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शायरों से बातचीत

-दूसरो के गम से मेरा गम काफी बड़ा है। सबके लिए एक मुशायरे का नाजिम गया है, एक लेखक गया है, एक शायर गया है लेकिन मेरा बड़ा भाई मुझसे जुदा हो गया है। अनवर जलालपुरी की मौत से मुझे जिन्दगी से ऐतबार उठ...

शायरों से बातचीत
हिन्दुस्तान टीम,लखनऊTue, 02 Jan 2018 07:29 PM
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-दूसरो के गम से मेरा गम काफी बड़ा है। सबके लिए एक मुशायरे का नाजिम गया है, एक लेखक गया है, एक शायर गया है लेकिन मेरा बड़ा भाई मुझसे जुदा हो गया है। अनवर जलालपुरी की मौत से मुझे जिन्दगी से ऐतबार उठ गया है। जो शायर हैं उनका साथ अनवर भाई के साथ रात का था लेकिन हम एक साथ रहते थे इसलिए मेरा साथ दिनरात का था। मुझे आज भी याद है जब उन्होंने मुझे कहा कि लखनऊ में कोई घर या जमीन लेना है तो मैं बोला की आप मेरे ही अपार्टमेंट में फ्लैट ले लिजिए, अनवर भाई ने कहा कि मेरे पास इतने पैसे नहीं है, मेरे मुंह से निकला की मेरे पास बड़ा भाई नहीं है और उस दिन से ऐसा साथ ही जो उनकी मौत के साथ ही बिखरा है। बीमार होने की वजह से दिल मसोस के रह गया कि आखिरी वक्त में अपने भाई को नहीं देख पाया। आखिरी मुलाकात 24 दिसम्बर को घर पर ही हुई जब अनवर जलालपुरी अपने बेटे के साथ बिसवां में एक मुशायरे के लिए शामिल होने जा रहे थे। मुझे भी वहां सदारत करनी थी लेकिन तबियत ने साथ नहीं दिया। उनका बेटा शहरयार साथ था तो मैंने उससे बोला था कि अब्बू के साथ रहा करो, उनकी तबियत ठीक नहीं रहती है। (मुनव्वर राना)

-देश में जिस तरह का माहौल ऐसे में गंगा जमुनी तहजीब का परचम बुलंद करने वाली शख्स अनवर जलालपुरी का जाना एक बड़ा नुकसान है। अनवर जलालपुरी को सिर्फ एक शायर या नाजिम-ए-मुशायरा तक ही सीमित नहीं किया जा सकता है, बल्कि वो उर्दू तहजीब की पहचान थे। वो जिस देश भी गए और वहां जिस खूबसूरती के साथ उर्दू जुबान बोली उसने उर्दू को लोकप्रिय बनाया। निजामत करने वाले व्यक्ति की शायरी पीछे रहे जाती है ऐसा ही अनवर जलालपुरी के साथ हुआ। मैने गीता के कई अनुवाद पढ़े हैं लेकिन जो रवानगी मुझे शायरी के रूप में अनवर जलालपुरी के अनुवाद में दिखी कहीं भी देखने को नहीं मिली। उनके अदबी कारनामों के लिए उन्हे लम्बे अरसे तक याद किया जायेगा। (प्रो. शारिब रुदौलवी)

-पिछले दो दशको से उर्दू शायरी के संचालन में लोग निरंतर कम होते गए। एक शानदार आवाज अनवर जलालपुरी की बची थी, अब जो खामोश हो गई। अब उर्दू शायरी में निजामत में कोई बड़ा नाम नहीं बचा है। शुरुआती दौर में वो स्कूल टीचर थे। उस वक्त मलिकजादा मंजूर जैसे निजामत करते थे, जो बेहद लोकप्रिय थे, ऐसे दौर में अनवर ने निजामत में अपनी पहचान बनाना शुरू की और वो कामयाब हुए। धीरे-धीरे वो लोगों के दिलों में जगह बनाने लगे। इसकी बड़ी वजह उनकी हिन्दी और उर्दू भाषा दोनो पर मजबूत पकड़ थी। सबसे पहले लखनऊ महोत्सव में अनवर जलालपुरी को हमने ही बुलाया था। (अतरह नबी)

- मुशायरे की निजामत के दौरान वो इतने खूबसूरत अल्फाजों और बेजोड़ शायरी का इस्तेमाल करते थे कि सुनने वाले उनके प्रशंसक बन जाते थे। मैं भी उनका प्रशंसक बन गया था। जब पहली बार मुशायरे में मैंने शायरी पढ़ी। उस मुशायरे की सदारत अनवर जलालपुरी ही कर रहे थे। फिर उनको करीब से जानने का मौका मिला। इसके बाद सैकड़ों मुशायरों में साथ रहना हुआ लेकिन उनकी खास बात ये थी कि हर मुशायरे में अनवर जलालपुरी का एक नया रंग देखने को मिलता था। (जौहर कानपुरी)

-मुशायरे की निजामत एक मुश्किल काम है, इसे मलिक जादा मंजूर साहब बड़ी खूबसूरती से करते थे। निजामत करने वाले पर ही मुशायरे की कामयाबी टिकी होती थी। मलिक जादा मंजूर साहब के बाद सिर्फ अनवर जलालपुरी ही एक वाहिद शख्सियत थे जो इस परम्परा को अच्छे से आगे बढ़ा रहे थे। (मनीष शुक्ल)

- शायरी की नजर से मैंने जो भी किया उसका श्रेय सिर्फ अनवर जलालपुरी साहब को ही जाता है। उनसे ही लिखना सीखा, उनसे ही बोलना सीखा। मुशायरों में उनको बोलते देखकर ही हमारा आत्मविश्वास बढ़ता था। मेरा शायरी के अंदाज की देन ही अनवर जलालपुरी है। (शबीना अदीब)

एक बेहतरीन शायर के साथ ही अनवर जलालपुरी एक जिन्दादिल इंसान थे। मुशायरे की निजामत करने वाले इंसान की लोकप्रियता देखनी हो तो अनवर जलालपुरी के किसी भी मुशायरे को देखा जा सकता है। देश में हो या विदेश में उनकी लोकप्रियता मुशायरों में देखने वाली होती थी। उनका जाना अदबी दुनिया के लिए एक बड़ा नुकसान है। (सैफ बाबर)

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