प्राचीन भारत में असहिष्णुता की कोई जगह नहीं
लविवि- असहिष्णुता पर विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन, इतिहास पर रहा जोरलखनऊ। कार्यालय संवाददातापुष्पमित्र शुंग, हर्ष हो या फिर अशोक। प्राचीन भारत के राजाओं की नीतियों से लेकर सामान्य जनमास में भी...
लविवि
- असहिष्णुता पर विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन, इतिहास पर रहा जोर
लखनऊ। कार्यालय संवाददाता
पुष्पमित्र शुंग, हर्ष हो या फिर अशोक। प्राचीन भारत के राजाओं की नीतियों से लेकर सामान्य जनमास में भी सहिष्णुता साफ नजर आती है। प्राचीन भारतीय धर्मदृष्टि, सत्ता-संरचना और सामाजिक मान्यताएं इसकी गवाह हैं। यह कहना है लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. प्रशांत श्रीवास्तव का। वह शनिवार को विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला के तहत ‘प्राचीन भारत में असहिष्णुता विषय पर आयोजित व्याख्यान पर बोल रहे थे।
प्रो. श्रीवास्तव ने जोर देते हुए कहा कि यहां अपनी धर्म-परम्परा के प्रति यदि कहीं विशेष आग्रह दिखाई भी देता है तो इसके पीछे अपनी धर्म-परम्परा के प्रति अनन्यता का भाव अधिक था। ना की दूसरों के प्रति असहिष्णुता का भाव। उन्होंने ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं शिलालेखों के माध्यम से ‘सती-प्रथा को केंद्र में रखते हुए प्राचीन भारतीयों में स्त्री के सतीत्व भाव के विभिन्न पक्षों का भी उल्लेख किया। व्याख्यान के दौरान कला संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर पीसी मिश्र, विभिन्न विभागों और महाविद्यालयों के शिक्षक तथा छात्र बड़ी सं या में उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रो. ध्रुवसेन सिंह ने किया।