शर्मिला टैगोर
sharmila tagore
इंडस्ट्री स्मार्ट हुई, पर औरतों के लिए कुछ नहीं बदला
-फिक्की फ्लो की ओर से मदर्स डे के कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचीं शर्मिला टैगोर
लखनऊ। वरिष्ठ संवाददाता
गालों पर डिंपल वाली शोख मुस्कुराहट, आंखों में अदाएं और आत्मविश्वास से भरा व्यक्तित्व। हम बात कर रहे हैं 'कश्मीर की कली', 'पटौदी की बेगम' और लीक से हटकर नई लकीर बनाने वाली चंद अभिनेत्रियों में से एक शर्मिला टैगोर की।
होटल हयात रेजेंसी में फिक्की फ्लो की ओर से मदर्स डे के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए शर्मिला लखनऊ आई थीं। यहां उन्होंने सिनेमा, क्रिकेट, मातृत्व, समाजिक मुद्दों और अपनी निजी जिंदगी से जुड़े तमाम पहलुओं पर खुलकर बात की। यहां उनके साथ सवाल-जवाब करने के लिए शांतनु राय चौधरी मौजूद थे और कार्यक्रम की अध्यक्षता फिक्की फ्लो की लखनऊ-कानपुर चैप्टर की चेयरपर्सन रेणुका टंडन कर रही थीं।
बतौर मां खुद को 10 में से 6 नंबर दूंगी
चूंकि विषय मदर्स डे था तो उन्होंने सबसे पहले इसी विषय पर बोलते हुए कहा कि बतौर मां वह खुद को 10 में 6 नंबर देती हैं। शर्मिला ने बताया कि वह बच्चों को अपने काम के बारे में बताती रहती हैं और बच्चे सब जानते थे तो कभी मुश्किल नहीं हुई। शर्मिला का मानना है कि कामकाजी मांएं अपने बच्चों के साथ ज्यादा अच्छा समय बिता पाती हैं।
शशिकला को वॉशरूम नहीं जाने दिया...
सिनेमा में अभिनेत्रियों की भूमिका में आए बदलाव पर शर्मिला कहती हैं कि पहले अभिनेत्रियों के लिए पैरामीटर तय थे कि उन्हें या तो हिरोइन बनना है वैम्प। प्रियंका चोपड़ा व दूसरी अभिनेत्रियां अब निगेटिव और पॉजिटिव दोनों रोल कर रही हैं लेकिन तब अभिनेत्रियां 'अच्छी औरत' और 'बुरी औरत' हुआ करती थीं। इसका उन्होंने एक किस्सा भी बताया कि वह और शशिकला किसी फिल्म की शूटिंग कर रही थीं। दोनों साथ में वॉशरूम गईं तो पब्लिक ने शशिकला को अंदर नहीं जाने दिया क्योंकि उनकी नजरों में वह बुरी औरत थीं।
...और मार्केट से मैगजीन हटवा दी गई
फिल्मों को बतौर कॅरियर चुनना आपके समय में कितना मुश्किल था?... इस सवाल के जवाब में शर्मिला ने एक किस्सा सुनाया कि 'कश्मीर की कली' की शूटिंग के दौरान एक बड़ी बिजनेस फैमिली की महिला के साथ उन्होंने फोटो खिंचवाया। बाद में वही फोटो एक मैगजीन के कवर पर छपा। अब चूंकि फिल्म वालों को अच्छा नहीं माना जाता था इसलिए उस बिजनेस फैमिली ने सारी मैगजीन बाजार से हटवा दी। एक और सवाल पर शर्मिला मुखर हुईं कि 'सिनेमा में महिलाओं की इमेज बदली है या नहीं?'। जवाब में उन्होंने कहा कि बाहर से हिन्दी फिल्में बदली हैं, अभिनेत्रियां स्मार्ट हुईं हैं, उनके कपड़े मॉडर्न हुए हैं लेकिन अंदर से कुछ नहीं बदला। आज भी उन्हें दूसरे पायदान पर ही रखा जाता है। दरअसल अगर महिलाएं, पुरुषों से बेहतर काम करती हैं तो पुरुष इनसिक्योर होते हैं, इसीलिए महिलाओं को पीछे रखना चाहते हैं और इसी मानसिकता को फिल्मकार भी भुनाते हैं। जब अमिताभ बच्चन 'डॉन' बनते हैं तो खलनायक होने के बावजूद उन्हें स्वीकार किया जाता है लेकिन किसी अभिनेत्री ने आज तक ऐसा रोल करने की हिम्मत क्यों नहीं जुटाई, या यूं कहें कि किसी फिल्मकार ने ऐसी फिल्म क्यों नहीं बनाई।
बदलाव की शुरुआत घर से करें
लगातार बढ़ रही महिला हिंसा पर बात हुई तो उन्होंने कहा कि निर्भया या कठुआ अंत नहीं थे और इन चीजों के खत्म होने के लिए हम खुद ही कोशिश करें तो बेहतर होगा। शुरुआत अपने घर से करनी होगी और बेटे व बेटी में फर्क किए बिना घर के बच्चों को एक समान व सही परवरिश देनी होगी। साथ ही उन्होंने कहा कि बलात्करा जैसी घटनाओं पर अगर कैपिटल पनिशमेंट बढ़ाई जाएगी तो शायद घटनाएं कम होंगी।
सेंसरबोर्ड है कहां...: शर्मिला सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) की अध्यक्ष रही हैं। शर्मिला से सेंसरबोर्ड की भूमिका पर सवाल हुए तो उन्होंने स्पष्ट किया कि वह प्रमाणन बोर्ड है, सेंसरबोर्ड नहीं। उसका काम प्रमाण पत्र देना है। सीबीएफसी सरकार, फिल्म और आमलोगों के बीच की कड़ी है लेकिन आजकल यह राजनीतिक संस्था की तरह काम कर रही है।
कास्टिंग काउच की बात गलत: हाल ही में कोरियोग्राफर सरोज खान ने कास्टिंग काउच के मुद्दे को उठाया था और इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच की बात अक्सर उठती रहती है लेकिन शर्मिला इससे इनकार करती हैं। कहती हैं कि उनके साथ कभी ऐसा कुछ नहीं हुआ और जिनके साथ होता है वो लोग तुरंत शिकायत क्यों नहीं करते। इतने साल बाद आरोप लगाने का क्या मतलब।