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अपने ही लोगों की वजह से दुर्गति का शिकार हुई संस्कृत भाषा: योगी

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि संस्कृत भाषा अपने ही लोगों की वजह से दुर्गति का शिकार हुई है। संस्कृत पाठशालाओं में न तो पढ़ाने के लिए अध्यापक जाते हैं और न ही पढ़ने के लिए...

विशेष संवाददाता लखनऊ। Wed, 7 Feb 2018 04:08 PM
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अपने ही लोगों की वजह से दुर्गति का शिकार हुई संस्कृत भाषा: योगी

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि संस्कृत भाषा अपने ही लोगों की वजह से दुर्गति का शिकार हुई है। संस्कृत पाठशालाओं में न तो पढ़ाने के लिए अध्यापक जाते हैं और न ही पढ़ने के लिए छात्र-छात्राएं। परीक्षाओं में नकल का सहारा लिया जाता है। सिर्फ सरकारी अनुदान हासिल करने के लिए ही संस्कृत के विद्यालय चलाए जाते हैं।
मुख्यमंत्री ने यह बातें बुधवार को यहां लोक भवन में आयोजित उ.प्र.संस्कृत संस्थान के वार्षिक सम्मान समारोह में कहीं। राज्यपाल रामनाईक की अध्यक्षता में हुए इस सम्मान समारोह में 2016 और 2017 के लिए कुल 95 विद्वानों को सम्मानित किया गया। वर्ष 2016 के लिए संस्थान के सर्वोच्च पुरस्कार विश्वभारती से बिहार के सासाराम में जन्मे और इलाहाबाद में अध्यापन करने वाले कई संस्कृत ग्रंथों के रचनाकार आचार्य जगन्नाथ पाठक और 2017 के लिए मध्य प्रदेश के वरेण्य संस्कृत विद्वान आचार्य केशवराव मुसलगांवकर को प्रदान किए गए।
इन दोनों को संस्कृत संस्थान की ओर से क्रमश: पांच लाख एक हजार रुपए की राशि के चेक और प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए। 
मुख्यमंत्री ने अपने सम्बोधन में संस्कृत विद्वानों से सवाल किया कि महर्षि बृहस्पति के विमानन शास्त्र को क्यों छिपाकर कर रखा गया है? जिस देश में यह मान्यता रही हो कि पिता शिव ने अपने बेटे गणेश का सिर काटा और फिर पश्चाताप करते हुए उस बेटे के सिर कटे धड़ पर हाथी का सिर जोड़ा तो ऐसी प्राचीन शल्य चिकित्सा के जनक सुश्रुत को क्यों भुला दिया गया? 
मुख्यमंत्री ने सवाल उठाया कि अपनी मर्जी से तय रफ्तार पर शस्त्र चलाने और फिर उसे वापस लेने के समृद्ध प्राचीन शस्त्र विज्ञान से संसार को क्यों वंचित रखा गया? क्यों आज समाज को देशा देने वाले ग्रंथों की रचना संस्कृत में नहीं हो रही? मुख्यमंत्री ने कहा कि संस्कृत विश्व की भाषाओं की जननी है और इसके प्राचीन ग्रंथों में अभी भी बहुत कुछ छिपा हुआ है जिसे सामने लाने की जरूरत है। 
संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिए अपनी सरकार के प्रयासों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पछले सत्रह वर्षों से उ.प्र.संस्कृत शिक्षा बोर्ड का गठन नहीं हुआ था जिसे उनकी सरकार ने एक निर्धारित समयावधि में पूरा किया।  हालांकि उन्होंने साथ ही इसके समुचित ढंग से काम कर पाने पर सवाल भी उठाया। मुख्यमंत्री ने कहा कि संस्कृत संस्थान के बजट में कई गुना बढ़ोत्तरी उन्हीं की सरकार द्वारा की गयी। साथ ही भाषा विभाग और संस्कृत संस्थान को निर्देश दिये कि अवकाश के दिनों में जब संस्कृत विद्यालय बंद होते हैं तो दस-दस दिन या एक-एक पखवारे के संस्कृत सम्भाषण के शिविर आयोजित किये जाएं। संस्कृत के अध्ययेताओं को शोध के लिए प्रेरित किया जाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जब हम लोग संस्कृति की बात करते हैं तो हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि भारतीय संस्कृति का आधार संस्कृत भाषा ही है। संस्कृत भाषा के संरक्षण और इसके उन्नयन की जिम्मेदारी सिर्फ राज्य सरकार की ही नहीं बल्क संस्कृत के विद्वानों और श्रुति परम्परा के वाहकों की भी है।
राज्यपाल रामनाईक ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि संस्कृत विद्वान अपने दायित्वों के प्रति फिर से विचार करें। दुनिया में अगर भारतीय संस्कृति को ले जाना है तो इसका माध्यम संस्कृत भाषा ही हो सकती है। उन्होंने जानकारी दी कि उनके अनुभवों के संस्मरणों पर आधारित पुस्तक ‘चरैवति-चरैवति’ का संस्कृत भाषा में भी अनुवाद हुआ है जिसका लोकार्पण आगामी मार्च में काशी में राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा। 

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