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इन्हें तो दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं, कहां गए अब वायदों के सौदागर... 

वो गरीब है इसलिए उसके आंसुओं की आवाज सियासत और नौकरशाही के इस नक्कारखाने के अहलकारों को सुनाई नहीं पड़ रही है। बेटा एक हादसे का शिकार होकर बिस्तर नहीं बल्कि जमीन पर पड़ा है,  मां लाचार बैठी है।...

इन्हें तो दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं, कहां गए अब वायदों के सौदागर... 
हिन्दुस्तान टीम, गोण्डा ।Tue, 14 May 2019 01:59 PM
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वो गरीब है इसलिए उसके आंसुओं की आवाज सियासत और नौकरशाही के इस नक्कारखाने के अहलकारों को सुनाई नहीं पड़ रही है। बेटा एक हादसे का शिकार होकर बिस्तर नहीं बल्कि जमीन पर पड़ा है,  मां लाचार बैठी है। दो पेट भरने की जिम्मेदारी बेटे पर थी लेकिन जब से हादसे का शिकार हुआ तब से घर में फांकों की नौबत आ गई है। आसपास के लोग थोड़ी बहुत मदद कर देते हैं लेकिन आखिर कब तक?

अभी तक आपने जो पढ़ा वो किसी फिल्म की पटकथा या किसी उपन्यास की कहानी का मुखड़ा नहीं है बल्कि एक बेबस लाचार मां के आंसुओं को अल्फाज़ों में समेटने की कोशिश भर है। दिल को लरजा देने वाली इस खबर को सिर्फ खबर न समझिएगा... बल्कि हो सके तो मदद के लिए आगे आने की कोशिश भी कीजियेगा। ‘हिन्दुस्तान’ को यकीन है आप सबमें से कोई न कोई इस परिवार की मदद के लिए आगे जरूर बढ़ेगा। 

तड़प कर बोली मां, ऐसी जिन्दगी से मौत बेहतर : हम क्यों कुछ कहे, एक परिवार की तकलीफ उसी की मुखिया मां ही सब कुछ कह देती है। पंतनगर ब्लाक नम्बर 9/105 कांशीराम कालोनी में रहने वाली फातिमा कहती हैं ऐसी जिन्दगी से तो मौत बेहतर है। बेटा मोहम्मद समीर एक हादसे में गिर कर गया था। उसके रीढ़ की हड्डी टूट गई। तबसे वो बिस्तर, नहीं जमीन पर है। बताया कि हम दोनों के अलावा एक दूसरे का कोई भी नहीं है। समीर मेहनत मजदूरी कर घर चला रहा था, जबसे पड़ा है तबसे घर में चूल्हा जलना मुश्किल है। कई-कई दिनों तो फांकों से गुजर रहा है। कभी-कभी मदद कर देता है तो पेट की आग थोड़ी बुझ जाती है। 

जब खाने को नहीं तो कैसे हो इलाज : दो वक्त की रोटी के लाले पड़े रहते हैं। ऐसे में बेटे के इलाज के लिए पैसे कहां से लाए जाए। मां बताती हैं कि शुरू में डाक्टरों को दिखाया गया लेकिन महंगे इलाज की वजह से कुछ भी नहीं हो सका। अब नसीब मान कर जैसे तैसे जिन्दगी कट रही है। 
सच का सामना तो कीजिए :बीमार बेटे का नाम  मोहम्मद समीर है। मां का नाम फातिमा है। पता काशी राम आवास पंतनगर ब्लाक नं 9/105 है। ये बहुत ही लाचार है। इसका इस दुनिया में मां के अलावा कोई नहीं है। घर में बहुत ही गरीबी है, झूठी रोटी भी नहीं नसीब होती है। 
लोगों ने बताया समीर पुरानी सब्जी मंडी में काम करता था। एक दिन काम करते समय छत से गिर गया। जिससे कमर की हड्डी टूट गई। मां उसको जिला अस्पताल लेकर गई। वहां पर डॉक्टर ने पैसे मांगे। पैसे न होने के कारण इलाज नहीं हो पाया। 

कुछ युवा मदद को आए : इस परिवार की मदद में कुछ युवा जरूर आगे आए हैं। आमिर खान और उनकी टीम के मोहम्मद असलम, इमरान, शह्बान, सिद्धार्थ शुक्ला,फैजान, शेरु,लड्डू शुक्ला ने मिलकर मदद पहुंचाई है।

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