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ऐशबाग के दारुल-उलूम मदरसे में जश्न-ए-आजादी की तैय्यारियां जोरों पर,

लखनऊ हिंदुस्तान संवादऐशबाग के दारुल-उलूम मदरसे में 15 अगस्त पर आजादी का जश्न मनाने की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। इस मौके पर आयोजित प्रतियोगिता में रविवार को बच्चों ने राष्ट्रीय ध्वज बनाना सीखा...

ऐशबाग के दारुल-उलूम मदरसे में जश्न-ए-आजादी की तैय्यारियां जोरों पर,
हिन्दुस्तान टीम,लखनऊSun, 13 Aug 2017 06:17 PM
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लखनऊ हिंदुस्तान संवादऐशबाग के दारुल-उलूम मदरसे में 15 अगस्त पर आजादी का जश्न मनाने की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। इस मौके पर आयोजित प्रतियोगिता में रविवार को बच्चों ने राष्ट्रीय ध्वज बनाना सीखा और उस उसमे रंग भरे। बच्चों को ध्वज में प्रयोग होने वाले तीनों रंगों के बारे में जानकारी दी गई।इस मौके पर ऐशबाग ईदगाह के इमाम व मदरसे का चला रहे मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने से हुई बातचीत के कुछ अंश तीन दिन मनाया जाता है आजादी का जश्नमौलाना ने बताया कि 15 अगस्त के मौके पर तीन दिन पहले से आजादी का जश्न मनाया जाता है। पहले दिन बच्चों को बताया जाता है कि 15 अगस्त का जश्न मनाने का मकसद क्या है, मुल्क की आजादी के लिए किसने क्या कुर्बानियां दीं और कैसे मुल्क आजाद हुआ। दूसरे दिन क्विज प्रतियोगिता होती है। इसमें बच्चों से जंग-ए आजादी के बारे में सवाल पूंछे जाते हैं। तीसरे दिन राष्ट्रीय ध्वज पेंटिंग प्रतियोगिता होती है जिसका मकसद होता है बच्चे अपने मुल्क का झण्डा खुद बनाएं और उन में रंग भरें। साथ ही झण्डे के तीनों रंगों का बुनियादी पैगाम क्या है। इसकी तालीम दी जाती है। ताकि उनके दिलों में राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान और मोहब्बत पैदा हो।हिंदुस्तान का पहला मदरसा है दारुल उलूममौलाना खालिद रशीद ने बताया कि दारुल उलूम देश का पहला मदरसा है। तीन सौ साल पुराना इसका इतिहास है। इस मदरसे की जंग-ए-आजादी में बड़ी भूमिका रही है। अंग्रेज जब हिंदू-मुस्लिम को लड़ाने की साजिश रच रहे थे, उस वक्त उलमा-ए -फरंगी महल ने हिंदू-मुस्लिम एकता का नारा दिया था। उसके बाद महात्मा गांधी भी मदरसे आए थे और मुस्लिम इलाकों का दौरा किया था।देश की आजादी में मदरसे का बड़ा योगदान उनका कहना था कि मौलाना अब्दुल अजीज देहलवी, अल्लामा फजले खैराबादी और मौलाना अब्दुल करीम दरियाबादी सहित अन्य उलमाओं ने इन्ही मदरसों से अंग्रेजो के खिलाफ फतवे जारी किए थे। अंग्रेजों ने सैकड़ों उलमाओं को फांसी दे दी और अंडमान निकोबार द्वीप भेज कर सजा दी। उलमाओं की तहरीक-ए-खिलाफत के बाद गांधी जी भी इसमें शामिल हुए। इसकी वजह से मुल्क को आजाद होने में बड़ी मदद हासिल हुई।योगी को हुक्म देने की जरूरत नहीं थीउनका कहना था कि मदरसों में 70 साल से आजादी का जश्न मनाया जाता है। राष्ट्रगान सहित अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसके बाबत योगी को यह हुक्म देने की जरूरत नहीं थी। मदरसा बोर्ड की तरफ से भी यह जारी किया गया है।राष्ट्रगान की रिकॉर्डिंग पर आपत्ति जताईमौलाना खालिद रशीद ने रिकॉर्डिंग पर आपत्ति जताई है। उनका कहना था कि देश के हर स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय में रिकॉर्डिंग कराई जाए तो कोई एतराज नहीं है। सिर्फ मदरसों को रिकॉर्डिंग के दायरे में लाने पर आपत्ति है।

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