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अधिकारों पर छिड़ा विवाद थामने की कवायद, प्रमुख सचिव गृह ने दी सफाई

प्रमुख संवाददाता-राज्य मुख्यालय

अधिकारों पर छिड़ा विवाद थामने की कवायद, प्रमुख सचिव गृह ने दी सफाई
हिन्दुस्तान टीम,लखनऊMon, 11 Dec 2017 07:36 PM
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-अधिकारों पर छिड़ा विवाद थामा

- प्रमुख संवाददाता-राज्य मुख्यालय

डीएम व पुलिस कप्तान के अधिकारों के बहाने आईएएस व आईपीएस की श्रेष्ठता को लेकर छिड़ी बहस सोमवार को थोड़ी मंद पड़ती नज़र आई। प्रमुख सचिव गृह ने पूरे मामले में सफाई दी तो दूसरी तरफ डीजीपी मुख्यालय की ओर से भी मामले को संभालने की कोशिश की गई। वहीं आईपीएस एसोसिएशन ने भी मंगलवार को प्रस्तावित बैठक फिलहाल टाल दी है।

दरअसल, पूरा विवाद शासन के कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग की ओर से सात सितंबर 2017 को जारी एक आदेश से पैदा हुआ है। इस आदेश में जिलाधिकारी को हर महीने की सात तारीख को अपराध समीक्षा बैठक करने को कहा गया है, जिसमें एसएसपी / एसपी से लेकर सभी थानाध्यक्ष तक मौजूद रहें।

इस आदेश से आईपीएस अफसरों में आक्रोश होने की बात कही जा रही है। आईपीएस एसोसिएशन ने तो इस पर खुलकर नाराजगी भी जताई। एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रवीण सिंह ने कहा कि यह आदेश अव्यवहारिक है।

उधर, प्रमुख सचिव गृह अरविन्द कुमार ने सोमवार को कहा कि डीएम व एसएसपी/ एसपी जिला प्रशासन के दो प्रमुख स्तंभ हैं। अपने उत्तरदायित्वों के लिए वे साथ मिलकर काम करते हैं। पुलिस रेगुलेशन एवं अन्य संबंधित एक्ट में डीएम व एसएसपी / एसपी की भूमिका स्पष्ट रूप से दी गई है। प्रदेश सरकार का इसमें बदलाव करने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सात सितंबर 2017 के शासनादेश पर डीजीपी की तरफ से कुछ सुझाव मिले हैं। प्रदेश सरकार उन सुझावों पर विचार कर रही है।

आईपीएस एसोसिएशन ने प्रमुख सचिव गृह के इस स्पष्टीकरण के बाद मंगलवार को होने वाली अपनी बैठक स्थगित कर दी है। आईजी कानून-व्यवस्था हरीराम शर्मा ने कहा कि मुख्य सचिव की ओर से जारी आदेश के संबंध में कतिपय संशोधनों के लिए डीजीपी सुलखान सिंह ने शासन को पत्र लिखा था। डीजीपी ने नौ नवंबर 2017 को शासन को पत्र लिखकर आदेश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था। डीजीपी ने अपने पत्र में थानाध्यक्ष से बड़े पुलिस अफसरों को ही बैठक में बुलाने का सुझाव दिया था।

क्या थी आपत्ति -

- आईपीएस को आपत्ति थी कि बैठक पुलिस लाइन में बुलाई जानी थी।

- पुलिस लाइन को जिले के एसपी का कार्यक्षेत्र माना जाता है और वहां उसकी अथारिटी थानाध्यक्षों की मौजूदगी में कमजोर होती।

-आदेश में थानेदारों को तो बुलाया गया लेकिन एसीएम व एसडीएम को बुलाने का कोई व्यवस्था नहीं थी।

-सशस्त्र बल में कमांड कंट्रोल सिर्फ एक अधिकारी के पास ही होना चाहिए। वर्ना थानेदार निरंकुश होते हैं। डीएम के हसत्क्षेप से थानेदार बनाने को लेकर पैरवी होने लगती है।

-पुलिस रेग्यूलेशन में ही यह भी व्यवस्था है कि डीएम कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, जिससे एसपी का अधिकार कम हो।

शासनादेश में जो नई व्यवस्था की गई

सात सितंबर 2017 को जारी आदेश कानून-व्यवस्था एवं विकास कार्यों के मूल्यांकन के लिए नई व्यवस्था से संबंधित है।

-यह बैठक हर महीने की सात तारीख को करने का निर्देश दिया गया है। इसमें कहा गया है-

‘कानून-व्यवस्था की बैठक जिलाधिकारी की अध्यक्षता में पुलिस लाइन में की जाएगी। इसमें जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक, अपर जिलाधिकारी (प्रशासन), अपर पुलिस अधीक्षक, पुलिस उपाधीक्षक, वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी, डीजीसी एवं सभी थानाध्यक्ष प्रतिभाग करेंगे।

मौजूदा समय में केवल एसपी पुलिस लाइन में अपराध की समीक्षा करते हैं। अगर किसी त्योहार आदि में कानून-व्यवस्था की बैठक होती है तो उसमें डीएम के साथ एडीएम भी मौजूद रहते हैं।

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