Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़लखनऊSantosh Anand Enchants Audience at Poet Kumbh with Timeless Songs and Wisdom

दुनिया कुछ से कुछ कर बैठी, हम तो रहे फकीर...

वरिष्ठ गीतकार संतोष आनंद ने कवि कुंभ में अपनी भावनाओं और गानों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। उन्होंने लम्बी उम्र की परवाह किए बिना 'प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी' जैसे अमर गीत गाए। उनके साथ अन्य कवियों...

दुनिया कुछ से कुछ कर बैठी, हम तो रहे फकीर...
Newswrap हिन्दुस्तान, लखनऊThu, 5 Sep 2024 05:07 PM
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गीत नहीं निराला कुछ कर पाया, न गालिब ने महल बनाया... दुनिया कुछ से कुछ कर बैठी, हम तो रहे फकीर...। वरिष्ठ गीतकार संतोष आनंद ने गुरुवार को इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित कवि कुंभ में ये पंक्तियां कहीं तो हर हाथ ताली बजाने को मजबूर हो गया। इससे पहले उनका अभिनंदन किया गया। इसके लिए कवि आशीष अनल व अन्य कवि उनको गोद में उठाकर मंच तक लाए। सम्मान के बाद संतोष आनंद ने कहा कि लखनऊ आकर हमेशा मुझे कैसी प्रसन्नता होती है, उसका बस मैं अनुभव कर सकता हूं। एक गूंगे का रस जो होता है, वह उसकी अभिव्यक्ति नहीं होती है। आज यहां आया हूं... सौरभ सुमन और अनामिका अंबर प्यार-अधिकार भी दिखाते हैं, लेकिन व्हीलचेयर नहीं मंगाते हैं। मुझे अर्थी की तरह उठाकर लाया गया है। कहा, सब सरकारी खेल में घिरे हुए हैं। संत होते हुए भी हम जैसे संतों का ख्याल नहीं करते हैं। कवि अंदर से संत होता है।

लंबी-लंबी उमरिया को छोड़ो...

अधिक उम्र और स्वास्थ्य सही न होने के बाद भी संतोष आनंद ने लोगों की मांग पर जिंदगी की ना टूटे लड़ी, प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी, लंबी-लंबी उमरिया को छोड़ो, प्यार की इक घड़ी है बड़ी प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी... सुनाया तो श्रोता भी उनके साथ गुनगुनाने लगे। एक प्यार का नगमा है मौजों की रवानी है, ज़िंदगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है..., मैं ना भूलूंगा, मैं ना भूलूंगी इन रस्मों को इन कसमों को इन रिश्ते नातों को...जैसे अमर गीत गाकर उन्होंने पूरी महफिल लूट ली।

खुद की खातिर जीते थे अब देश पे मरना सीख गए...

इससे पहले कवि महाकुंभ का आगाज कवयित्री डॉ. अनामिका जैन अंबर ने किया। वह पहले दिन सुबह के सत्र से मंच संभाले रहीं। शाम तक मंच पर प्रसिद्ध कवियों की रचनाओं के रंग बिखर गए। अनामिका ने सुनाया, खुद की खातिर जीते थे अब देश पे मरना सीख गए, मझधारों में कफन बांधकर लोग उतरना सीख गए, कल तक अंबर हमको जुगनू तक धमकाते थे पर अब, हम सूरज से आंख मिलाकर बातें करना सीख गए...। मोहब्बत के सफर को एक हंसी आगाज दे देना, मेरा कल मुस्कुरा उठे तुम ऐसा आज दे देना...।

धरा बनकर दिखोगी तो ये अंबर मांग ही लेंगे...

आशीष अनल ने देशभक्ति के गीत सुनाए। कितना तिरंगे को झुकाया जा चुका, आजादी की कितनी सजा वह पा चुका, कैसे संविधान की ये मजबूरी है, शोक में तिरंगा झुकाना जाना जरूरी है... सुनते ही लोगों में जोश भर गया। नवंबर तुम बनोगी तो दिसंबर मांग ही लेंगे, धरा बनकर दिखोगी तो ये अंबर मांग ही लेंगे...सुनाया तो तालियां गूंज उठीं। इसी क्रम में शशिकान्त यादव, डॉ. मंजू दीक्षित, अमित शर्मा, डॉ. प्रवीण शुक्ल आदि ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को बांधे रखा।

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