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सियासी बीज से नहीं लहलहा पाई मूंगफली की फसल

करीब चार दशक पहले सीतापुर की पहचान मूंगफली की खेती से होती थी। अकेले नगरपालिका क्षेत्र में 120 मूंगफली तेल मिलें थीं। समय बढ़ने के साथ ही जिले से मूंगफली कम होने लगी। मूंगफली की पैदावार बढ़ाने के लिए...

सियासी बीज से नहीं लहलहा पाई मूंगफली की फसल
दुर्गेश द्विवेदी,सीतापुर| Wed, 10 Apr 2019 01:09 PM
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करीब चार दशक पहले सीतापुर की पहचान मूंगफली की खेती से होती थी। अकेले नगरपालिका क्षेत्र में 120 मूंगफली तेल मिलें थीं। समय बढ़ने के साथ ही जिले से मूंगफली कम होने लगी। मूंगफली की पैदावार बढ़ाने के लिए नेताओं ने लोकसभा तक आवाज भी उठाई लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। 
खेती को बढ़ावा देने के लिए न तो कोई योजना बनी और न ही किसानों को किसी प्रकार की सहूलियत मिली। जनपद में कई नदियों के प्रवाह के चलते एक बड़ा क्षेत्र बलुई मिट्टी का है। गंगा-यमुना का दोआब क्षेत्र होने के बावजूद  जिले में बलुई मिट्टी का क्षेत्रफल बहुत है। पिसावां, महोली, मिश्रिख, सिधौली व मछरेहटा के साथ ही गांजरी क्षेत्र के कई गांवों में बलुई मिट्टी है। इन क्षेत्रों के किसान सदियों ने मूंगफली की खेती कर रहे थे। 40 के दशक में महोली और हरगांव में चीनी मिल लग गईं। 
इससे मूंगफली की खेती का थोड़ा क्षेत्रफल घट गया लेकिन उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ा।  करीब डेढ़ लाख हेक्टयेर जमीन पर किसान खेती करते रहे।  इसके बाद जिले में रामगढ़, जवाहरपुर, महमूदाबाद व कमलापुर में चीनी मिल लग गईं। इसी के साथ मूंगफली की खेती का पराभव शुरू हो गया। चीनी मिल पर्यवेक्षक मूंगफली की जगह गन्ना की खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने लगे। इसका उन्हें सकारात्मक परिणाम भी मिला। किसानों ने गन्ना की खेती करनी शुरू कर दी।  उधर, मूंगफली की खेती को बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए। उत्पादन न के बराबर पहुंच गया। मूंगफली मिलें बंद होने लगीं। गन्ना क्षेत्रफल बढ़ने के चलते बिक्री में पेरशानी होनी लगी। समस्या बढ़ती चली गई। नेताओं ने संज्ञान लेकर मुद्दे को विधानसभा व लोकसभा में पहुंचाया। वर्तमान सांसद राजेश वर्मा ने भी पिछले वर्ष मूंगफली की खेती को लेकर संसद भवन में मुद्दा उठाया था। कृषि मंत्रालय ने संज्ञान भी लिया था लेकिन बेहतरी के लिए कदम नहीं उठाए गए।
सीतापुर में बंद हो गईं 120 मिलें, बेरोजगारी बढ़ी 
मूंगफली का अच्छा उत्पादन होने के चलते जिले में कारोबार भी बढ़ा था। शहर के पड़ाव मण्डी में खरीद फरोख्त होती थी। आर्यनगर, नईबस्ती व नवीन चौक आदि स्थानों पर 120 मूंगफली से तेल निकालने वाली मिलें थीं। इन मिलों में 20 हजार से अधिक कुशल व अकुशल लेबर काम करते थे। मूंगलफली की आपूर्ति न होने पर मिल बंद हो गए और लेबर बेरोजगार। व्यापार मण्डल के नेता गोपाल टण्डन कहते हैं कि किसी जमाने में सीतापुर की मूंगफली बहुत मशहूर थी। मूंगफली का तेल यहां से गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार आदि राज्यों को जाता था। कच्ची मूंगफली की भी सप्लाई होती थी।
घी की फैक्ट्री भी बंद हुई
जनपद में मूंगफली के साथ ही धान की अच्छी पैदावार थी। वनस्पति घी बनाने वाली फैक्ट्रियों को मूंगफली व चावल के कन का तेल आसानी से मिल जाता था। ऐसे में उद्योगपति  जिले में वनस्पति घी की फैक्ट्री लगाने लगे थे। सुहागिन ब्राण्ड का घी सीतापुर में ही बनता था। मूंगफली की खेती के साथ ही वनस्पति घी की फैक्ट्री भी बंद हो गई।  

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