मेरठ : MBBS की कॉपियां बदलने के आरोप में सीसीएसयू का कर्मचारी धरा गया
मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (सीसीएसयू) में एमबीबीएस की कापियां बदलने के मामले में एसटीएफ ने एक और कर्मचारी को हिरासत में लिया है। इस कर्मचारी से गुपचुप तरीके से कई टीमें पूछताछ कर रही है। यह...
मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (सीसीएसयू) में एमबीबीएस की कापियां बदलने के मामले में एसटीएफ ने एक और कर्मचारी को हिरासत में लिया है। इस कर्मचारी से गुपचुप तरीके से कई टीमें पूछताछ कर रही है। यह कर्मचारी सीधे तौर पर गिरोह के साथ काम नहीं करता था लेकिन उनकी कई तरीके से मदद करता था। इस कर्मचारी से एसटीएफ को कई ऐसे सुराग मिले हैं जिससे गिरोह के फरार कर्मचारी जल्दी ही पकड़ में आ जाएंगे।
इस कर्मचारी से मिली जानकारी के आधार पर ही दावा किया जा रहा है कि कई तथ्यों की पड़ताल के बाद लखनऊ के सरकारी अस्पतालों में तैनात कई डॉक्टर भी कार्रवाई के दायरे में आ सकते हैं। एसटीएफ के आईजी अमिताभ यश ने बताया कि इस विवि में कई तरीके से धांधली की गई। इसमें विवि के कई अधिकारी, कर्मचारी और अन्य जिलों के डॉक्टरों की मिलीभगत रही है। इसमें किसने क्या भूमिका निभाई और किस-किस स्तर पर कापियां बदलने का ‘खेल हुआ, इस बारे में पूरी रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है। अब इस पर आगे की कार्रवाई शासन स्तर से होगी।
आईजी ने यह भी बताया कि जल्दी ही इस काण्ड से जुड़े कई और बड़े खुलासे होंगे। कई डॉक्टर फर्जी तरीके से पास हुयेएसटीएफ ने दावा किया है कि चार साल से इस रहे ‘खेल में सैकड़ों छात्र फर्जी तरीके से पास होकर डॉक्टर बन गए। यह तक कहा जा रहा है कि यह घोटाला मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले की तरह हुआ है। लिहाजा इसकी जांच पूरी होने के बाद लखनऊ ही नहीं कई जिलों में तैनात सरकारी डॉक्टर पर कार्रवाई हो सकती है।
रिमांड पर लेगी एसटीएफ एसटीएफ ने बताया कि इस मामले में गिरफ्तार विश्वविद्यालय के उत्तर पुस्तिका अनुभाग के इंचार्ज पवन कुमार, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संदीप और कपिल कविराज हैं। इनके पास से बरामद हुई कापियां मेडिकल कॉलेज बेगराज मंसूरपुर (मुजफ्फरनगर) की एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की थी। इस सम्बन्ध में पड़ताल चल रही है। ऐसे होता था खेल कविराज नई लिखी हुई कॉपियों को वरिष्ठ सहायक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के सहारे उत्तर पुस्तिका अनुभाग में बदलवा देता था। इस फर्जीवाड़े में मूल कॉपी के पहले पेज से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती थी। पर, इसके अलावा अन्य पन्नों को बदल दिया जाता था। इसके लिये ही दो से चार लाख रुपये तक वसूले जाते थे।