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केजीएमयू में रैबीज मरीजों का इलाज 17 माह से ठप

एंकर हेड: कोरोनाकाल में बंद कर दिया गया था संक्रामक रोग अस्पताल, यहीं होता था

केजीएमयू में रैबीज मरीजों का इलाज 17 माह से ठप
हिन्दुस्तान टीम,लखनऊMon, 27 Sep 2021 07:21 PM
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एंकर हेड: कोरोनाकाल में बंद कर दिया गया था संक्रामक रोग अस्पताल, यहीं होता था मरीजों का इलाज, इलाज की आस में भटक रहे मरीज

300 से अधिक पुराने मरीजों को इंजेक्शन लग रहा रोजाना शहर के अस्पतालों में

70 के करीब नए मरीज आ रहे कोरोना काल से अब तक

55 के करीब मरीज कोरोनाकाल के पहले आते थे

लखनऊ। रजनीश रस्तोगी

केजीएमयू में करीब 17 माह से रैबीज मरीजों का इलाज ठप है। इससे प्रदेश भर से आने वाले रैबीज मरीजों को भटकना पड़ रहा है। मुकम्मल इलाज न मिलने से मरीजों की जान जोखिम में पड़ गई है। यह प्रदेश का इकलौता संस्थान है जिसमें रैबीज मरीजों को भर्ती कर इलाज मुहैया कराने की सुविधा थी।

पहले केजीएमयू के डालीगंज स्थित संक्रामक रोग अस्पताल में रैबीज मरीजों को भर्ती कर इलाज मुहैया कराने की सुविधा थी। संस्थान प्रशासन ने संक्रामक रोग विभाग की बिल्डिंग को तोड़ने का फैसला किया। विभाग को न्यूरोलॉजी के सामने भवन में शिफ्ट कर दिया। कोरोना संक्रमण से संक्रामक रोग विभाग बंद कर दिया गया। यहां कोरोना मरीजों की भर्ती चालू कर दी गई। दूसरी लहर में केजीएमयू के लिम्ब सेंटर में कोरोना मरीजों की भर्ती की व्यवस्था की गई। अभी तक संक्रामक रोग विभाग खोला नहीं गया। तकरीबन 17 माह से विभाग बंद है। संक्रामक रोग विभाग को नया भवन भी आवंटन नहीं किया गया।

रैबीज के इंजेक्शन तक नहीं लग रहे

रैबीज के मरीजों को इलाज नहीं मिल रहा है। 20 सितंबर को बहराइच निवासी चार साल के मासूम समीर को कुत्ते ने काट लिया था। बच्चे के हाथ में गहरे घाव हो गए थे। जिला अस्पताल से बच्चे को डॉक्टरों ने केजीएमयू रेफर किया था। मां सनीहुल के मुताबिक केजीएमयू में डॉक्टरों ने भर्ती करने से मनाकर दिया। कहा कि यहां विभाग बंद हो चुका है। दुखी परिवारीजनों ने जिला अस्पताल से इंजेक्शन लगवाया।

मरीज को रोशनी व पानी से लगता है डर

रैबीज का संक्रमण फैलने पर फोटोफोबिया, थरमोफोबिया, हाइड्रोफोबिया व एयरोफोबिया से ग्रसित हो जाता है।

मरीज को रोशनी से डर लगने लगता है।

अधिक गर्मी होने पर भी खुद में असहज महसूस करता है।

पानी से दूर भागता है।

तेज हवा भी बर्दाश्त नहीं कर पता।

संक्रमण से व्यक्ति जानवर की भांति ही हिंसात्मक व आक्रामक हो जाता है।

भूख कम हो जाती है।

खाना-पीना बंद कर देता है।

सांस लेने पर हांफने की आवाज के साथ लार बाहर निकलनी लगती है।

व्यक्ति में बुखार सिर दर्द, उल्टी, चक्कर आते हैं

शारीरिक कमजोरी होती है

ये बरतें सावधानी

कुत्ते के काटने के बाद सावधानी बरतकर रैबीज के खतरे को 80 फीसदी तक कम कर सकते हैं।

काटने के तुरंत बाद घाव को बहते पानी में डिटरजेंट साबुन से धुलें।

कम से कम 15 मिनट घाव को अच्छी तरह से धुलें।

घाव पर पिसी मिर्च, मिट्टी का तेल, चूना, नीम की पत्ती, एसिड आदि लगाने से बचें

घाव धोने के बाद एंटीसेप्टिक क्रीम, लोशन, डेटाल, स्प्रिट, बीटाडीन लगाएं।

घाव खुला छोड़ दें।

अधिक रक्त स्त्राव होने पर साफ पट्टी बांध सकते हैं

टांके न लगवाएं।

कुत्ता के काटने पर उस पर 10 दिन तक निगरानी बनाए रखें। यदि वह जिंदा है तो संक्रमण का खतरा नहीं है।

रोजाना 70 नए केस आ रहे

लखनऊ। कुत्तों का आतंक कम नहीं हो रहा है। राजधानी में आवारा कुत्ते रोजाना 55 से 70 लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। 300 से अधिक पुराने मरीजों को वैक्सीन लगाई जा रही है। कोरोना काल में यह समस्या बढ़ी है। पहले रोजाना 40 से 50 नए केस अस्पतालों में आते थे। लॉक डाउन व कोरोना कर्फ्यू की वजह से कुत्तों को भोजन मिलने में असुविधा हुई। नतीजतन कुत्ते अधिक खूंखार हो गए। ऐसे में केस बढ़ गए।

सबसे ज्यादा कैंट, डालीगंज, बिरहाना, फैजुल्लागंज, गोमतीनगर पत्रकार पुरम समेत दूसरे इलाकों से मरीज आ रहे हैं। काफी लोग बंदर, बिल्ली और सियार के शिकार होने के बाद भी अस्पताल आ रहे हैं। सामुदायिक, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व दूसरे सरकारी अस्पतालों में इस समय मुफ्त रैबीज का इंजेक्शन लगाया जा रहा है। रैबीज इंजेक्शन की चार डोज लगाई जाती हैं। बलरामपुर अस्पताल में एआरवी के प्रमुख डॉ. विष्णुदेव के मुताबिक रैबीज वायरस बेहद घातक होता है। यह सीधे दिमाग पर हमला करता है। बीमारी गंभीर होने पर मरीज की जान बचाना भी मुश्किल हो जाता है। रैबीज लाइलाज बीमारी है। रैबीज संक्रमित जानवर के काटने से यह खतरनाक वायरस पेरीब्रल नर्व के माध्यम से व्यक्ति के तंत्रिकातंत्र (सीएनएस) पर हमला करता है। फिर दिमाग तक पहुंच बना लेता है। इससे पीड़ित व्यक्ति के मस्तिष्क की मांसपेशियों में सूजन आने के साथ स्पाइनल कार्ड भी प्रभावित हो जाती है। मरीज में इंसेफ्लाइटिस जैसी स्थिति हो जाती है। मरीज कोमा में चला जाता है। इससे उसकी मौत हो जाती है।

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