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इस बार छठ पर्व पर बन रहे हैं कई दुर्लभ संयोग, पढ़िए अर्घ्य के समय ये योग पूरी करेंगे मनोकामना

सूर्योपासना के महापर्व छठ व्रत का शुभारम्भ नहाय-खाय के साथ रविवार से होगा। चार दिवसीय इस उपासना पर्व के पहले दिन व्रतीजन रसियाव रोटी अथवा कद्दू भात के सेवन के साथ 36 घंटे के कठिन व्रत की मानसिक...

इस बार छठ पर्व पर बन रहे हैं कई दुर्लभ संयोग, पढ़िए अर्घ्य के समय ये योग पूरी करेंगे मनोकामना
हिन्दुस्तान संवाद ,  अयोध्या। Sat, 10 Nov 2018 08:04 PM
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सूर्योपासना के महापर्व छठ व्रत का शुभारम्भ नहाय-खाय के साथ रविवार से होगा। चार दिवसीय इस उपासना पर्व के पहले दिन व्रतीजन रसियाव रोटी अथवा कद्दू भात के सेवन के साथ 36 घंटे के कठिन व्रत की मानसिक तैयारी करेंगे।
पूर्वांचल के विशेष रूप से बिहार प्रांत के इस पर्व को बड़ी श्रद्धा और नियम-संयम के साथ मनाया जाता है। इस पर्व की तैयारी छठ व्रत रखने वाले सभी घरों में शुरू हो चुकी है।
पंचांग की गणना के अनुसार इस बार छठ पर्व पर कई दुर्लभ संयोग बन रहा है, जो कि शुभ फलदाई व समृद्धिकारक भी है। खास बात यह है कि रविवार को भगवान सूर्य नारायण देव का ही दिन माना जाता है और इसी दिन से व्रत का श्रीगणेश भी हो रहा है।
 हनुमत संस्कृत महाविद्यालय के आचार्य पंडित हरफूल शास्त्री बताते हैं कि 11 नवम्बर को नहाय-खाय के साथ शुरू होने वाले पर्व पर सिद्धि योग संयोग बन रहा है। इसी तरह से 13 नवम्बर को सांझ के अर्घ्य के समय अमृत योग व सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। इसके अतिरिक्त महापर्व के अंतिम दिन 14 नवम्बर को सुबह के अर्घ्य पर छत्र योग का संयोग बन रहा है। इस योग को समृद्धिदायक योग माना जाता है।
सनातन धर्म में सूर्योपासना का बड़ा महत्व है। इस व्रत के करने से व्रतियों के मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसके साथ ही रक्त दोष व चर्म रोगों का निवारण  हो जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार संतों का अपमान करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने पुत्र प्रद्युम्न को कुष्ठ रोग हो जाने का श्राप दे दिया था। पुन: सभी ने उनसे प्रार्थना की तो उन्होंने भगवान सूर्य के मंदिर का निर्माण कराकर पूजन के लिए शाक्य देश से ब्राह्मणों को बुलाकर पूजन कराया तब जाकर उनके शरीर का कुष्ठ दूर हुआ।  कहा जाता है कि शाक्य देश से आए ब्राह्मण पुन: वापस नहीं लौट सके तो भगवान श्रीकृष्ण ने बिहार के गया क्षेत्र में 52 गांव देकर उन सभी ब्राह्मणों को पुनर्वासित किया था।
तभी से सूर्योपासना बिहार में प्रचलित हो गई। इस पर्व को मनाने के लिए दूर दराज में नौकरी करने वाले श्रद्धालु भी अवकाश लेकर अपने घर आते हैं। 
बताया गया कि इस पर्व के लिए पहले दिन नहाय-खाय के साथ व्रत का शुभारम्भ होगा। वहीं दूसरे दिन खरना होगा, इस दिन छठ व्रत के निराजल व्रत के साथ सायं पूजन के लिए ठेकुवा इत्यादि का घरों में निर्माण किया जाएगा। वहीं 13 नवम्बर मंगलवार को सायं सरयू तट पर व्रती श्रद्धालु बाजे-गाजे के साथ परिजनों व मोहल्ले-टोले के लोगों के साथ अस्ताचल गामी सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करेंगे। पुन: अपने घरों को लौटकर रात्रि जागरण के उपरांत बुधवार को पौ फटने के साथ दोबारा नदी के तट पर जाकर उगते सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करेंगे और फिर प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करेंगे।

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