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लोकसभा चुनाव 2019 : अलीगढ़ ने देश के मिजाज में ही हां मिलाई 

ताला-तालीम के लिए दुनियाभर में पहचान बनाने वाले अलीगढ़ ने चुनावी माहौल में हमेशा से ही देश के मिजाज और मू़ड में ही हां में हां मिलाई है। आजादी के बाद कांग्रेस के परचम से लेकर पिछले लोकसभा चुनाव में...

लोकसभा चुनाव 2019 : अलीगढ़ ने देश के मिजाज में ही हां मिलाई 
सत्येन्द्र कुलश्रेष्ठ, अलीगढ़ | Tue, 19 Mar 2019 01:47 PM
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ताला-तालीम के लिए दुनियाभर में पहचान बनाने वाले अलीगढ़ ने चुनावी माहौल में हमेशा से ही देश के मिजाज और मू़ड में ही हां में हां मिलाई है। आजादी के बाद कांग्रेस के परचम से लेकर पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी तक अलीगढ़ की जनता ने वही संदेश व नतीजा दिया जो देश का मूड था।

लोकसभा चुनाव में मतदाताओं का रुख ज्यादातर चुनावों में स्थानीय मुद्दों से ऊपर उठकर देश की हलचल पर केंद्रित रहा है। आजाद भारत के पहले लोकसभा चुनाव 1952 और दूसरे 1957 के चुनाव की तो कांग्रेस के नेतृत्व में आजादी मिलने का फायदा कांग्रेस को मिला। इन दोनों चुनावों में कांग्रेस के नरदेव जीते। 

इसकी वजह थी, जनता कांग्रेस के अलावा किसी अन्य दल को ज्यादा पसंद नहीं करती थी। 1962 के चुनाव तक कांग्रेस में काफी बिखराव हुआ। नए राजनीतिक दल बने। इस चुनाव में कांग्रेस को अलीगढ़ में रिपब्लिकन पार्टी ने कड़ी चुनौती दी और इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी रिपब्लिक पार्टी के प्रत्याशी से जाटव और मुस्लिम एक जुट के नारे से हार गए। इस चुनाव में आरपीआई के बीपी मौर्य जीते थे। 

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के देश में आपातकाल की घोषणा के बाद से पूरे देश में विरोध की चिंगारी भड़क गई। 1977 के चुनाव में  कांग्रेस विरोधी लहर और विपक्षी दलों की एक जुटता ने अलीगढ़ में जनता पार्टी के ठा. नवाब सिंह चौहान को सांसद निर्वाचित कर दिया। 1984 के चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या की सहानुभूति लहर अलीगढ़ में भी जमकर चली  यहां से कांग्रेस की ऊषा रानी तोमर सांसद निर्वाचित हुईं। 

1989 का चुनाव बोफोर्स तोप की दलाली और पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह को लेकर लड़ा गया। गैर कांग्रेसी दलों से मिलकर बने जनता दल ने बोफोर्स तोप दलाली के मुद्दे पर जनता के बीच गया। अलीगढ़ से जनता दल के टिकट पर लड़े सतपाल मलिक को जीत मिली। सत्यपाल मलिक वर्तमान में जम्मु कश्मीर के राज्यपाल हैं।

1991 के लोकसभा चुनाव में राम लहर मुद्दा बनी। जिसके कारण अलीगढ़ सीट पर भाजपा की शीला गौतम चार बार के चुनाव 1991, 1996, 1998 व 1999 में निर्वाचित हुईं। 2004 के चुनाव में भाजपा शाइनिंग इंडिया का मुद्दा फीका पड़ गया। इस चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना और चौधरी बिजेंद्र सिंह को सांसद बनवा दिया। वहीं 2014 में देश भर में मोदी लहर में अलीगढ़ लोकसभा सीट पर भी भाजपा के सांसद सतीश गौतम जीते थे।

1977 में सबसे ज्यादा वोटों से जीते थे नवाब सिंह 
आपातकाल के बाद देशभर में जहां कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी थी। नाराजगी का असर अलीगढ़ लोकसभा सीट पर इस स्तर तक पड़ा कि उस समय सबसे अधिक 64.79 प्रतिशत मतदान हुआ। कांग्रेस प्रत्याशी घनश्याम सिंह को कुल 90 हजार वोट मिले थे। वहीं बीएलडी प्रत्याशी नवाब सिंह चौहान को 70.85 प्रतिशत यानि 2.80 लाख वोट मिले थे। 

1991 से 1998 तक चार बार सांसद बनने का रिकार्ड 
1991 में देशभर में जहां राम मंदिर लहर थी। तब केन्द्र भाजपा की सरकार बनाते हुए 1999 तक लगातार चार बार स्लीपवैल की चेयरपर्सन शीला गौतम ने जीत का परचम फहराया।  

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