध करती है। डॉ. चमन कौर और डॉ मंजुल रानी त्रिपाठी ने माओवाद को अंतर्मन की विकृति का परिणाम कहा। संचालन करते हुए डॉ. शैलेन्द्र नाथ मिश्र ने माओवाद की वैचारिक पृष्ठभूमि और समकालीन साहित्य में उसकी गूँज-अनुगूँज को रेखांकित किया। तकनीकी सत्र में डॉ मंशाराम वर्मा के कई शोध पत्रों का वाचन हुआ। जिसमें विषय विशेषज्ञ के रूप में डॉ सूर्यपाल सिंह, डॉ. डीके गुप्त, डॉ .केएन पांडेय, डॉ. आरएस सिंह मंचासीन रहे।  प्राचार्य डॉ. हरिप्रकाश श्रीवास्तव ने सभी वक्तव्य के निष्कर्षों को सार रूप में प्रस्तुत कर सबके प्रति आभार व्यक्त किया।

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